Noida News : नोएडा प्राधिकरण द्वारा सत्या होम्स प्राइवेट लिमिटेड और अन्य को सेक्टर 161 में खरीदी गई भूमि पर निर्माण कार्य करने की अनुमति देने से इनकार करने के आदेश पर इलाहाबाद हाईकार्ट ने रोक लगा दी है। न्यायालय ने कहा कि प्राधिकरण को बिल्डिंग परमिट को रिजेक्ट करने के लिए सॉलिड और कानूनी रूप से ठोस कारण बताने चाहिए।
गेस्ट हाउस और क्लब हाउस बनाने का है मामला
याचिकाकर्ताओं ने 2015 में 9,571 वर्गमीटर भूमि खरीदी थी और दो साल बाद गुलावली गांव में गेस्ट हाउस और क्लब हाउस बनाने के लिए प्राधिकरण से अनुमति मांगी थी। प्राधिकरण ने अगले ही दिन आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उन्होंने जो भूमि खरीदी है, वह अथॉरिटी के अधिसूचित क्षेत्र का हिस्सा है, जिसे अंततः सेक्टर 161 के संस्थागत विकास के लिए अधिग्रहित किया जाएगा।
अप्रैल 2019 में दायर की थी याचिका
सत्या होम्स ने प्राधिकरण के फैसले को हाईकार्ट में चुनौती दी। जिसने प्राधिकरण से प्रारंभिक अस्वीकृति को अलग रखने और नई कार्यवाही शुरू करने को कहा। हालांकि, प्राधिकरण ने कुछ महीने बाद सत्या होम्स के एक अन्य आवेदन को खारिज कर दिया, जिसके बाद कंपनी ने अप्रैल 2019 में एक रिट याचिका दायर की। अदालत ने इस याचिका को किरण देवी और अन्य द्वारा दायर एक अन्य याचिका के साथ जोड़ दिया, जिन्हें इसी तरह की अस्वीकृति का सामना करना पड़ा था।
64 परिवारों ने खरीदी थी जमीन
किरण देवी का मामला एक ऐसी जमीन के हिस्से के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसका पहले आवासीय उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाता था और जिसे यूपी जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार अधिनियम के तहत गैर-कृषि घोषित किया गया था। उन्होंने मार्च 2015 में घर बनाने के लिए पंजीकृत बिक्री विलेखों के माध्यम से जमीन खरीदी थी। 64 परिवार ऐसे थे, जिन्होंने उसी क्षेत्र में जमीन खरीदी थी, लेकिन निर्माण शुरू करने के लिए प्राधिकरण से अनुमति प्राप्त करने में विफल रहे।
याचिकाकर्ता और अथॉरिटी का अलग-अलग तर्क
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि प्राधिकरण का यह रुख कि भूमि को संस्थागत विकास के लिए अधिसूचित किया गया था, सही नहीं है, क्योंकि उसने अब तक भूखंडों को अधिग्रहित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया है। उन्होंने प्राधिकरण को निर्माण की अनुमति देने का आदेश देने की मांग की, क्योंकि उन्होंने कानूनी रूप से जमीन खरीदी थी।अथॉरिटी के वकील ने अदालत में कहा कि यह भूमि आबादी का हिस्सा नहीं है और याचिकाकर्ताओं ने बिना अनुमति के निर्माण शुरू करके भवन विनियम, 2010 का उल्लंघन किया है।
2012 में एडीएम को भेजा था भूमि अधिग्रहण का प्रस्ताव
अथॉरिटी के वकील ने यह भी कहा कि इस क्षेत्र में भूमि अधिग्रहण का प्रस्ताव अक्टूबर 2012 में अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (भूमि अधिग्रहण) को प्रस्तुत किया गया था। वकील ने कोर्ट को यह भी बताया कि अथॉरिटी ने पहले ही भूमि का एक हिस्सा अधिग्रहित कर लिया है और शेष हिस्से पर कब्जा लिए जाने की प्रक्रिया में है। प्राधिकरण ने यह भी आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता भूमि के छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटन में लगे हुए हैं। छोटे-छोटे भूखंड बेच रहे हैं। जो संस्थागत विकास के लिए नियोजन उद्देश्यों का उल्लंघन करते हैं। इस साल 4 अक्टूबर को, अदालत ने कहा कि यद्यपि प्राधिकरण के पास अपने अधिकार क्षेत्र में निर्माण की निगरानी करने के लिए नियामक शक्तियां हैं, लेकिन वह बिना किसी वैध कारण के व्यापक प्रतिबंध लगाने के लिए उनका उपयोग नहीं कर सकता।
कोर्ट ने कहा, याचिकाकर्ताओं के आवेदन पर हो पुनर्विचार
न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और विकास बुधवार की पीठ ने प्राधिकरण द्वारा अनुमति देने से इनकार करने को अलग रखते हुए, उचित प्रक्रिया और कानूनी दिशानिर्देशों का पालन करते हुए याचिकाकर्ताओं के आवेदन पर पुनर्विचार करने को कहा। न्यायालय ने प्राधिकरण को नवंबर में भूमि का पुनः स्थल निरीक्षण करने तथा 14 नवंबर तक रिपोर्ट की एक प्रति याचिकाकर्ताओं को प्रस्तुत करने को कहा है।
दिसंबर में होगी अगली सुनवाई
याचिकाकर्ताओं तथा प्रभावित पक्षों को अपनी आपत्तियां प्रस्तुत करने के लिए 10 दिन का समय दिया गया है। आदेश में कहा गया है कि यह मामला नोएडा अथॉरिटी के सीईओ को वापस भेज दिया गया है, ताकि कानून के अनुसार नया आदेश पारित किया जा सके। अगली सुनवाई दिसंबर के दूसरे सप्ताह में होनी है।