Yamuna Authority इंस्टीट्यूशनल लैंड एलॉटमेंट मामला : CAG ने उठाए सवाल, जमीन की आधी कीमत ली गई, बाकी वसूल करें

Tricity Today | यमुना प्राधिकरण



GREATER NOIDA : यमुना एक्सप्रेसवे इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी (Yamuna Authority) में वर्ष 2009 में हुए इंस्टीट्यूशनल लैंड एलॉटमेंट मामले में नया मोड़ आ गया है। भारत के महालेखा परीक्षक ने इन आवंटन पर सवाल उठाए हैं। सीएजी का कहना है कि जमीन की आधी कीमत ली गई है। बाकी पैसा वसूल किया जाना चाहिए। आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश सरकार ने लाभ लेने वाले 13 संस्थानों से 2,201 करोड़ रुपये वसूलने का आदेश जारी किया है। प्राधिकरण ने सोमवार को शकुंतला एजुकेशनल सोसायटी समेत सभी 13 इंस्टीट्यूशंस को नोटिस भेजा है। इन सभी से 15 दिनों में यह पैसा मांगा गया है। अब सीएजी की आपत्तियों से मामले में नया पेंच फंस गया है।

क्या है पूरा मामला
वर्ष 2009 में यमुना एक्सप्रेसवे के किनारे कॉलेज और यूनिवर्सिटी जैसे संस्थान बनाने के लिए यमुना अथॉरिटी ने भूमि आवंटन किया था। तब उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की मायावती सरकार थी। एक शिकायत के आधार पर यमुना अथॉरिटी के तत्कालीन चेयरमैन प्रभात कुमार ने वर्ष 2018 में इस आवंटन की जांच करवाई। जांच में पता लगा कि उस वक्त यमुना अथॉरिटी की संस्थागत श्रेणी में आवंटन दरें 2,670 रुपये प्रति वर्गमीटर थीं। इन 13 शिक्षण संस्थानों को 1,629 रुपये प्रति वर्गमीटर की दर पर भूमि आवंटन कर दिया गया। जांच में यह तथ्य भी सामने आया कि यह जमीन किसानों से लेने के लिए अथॉरिटी ने 2,500 प्रति वर्गमीटर की दर से मुआवजा बांटा है। मतलब, अथॉरिटी ने जितना पैसा किसानों को दिया, उससे भी कम कीमत पर इन संस्थाओं को भूमि आवंटन कर दिया गया।

अब सीएजी ने क्या कहा
उत्तर प्रदेश सरकार समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के कार्यकाल के दौरान गौतमबुद्ध नगर के तीनों विकास प्राधिकरण से जुड़े कामकाज का सीएजी से ऑडिट करवा रही है। सीएजी ने इन 13 संस्थानों को किए गए भूमि आवंटन की भी जांच की है। मिली जानकारी के मुताबिक सीएजी ने इन आवंटन पर बड़ा सवाल खड़ा किया है। सीएजी का कहना है कि भूमि आवंटन की दर कम से कम 3,244 रुपये प्रति वर्ग मीटर होनी चाहिए थी। इन संस्थानों को लगभग आधी कीमत 1,629 रुपए प्रति वर्ग मीटर की दर से आवंटन कर दिया गया। लिहाजा, इन सभी संस्थानों को किए गए आवंटन से अथॉरिटी और राज्य सरकार को अरबों रुपए का नुकसान हुआ है। सीएजी ने सिफारिश की है कि सभी संस्थाओं से 1,615 रुपए प्रति वर्ग मीटर की दर से और वसूली की जाए। आपको बता दें कि प्राधिकरण ने 1,041 रुपए प्रति वर्ग मीटर की दर से अतिरिक्त आवंटन राशि मांगी है। ऐसे में अगर सीएजी की सिफारिशों पर यमुना प्राधिकरण ने अमल किया तो वसूल की जाने वाली धनराशि करीब 33% बढ़ जाएगी।

प्राधिकरण ने वसूली का फैसला लिया
मुआवजा दर और प्रचलित आवंटन दर से कम दर पर यह आवंटन किया गया। इसे आधार बनाते हुए जांच रिपोर्ट यमुना प्राधिकरण की बोर्ड बैठक में रखी गई। बोर्ड ने इस भूमि आवंटन को अनुचित करार दिया। आवंटियों से अतिरिक्त पैसा वसूलने और पैसा नहीं देने पर आवंटन रद्द करने की सिफारिश की। इन सिफारिशों को लागू करवाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को भेज दिया गया था। उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के न्याय विभाग से जांच रिपोर्ट और प्राधिकरण बोर्ड की सिफारिशों पर मंतव्य मांगा था।

न्याय विभाग ने आवंटन दरें गलत मानीं
न्याय विभाग ने यह माना है कि जमीन की अधिग्रहण दर और डेवलपमेंट चार्जेस को जोड़कर अलॉटमेंट रेट तय होता है। उस वक्त यमुना प्राधिकरण के अधिकारियों ने गलत फैसला लिया। आवंटन दरें भूमि अधिग्रहण की दर से भी कम रखी गई थीं। ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ चुनिंदा संस्थाओं को फायदा पहुंचाने के लिए उस वक्त प्राधिकरण अफसरों ने यह भूमि आवंटन किया था। लिहाजा, सारे आवंटियों से अतिरिक्त पैसा वसूल किया जाना चाहिए।

अथॉरिटी ने भेजे वसूली नोटिस
जांच रिपोर्ट के आधार पर वर्ष 2018 में सारी संस्थाओं से अतिरिक्त पैसा मांगा गया था। हालांकि, प्रकरण शासन में लंबित था। जिसके चलते वसूली रोक दी गई थी। अब सरकार से मंजूरी मिलते ही यमुना अथॉरिटी ने सभी 13 आवंटित संस्थाओं को नोटिस भेज दिया है। नोटिस में कहा गया है कि अगले 15 दिनों में 1,041 रुपए प्रति वर्गमीटर की दर से बकाया पैसा जमा करें। सभी 13 आवंटियों ने वर्ष 2009 में केवल 847 करोड़ रुपए प्राधिकरण को चुकाए थे। अब बढ़ी दर के हिसाब से 982.85 करोड़ रुपए बतौर आवंटन राशि चुकाने पड़ेंगे। अब तक का ब्याज और लीज रेंट जोड़कर कुल धनराशि 2201.83 करोड़ रुपये बन गई है।

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