प्राधिकरण ने योजना की तैयार, वातावरण में आएगा सुधार

नोएडा में इजरायली नुस्खा होगा कारगार : प्राधिकरण ने योजना की तैयार, वातावरण में आएगा सुधार

प्राधिकरण ने योजना की तैयार, वातावरण में आएगा सुधार

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Noida News : नोएडा प्राधिकरण ने इजरायली तकनीक को अपनाने का फैसला किया है। इस फैसले से नोएडा के वातावरण में तेजी से सुधार आएगा और लोग चैन की सांस ले सकेंगे। अब आपको इस तकनीक के बारे में बताते हैं। दरअसल, नोएडा प्राधिकरण द्वारा इजरायली तकनीक से पेड़ों की सिंचाई की जाएगी। इसे ड्रिप तकनीक कहते हैं। इसके जरिए नोएडा एक्सप्रेसवे के सेंट्रल वर्ज पर सिंचाई का काम किया जाएगा। यह काम सीएसआर के तहत होगा। इस तकनीक से पानी की सबसे ज्यादा बचत होती है।

फिलहाल टैंकरों से होती है सिंचाई
नोएडा ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेसवे का ज्यादातर हिस्सा नोएडा में आता है। फिलहाल यहां टैंकरों के जरिए सिंचाई की जाती है। इस तरह से सिंचाई करने पर पेड़-पौधों को नुकसान तो होता ही है साथ ही यह तेज रफ्तार एक्सप्रेसवे पर दूसरे वाहनों के लिए भी जानलेवा है। इसलिए यहां ड्रिप सिंचाई पर विचार किया जा रहा है। इसके लिए सर्विस लेन पर टैंकर बनाया जाएगा। जिसमें एसटीपी से लाए गए पानी को स्टोर किया जाएगा। इस पानी को फिल्टर किया जाएगा। फिल्टर किया गया पानी दूसरी पाइपलाइन के जरिए एक्सप्रेसवे के सेंट्रल वर्ज पर जाएगा। इस पाइप में कुछ दूरी पर छेद हैं। इन छेदों से बूंद-बूंद करके पानी जमीन में पहुंचता है। इससे पौधों को पानी मिलता है। साथ ही पानी की बर्बादी भी नहीं होती।

बूंद -बूंद पानी से होगी सिंचाई
ड्रिप सिंचाई एक आधुनिक तकनीक है। जिसमें बूंद-बूंद करके पानी पौधों की जड़ों तक पहुंचाया जाता है। इसे ड्रिप सिंचाई या बूंद-बूंद सिंचाई भी कहते हैं। ड्रिप सिंचाई में पानी की बर्बादी कम होती है और पौधों को जरूरत के मुताबिक पानी मिल जाता है। इसमें सिर्फ टैंकर और वाटर सप्लाई पाइप का खर्च आता है। इस टैंकर से पानी सप्लाई करने का काम मशीनों से होता है। इसे इको-फ्रेंडली बनाने के लिए मशीन संचालन का सारा काम सोलर एनर्जी से होगा।

ड्रिप सिंचाई की खासियत
ड्रिप सिंचाई में पाइप के जरिए पानी और पोषक तत्व खेत तक पहुंचाए जाते हैं। इन पाइप को ड्रिपलाइन कहते हैं। ड्रिपलाइन में छोटे-छोटे एमिटर होते हैं, जो पानी और खाद की बूंदें छोड़ते हैं। पानी की मात्रा और दबाव को नियंत्रित किया जा सकता है। पानी का रिसाव कम होता है और वाष्पीकरण भी कम होता है।

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