आर्टिफिशियल रेन से मिलेगा छुटकारा, जानिए कब और कहां होता है इसका प्रयोग

नोएडा की लोटस बुलेवर्ड सोसायटी होगी प्रदूषण मुक्त : आर्टिफिशियल रेन से मिलेगा छुटकारा, जानिए कब और कहां होता है इसका प्रयोग

आर्टिफिशियल रेन से मिलेगा छुटकारा, जानिए कब और कहां होता है इसका प्रयोग

Google Images | लोटस बुलेवर्ड सोसायटी

Noida News : आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दौर में आर्टिफिशियल रेन यानी कृत्रिम वर्षा कोई नया टर्म नहीं है। बाढ़, सूखा, हीटवेव, तूफ़ान, जंगल में आग जैसी सूरतों में स्थिति को काबू करने के विकल्प के रूप में कृत्रिम वर्षा की चर्चा होती है। नोएडा में बढ़ते वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) जानलेवा बनता जा रहा है। इससे बचने के लिए सेक्टर-100 स्थित लोटस बुलेवर्ड सोसायटी मंगलवार रात को आर्टिफिशियल रेन कराएगी। यह नोएडा में एक अभिनव प्रयोग होगा। इसके प्रयोग से हवा शुद्ध होगी और वातावरण और भी बेहतर होगी। 
सोसायटी के AOA ने लिया निर्णय
लोटस बुलेवर्ड सोसायटी के निवासी ने बताया कि सोसायटी के एओए ने यह निर्णय लिया है। मंगलवार रात 11.45 बजे से सुबह 4 बजे तक आर्टिफिशियल रेन करवाई जाएगी। इसके लिए छतों के ऊपर बड़े-बड़े स्प्रिंकलर्स के जरिए पानी की बौछार की जाएगी जिससे वायुमंडल में तैर रहे हानिकारक कण जमीन पर बैठ जाएंगे तथा हवा शुद्ध हो जाएगी।

क्या है आर्टिफिशियल रेन
जब वायुमंडल में प्रकृतिक रूप से बने बादल ख़ुद बरसात कराते हैं, तो उसे नैचुरल रेन यानी प्राकृतिक वर्षा कहते हैं। लेकिन कई बार ऐसा होता है कि बादल बनते हैं पर उनके अंदर की कुछ अपूर्ण प्रक्रियाओं के कारण वो बारिश नहीं करा पाते। या बरसात होती भी है तो वो केवल बादलों तक रह जाती है, धरती तक नहीं पहुंच पाती। तो एक ख़ास तकनीक के तहत जब बादलों में बरसात के बीज डालकर में वर्षा कराई जाती है, तो उसे कृत्रिम वर्षा कहते हैं. इस तकनीक का नाम है क्लाउड सीडिंग।
प्रदूषण नियंत्रण में कितनी कारगर
इसराइल नियमित तौर पर आर्टिफिशियल रेन करवाता है क्योंकि वहां प्राकृतिक बारिश बहुत कम होती है। आज के व़क्त में संयुक्त अरब अमीरात भी रिसर्च प्रोग्राम और ऑपरेशनल प्रोग्राम में यूज करता है। चीन ने साल 2008 में बीजिंग ओलंपिक्स के दौरान एयरक्राफ्ट और ग्राउंड बेस्ड गन की मदद से क्लाउड सीडिंग की। जिसके बाद उन्हें प्रदूषण को नियंत्रित करने में काफ़ी मदद मिली।

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