भारत में रियल एस्टेट पर भारी संकट : ग्रेटर नोएडा में 74,000 और नोएडा में 41 हजार फ्लैट्स फंसे, खरीदारों की उम्मीदें टूटी

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Greater Noida News : भारत का रियल एस्टेट सेक्टर एक गहरे संकट में फंसता जा रहा है। यह हालिया रिपोर्टों में सामने आया है। देश के 42 शहरों में लगभग 2,000 आवासीय परियोजनाएं अटकी हुई हैं। जिनमें कुल 5.08 लाख यूनिट्स शामिल हैं। यह समस्या न केवल रियल एस्टेट क्षेत्र की कमजोरी को उजागर करती है। इससे हजारों घर खरीदारों की उम्मीदों पर भी पानी फेर रही है। 

14 शहरों में 4,31,946 यूनिट्स फंसे
प्रोपइक्विटी की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार इन अटकी हुई परियोजनाओं का सबसे बड़ा हिस्सा देश के 14 प्रमुख शहरों में है। जहां 1,636 परियोजनाओं में कुल 4,31,946 यूनिट्स फंसे हुए हैं। दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र इस संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित है। ग्रेटर नोएडा, नोएडा और गुरुग्राम जैसी जगहों पर हजारों यूनिट्स अधूरी पड़ी हैं। ग्रेटर नोएडा में 74,645 यूनिट्स और नोएडा में 41,438 यूनिट्स का निर्माण ठप पड़ा हुआ है। यह समस्या केवल बड़े शहरों तक सीमित नहीं है। दूसरे और तीसरे श्रेणी के शहरों में भी 345 परियोजनाओं में 76,256 यूनिट्स अटकी हुई हैं। भिवाड़ी में 13,393 फ्लैट्स और मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन में भी बड़ी संख्या में परियोजनाएं अधूरी पड़ी हैं।

क्या है प्रमुख कारण
प्रोपइक्विटी के संस्थापक और मुख्य कार्यपालक अधिकारी समीर जसूजा ने इस समस्या के पीछे मुख्य कारणों पर प्रकाश डाला है। उन्होंने बताया कि डेवलपर्स की निष्पादन क्षमताओं की कमी, नकदी प्रवाह का कुप्रबंधन और धन का अनुचित उपयोग इन अटकी हुई परियोजनाओं के प्रमुख कारण हैं। डेवलपर्स ने लोगों से जमा किए गए पैसे का उपयोग नए भूखंड खरीदने या कर्ज चुकाने के लिए किया, जिससे निर्माण कार्य ठप हो गया और घर खरीदारों का पैसा फंस गया।

वर्ष 2018 से बिगड़ते हालात
रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2018 में 4,65,555 यूनिट्स अटकी हुई थीं। वो अब बढ़कर 5,08,202 यूनिट्स हो गई हैं। यह दर्शाता है कि हालात लगातार बिगड़ रहे हैं और डेवलपर्स द्वारा की गई गलतियों ने इस संकट को और गहरा कर दिया है। इस संकट का सबसे बड़ा असर घर खरीदारों पर पड़ा है, जो वर्षों से अपने सपनों के घर का इंतजार कर रहे हैं। दिल्ली-एनसीआर और अन्य प्रमुख शहरों में मकान खरीदारों के सपने अब भी अधूरे हैं, जिससे उनके मनोबल पर भी बुरा असर पड़ रहा है। कई खरीदारों ने अपनी जीवन भर की बचत इन परियोजनाओं में लगा दी है, और अब वे खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।

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