Greater Noida : ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी (Greater Noida Authority) में अधिकारी बदलते हैं तो प्राथमिकताएं बदल जाती हैं। नए अफसर अपने हिसाब से प्रॉजेक्ट शुरू करते हैं। तबादला हो जाने के बाद प्रॉजेक्ट अधर में बंद हो जाते हैं। ऐसे प्रॉजेक्ट शुरू करने से क्या फायदा? इस तरह ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी का भारी भरकम बजट बर्बाद हो रहा है। हम ग्रेटर नोएडा के परी चौक से लेकर ग्रेटर नोएडा फेस-2 में जारचा तक प्रस्ताविक सड़क की बात कर रहे हैं। ग्रेटर नोएडा फेस-2 एरिया तक यह 105 मीटर चौड़ा और 26 किलोमीटर लंबा एक्सप्रेसवे बनाने का प्रोजेक्ट डिब्बा बंद हो गया है। जिस पर खर्च किए गए करोड़ों रुपये भी बर्बाद हो गए हैं।
परी चौक से लेकर जारचा तक बनना था एक्सप्रेसवे
परी चौक से लेकर जारचा तक 105 मीटर चौड़ा और करीब 26 किलोमीटर लंबा एक्सप्रेसवे बनाने के लिए ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने साल 2011-12 में 11 गांवों के किसानों से सीधे जमीन खरीदी थी। जमीन को खरीदने पर ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने करीब 2,500 करोड़ रुपये खर्च किए थे। अब जमीन खरीदने के 10 साल बाद भी इस एक्सप्रेसवे पर काम शुरू नहीं हो पाया है। बताया जाता है कि एक्सप्रेसवे बनाने के लिए ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने जो जमीन खरीदी थी, उसमें से सैकड़ों एकड़ जमीन पर बिल्डिंग बनकर तैयार हो गई हैं। अब चार-चार मंजिल की बिल्डिंग खड़ी हैं।
अथॉरिटी ने 11 गांवों में 2,500 करोड़ खर्च किए
ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने साल 2011-12 में परी चौक से लेकर बोडाकी गांव होते हुए जारचा फेस-2 एरिया तक करीब 26 किलोमीटर लंबा और 105 मीटर चौड़ा एक्सप्रेसवे बनाने का प्रोजेक्ट पेश किया गया था। अथॉरिटी का तर्क था कि दिल्ली-हावड़ा रेल लाइन और नेशनल हाइवे-91 के पार विकास योजनाएं ले जाने की जरूरत है। यह रास्ता बनने से ग्रेटर नोएडा शहर और फेज-2 के बीच कनेक्टिविटी बन जाएगी। उद्यमी और निवेशक उस तरफ जाएंगे। इसके लिए बोडाकी, दतावली, नई बस्ती उर्फ बैरंगपुर, फूलपुर, मिलक, खटाना, घनुबास, उपरालसी, गुलावठी खुर्द, मुढियानी और जारचा समेत 11 गांवों के किसानों से सीधे बैनामा से जमीन खरीदी गई थी।
अब फाइलों में दब गई है परियोजना, पैसा बर्बाद
यह जमीन को खरीदने के लिए अथॉरिटी ने करीब 2,500 करोड़ रुपये खर्च कर दिए। जारचा से आगे इस एक्सप्रेसवे को कोटा-सनोटा गंगनहर के किनारे-किनारे पुरकाजी हरिद्वार तक बनाने की योजना थी। यह योजना बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी की सरकार में बनाई गई थी। प्रदेश में सरकार और ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी में अधिकारी बदलते ही यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई है। जिन गांवों में जमीन खरीद हुई है, वहां के ग्रामीणों का कहना है कि इस एक्सप्रेसवे के लिए खरीदी गई जमीन पर अब बड़ी-बड़ी बिल्डिंग बनकर तैयार हो गई हैं। अब यह प्रॉजेक्ट खटाई में पड़ गया है। ऐसे प्रॉजेक्ट का क्या फायदा जो बनने से पहले ही खत्म हो जाए। गांव वालों ने सोचा था कि अब जल्दी विकास का रास्ता उनके यहां भी पहुंच जाएगा।
प्राधिकरण अफसर हैं मौन
इस मसले पर चर्चा करने के लिए ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण के अधिकारियों से संपर्क किया गया। किसी का कहना है कि वह तो थोड़े दिनों पहले ग्रेटर नोएडा आए हैं। परियोजना पुरानी है। जानकारी नहीं है। कुछ अफसरों ने कहा कि उन्हें मसले पर बयान देने का अधिकार नहीं है।