घोटालेबाजों का सरदार है मोहिंदर सिंह : गौतमबुद्ध नगर को पहुंचाया हजारों करोड़ रुपये का नुकसान, फिर भी अभी तक जेल से दूर क्यों?

Tricity Today | Mohinder Singh



Greater Noida News : बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के शासनकाल के दौरान नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना औद्योगिक विकास प्राधिकरण के चेयरमैन रहे सरदार मोहिंदर सिंह के कार्यकाल के काले कारनामे अब उजागर होने लगे हैं। उनके कार्यकाल में प्राधिकरण को भारी आर्थिक नुकसान पहुंचाया गया और कई बड़े घोटाले सामने आए हैं। आरोप है कि उन्होंने बिल्डरों को सस्ती दरों पर हज़ारों एकड़ ज़मीन आवंटित कर दी, जिससे सरकारी खजाने को बड़ा नुकसान हुआ।

बिल्डरों को सस्ते में दी गई ज़मीन
सरदार मोहिंदर सिंह ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में बिल्डरों को औने-पौने दामों पर ज़मीन आवंटित की। रिपोर्ट्स के अनुसार बिल्डरों से केवल 10% राशि लेकर उन्हें 100-100 एकड़ के प्लॉट आवंटित किए गए। इसके अलावा ग्रेटर नोएडा वेस्ट क्षेत्र में लगभग 90 लाख वर्ग मीटर ज़मीन बिल्डरों को बेहद कम कीमत पर दी गई, जिससे सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ।

आरोपों की लंबी सूची
दिल्ली-एनसीआर में मोहिंदर सिंह के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार की कहानियां आम हो गई थीं। आरोप है कि ज़मीन के आवंटन के नाम पर आवंटियों से मोटी रकम ली जाती थी। ग्रेटर नोएडा, नोएडा और यमुना प्राधिकरण में तैनात अधिकारी बिना मास्टरप्लान में संशोधन किए। औद्योगिक विकास के लिए आरक्षित भूमि पर बिल्डरों को प्लॉट अलॉट कर देते थे। 

महंगे पेड़ खरीदने का घोटाला
उनके कार्यकाल में उद्यान विभाग में भी बड़ा घोटाला सामने आया। जंगल से खजूर के पेड़ काटकर ग्रेटर नोएडा के पार्कों और सड़क डिवाइडर्स पर लगाए गए। एक पेड़ की लागत 4 लाख रुपये तक दिखाई गई और बिना पेड़ लगाए ही करोड़ों रुपये के बिल पास कर दिए गए। इस दौरान महेन्द्र सिंह के साथ कई उच्च पदस्थ अधिकारी भी इस घोटाले में शामिल थे।

ढाई अरब रुपये का घोटाला
नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण में तैनात अधिकारियों के खिलाफ ढाई अरब रुपये के घोटाले का आरोप भी है। इसके बावजूद, किसी भी अधिकारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है। मोहिंदर सिंह खुद प्राधिकरण से इस्तीफा देकर बिल्डर बन गए और अपनी संपत्तियों का विस्तार किया।

जांच के बावजूद कार्रवाई नहीं
घोटाले में शामिल 27 अधिकारियों के नाम सामने आए थे और शासन ने इनके खिलाफ जांच के आदेश भी दिए थे, लेकिन जांच को दबा दिया गया और अब तक किसी भी अधिकारी के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं की गई है। इससे प्रशासनिक हलकों में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर कब इन भ्रष्टाचारियों पर शिकंजा कसा जाएगा।

> प्राधिकरण की साख पर सवाल
इस तरह के घोटाले न केवल प्राधिकरण की साख को धूमिल करते हैं बल्कि क्षेत्र के विकास और निवेशकों के भरोसे पर भी सवाल खड़े करते हैं। ऐसे में शासन से उम्मीद की जा रही है कि वह जल्द से जल्द सख्त कार्रवाई कर इन घोटालों में लिप्त अधिकारियों को कानून के दायरे में लाएगा।

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