गौतमबुद्ध नगर में चर्चा-ए-आम : लोकसभा चुनाव जिताने वाले हार बैठे जिला पंचायत सदस्य का भी चुनाव

Tricity Today | नरेंद्र सिंह और बिजेंद्र सिंह



गौतमबुद्ध नगर जिला पंचायत वैसे तो सूबे में सबसे छोटी जिला पंचायत है, लेकिन इस चुनाव में बड़े सबक सीखने को मिले हैं। खासतौर से जनता ने इस चुनाव में उन लोगों को आईना दिखा दिया है, जो लोकसभा और विधानसभा चुनाव जिताने का दावा करते हैं। इतना ही नहीं युवा और जमीनी कार्यकर्ताओं को दरकिनार करके टिकटों की सेटिंग करने वाले भी जरूर जनता के "पावर पंच" का दर्द महसूस कर रहे होंगे। जोड़-तोड़ दलबदल और जनता को अपनी गेम में मान कर चलने वाले नेताओं के लिए गौतमबुद्ध नगर जिला पंचायत का चुनाव एक नजीर बन गया है। खासतौर से वार्ड नंबर-4 और 5 का चुनाव विश्लेषण करने लायक है।

गौतमबुद्ध नगर जिला पंचायत के चुनाव में हर किसी की नजर वार्ड नंबर-4 पर टिकी हुई थीं। गौतमबुद्ध नगर में गुर्जर बिरादरी के कद्दावर और निर्विवाद नेता नरेंद्र सिंह भाटी के भतीजे अवनेश भाटी ने यहां चुनाव लड़ा। दरअसल, नरेंद्र भाटी और उनके छोटे भाई विजेंद्र सिंह भाटी नई पीढ़ी के राजनीतिक करियर की शुरुआत करना चाहते थे। वह न केवल अवनेश भाटी को जिला पंचायत सदस्य बनाने की जुगत भिड़ा रहे थे, बल्कि उससे भी आगे अध्यक्ष पद तक दावेदारी की जा रही थी। यही वजह रही कि गुर्जर वोटर बहुल क्षेत्र चुना गया। इतना ही नहीं भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टी तक के टिकट मैनेज किए गए।

लोकसभा चुनाव के बाद लिखी गई पटकथा
इस पूरे चुनाव की पटकथा बीते लोकसभा चुनाव के बाद लिखी जा चुकी थी। विजेंद्र सिंह भाटी ने समाजवादी पार्टी छोड़कर डॉ.महेश शर्मा के मंच पर भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया था। डॉ.महेश शर्मा को नरेंद्र सिंह भाटी के अलावा उनके पूरे परिवार और समर्थकों ने चुनाव लड़ाया। महेश शर्मा चुनाव जीते और इस जीत के लिए नरेंद्र सिंह और विजेंद्र सिंह भाटी को क्रेडिट भी दिया गया। अब जब जिला पंचायत चुनाव आया तो पहले विजेंद्र सिंह भाटी ने भाजपा से टिकट लेने की कोशिश की। कुछ ख़ास कारणों से अवनेश भाटी को भाजपा से टिकट नहीं मिल पाया और अंततः विजेंद्र सिंह अपने दल बल के साथ बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गए। 

अखिलेश यादव से नरेंद्र भाटी के रिश्ते खराब हुए
लोकसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी में हुई इस भगदड़ के कारण अखिलेश यादव नाराज हुए और उन्होंने नरेंद्र सिंह भाटी से भी दूरी बना ली। जानकारी के मुताबिक पिछले एक-डेढ़ साल में नरेंद्र सिंह भाटी ने अखिलेश यादव से मुलाकात करने की कई बार कोशिश की, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। दूसरी ओर तमाम कोशिशों के बावजूद विजेंद्र सिंह भाटी भाजपा में जगह नहीं बना पाए और उनका मोहभंग हो गया। वह बेटे और समर्थकों की भीड़ लेकर बहुजन समाज पार्टी चले गए। महज एक साल में दो-दो बार पार्टियां बदलने से आम आदमी में खराब संदेश गया। जिसका नुकसान इस चुनाव में उठाना पड़ा है। 

सपा और बसपा गठबंधन की हार से सबक नहीं
यह कुछ ऐसा ही गठबंधन था, जैसे पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने किया था। इससे भी नरेंद्र सिंह भाटी ने कुछ अनुमान नहीं लगाया। इतना ही नहीं नरेंद्र भाटी कई करीबी लोगों ने उन्हें यह चुनाव इस ढंग से नहीं लड़ने की सलाह दी थी। दूसरी ओर बसपा ने अपने पुराने कार्यकर्ता सुनील भाटी को दरकिनार किया। उसे चुनाव लड़ने के लिए टिकट नहीं दिया गया। इतना ही नहीं नरेंद्र सिंह भाटी के बेहद करीबी लोग भी उनके भतीजे के खिलाफ चुनाव मैदान में उतर गए। यह चर्चा भी खूब चली कि विजेंद्र सिंह भाटी जेवर विधानसभा सीट से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। ऐसे में बसपा का पूरा कैडर उनके खिलाफ एकजुट हो गया। सभी ने सुनील भाटी को दमदार ढंग से चुनाव लड़ाया। गुज्जर समाज का भी बहुतायत वोट उन्हें मिला है। यही वजह रही कि जिले की पांचों सीटों पर सबसे बड़ी जीत का अंतर इसी वार्ड पर है। मतलब, जितना बड़ा कद रहा उतनी बड़ी ही हार का सामना करना पड़ा।

डॉ. महेश शर्मा की छवि पर भी बुरा असर पड़ा है
इस चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी के सांसद डॉ.महेश शर्मा की छवि भी खराब हुई है। दरअसल, वह पूरे चुनाव के दौरान प्रचार करने घर से नहीं निकले। लोगों का कहना है कि वार्ड नंबर-4 पर अवनेश भाटी के खिलाफ चुनाव प्रचार करने से बचने के लिए उन्होंने किसी के भी प्रचार में नहीं जाना मुनासिब समझा। इतना ही नहीं भारतीय जनता पार्टी ने वार्ड नंबर-4 पर अपना सबसे कमजोर उम्मीदवार खड़ा किया था। इसके पीछे भी अवनेश भाटी को फायदा पहुंचना था। भाजपा का उम्मीदवार जिला पंचायत चुनाव लड़ने की बजाय गांव में अपनी पत्नी को ग्राम पंचायत चुनाव लड़ रहा था। उसकी पत्नी चुनाव जीत गई है। हालांकि, इस जीत पर गड़बड़ी का आरोप लग रहा है। इसे जिला पंचायत की हार का ईनाम बताया जा रहा है। मामले में इलेक्शन पिटीशन दाखिल करने की तैयारी हो रही है। 

भाजपा को हार ही नहीं सबसे कम वोट मिले हैं
यही वजह रही कि भाजपा को इसी सीट पर सबसे कम वोट मिले हैं। जिले में भाजपा ने 3 सीट जीती हैं और एक सीट पर दूसरे नंबर पर रही है। वहां भी हार का अंतर सबसे कम है, लेकिन वार्ड नंबर-4 पर पार्टी फिसड्डी रह गई। दरअसल, यह सब अंदर खाने हुए गठजोड़ आम आदमी के बीच सार्वजनिक हो गए थे। जिसका प्रभाव यह रहा कि वोटर सुनील भाटी के साथ खड़े हो गए। बताया जा रहा है कि इस मुद्दे को लेकर न केवल भाजपा के जिला चुनाव प्रभारी बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने भी हाईकमान को रिपोर्ट भेजी है। जिले में भाजपा नेता और कार्यकर्ताओं का कहना है कि डॉ.महेश शर्मा को विजेंद्र सिंह भाटी ने लोकसभा चुनाव में समर्थन दिया था। इसका एहसान उतारने के लिए वह अवनेश भाटी को जिताना चाहते थे। इन सब चर्चाओं और नेताओं के आचरण का चुनाव पर असर देखने के लिए मिला। आम आदमी ने निर्दलीय उम्मीदवार सुनील कुमार को दिल खोलकर वोट दिए।

नरेंद्र भाटी जिले में कभी चुनाव नहीं जीत पाए
नरेंद्र भाटी ने गौतमबुद्ध नगर में कभी चुनावी कामयाबी हासिल नहीं कर पाए। उन्होंने दो बार लोकसभा चुनाव लड़ा और दोनों बार हार गए। वह पड़ोसी जिले बुलंदशहर की सिकंदराबाद सीट से ही विधायक बनने में कामयाब रहे। उनके भाई विजेंद्र सिंह जरूर जिला पंचायत की राजनीति में कामयाबी हासिल करते रहे, लेकिन इस बार जिला पंचायत में भी करारी हार का सामना करना पड़ा है। वह जेवर में विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। ऐसे में जिले के लोग चुटकी ले रहे हैं। लोगों का कहना है कि लोकसभा चुनाव जिताने का दावा करने वाले जिला पंचायत सदस्य का चुनाव भी हार कर बैठ गए। यह हार नरेंद्र सिंह भाटी की राजनितिक विरासत को बड़ा झटका माना जा रहा है।

 

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