ग्रेटर नोएडा की बड़ी खबर ग्रेटर नोएडा लीजबैक घोटाले पर एसआईटी ने सौंपी रिपोर्ट, जिनके खिलाफ शिकायत थी उन्हें क्लीनचिट, किसानों का 6% प्लॉट और आरक्षण का हक छिनेगा

Tricity Today | Greater Noida Authority Office



ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण (Greater Noida Authority) के बिसरख गांव में बहुजन समाज पार्टी और फिर समाजवादी पार्टी की सरकारों के कार्यकाल में लीजबैक घोटाले का आरोप लगाते हुए सरकार से शिकायत की गई थी। इस मामले पर सरकार ने एक विशेष जांच दल (Special Investigation Team) एसआईटी का गठन यमुना एक्सप्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (Yamuna Authority) के मुख्य कार्यपालक अधिकारी डॉ.अरुण वीर सिंह की अध्यक्षता में किया था। एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। रिपोर्ट में बताया गया है कि लीजबैक के नाम पर व्यापक रूप से अनियमितताएं और धांधली की गई है। बड़ी बात यह है कि जिन बाहरी लोगों का हवाला देते हुए यह शिकायत की गई थी, उन्हें एसआईटी ने क्लीन चिट दे दी है। एसआईटी ने पाया है कि जिन किसानों ने आबादी छुड़वा ली है, उन्हें गलत ढंग से 6% के रेजिडेंशियल प्लॉट दिए गए हैं। एसआईटी ने सिफारिश की है कि आबादी छुड़वाने वाले किसानों को 6% भूखंड और भविष्य में प्राधिकरण की आवासीय योजनाओं में आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए। यही इस जांच रिपोर्ट की सबसे बड़ी सिफारिश है। Tricity Today के पास एसआईटी की रिपोर्ट उपलब्ध है।

कुछ लोगों ने उत्तर प्रदेश शासन से शिकायत की थी कि ग्रेटर नोएडा वेस्ट के बिसरख गांव में मुंबई, दिल्ली और कुछ अन्य शहरों के निवासियों ने वर्ष 2000 के आसपास जमीन खरीदी थीं। जब वर्ष 2008 में ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण ने इस इलाके में भूमि अधिग्रहण किया तो इन बाहरी लोगों को 20 हजार से 50 हजार वर्ग मीटर जमीन आबादी के नाम पर छोड़ दी गई। यह घोटाला तत्कालीन सरकार द्वारा घोषित आबादी नियमावली की आड़ में अंजाम दिया गया है। इस पर सरकार ने जांच करने के लिए यमुना एक्सप्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के मुख्य कार्यपालक अधिकारी डॉ.अरुण वीर सिंह की अध्यक्षता में एक विशेष जांच दल का गठन कर दिया। इस एसआईटी में ग्रेटर नोएडा के अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी केके गुप्त, नोएडा के विशेष कार्याधिकारी संतोष कुमार उपाध्याय, यमुना प्राधिकरण के महाप्रबंधक केके सिंह, नोएडा के चीफ आर्किटेक्ट प्लानर इस्तियाक अहमद, गौतमबुद्ध नगर के अपर जिलाधिकारी (भूमि अध्यापति) बलराम सिंह और नोएडा प्राधिकरण के चीफ एडवाइजर अंगद प्रसाद शामिल थे।

एसआईटी ने आठ बैठक करके मामलों की छानबीन की

शासन को भेजी गई रिपोर्ट के मुताबिक एसआईटी ने 21 फरवरी 2019 से 30 सितंबर 2020 तक 8 बार बैठक की। ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण के अपर मुख्य कार्यपालक अधिकारी केके गुप्त ने दो तरह के मामले जांच के लिए एसआईटी के सामने पेश किए। पहली श्रेणी में ऐसे मामलों को रखा गया, जिनमें 24 अप्रैल 2010 को गठित आबादी व्यवस्थापन समिति ने फैसले लिए थे। दूसरी श्रेणी में ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण ग्रामीण आबादी स्थल (प्रबंधन एवं विनियमितीकरण) नियमावली-2011 के तहत लिए गए निर्णय हैं। एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि 24 अप्रैल 2010 को लागू नियमावली के अधीन कुल 33 गांव के प्रकरण हैं। इस नियमावली में लीज बैक करने के लिए चार व्यवस्थाएं दी गई हैं।
  1. आबादी मौके पर मौजूद होनी चाहिए।
  2. जन आक्रोश का उत्पन्न होना और सामान्य कानून-व्यवस्था का बिगड़ना आदि।
  3. अन्य कारणों से भूमि यदि संबंधित प्राधिकरण से उपयुक्त नहीं रह जाती है। 
  4. उपरोक्त प्रस्तावों से आच्छादित सभी प्रकरणों में आबादी के लिए दी जाने वाली 5, 6 या 7% भूमि और आवासीय प्लॉटों के आवंटन में आरक्षण इत्यादि कोई भी लाभ अनुमन्य नहीं होगा।
इन 7 तरह की सूचनाओं का आधार बनाकर जांच की गई

इस तरह इस शासनादेश में यह स्पष्ट व्यवस्था है कि जिन प्रकरणों में आबादी व्यवस्थापन का लाभ दिया जाएगा, उनमें 5, 6 या 7 प्रतिशत आबादी का भूखंड और प्राधिकरण की आवासीय भूखंड योजनाओं में आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाएगा। इस पूरे मामले की जांच करने के लिए एसआईटी ने ग्रेटर नोएडा विकास प्राधिकरण से 7 तरह की सूचनाएं मांगी थीं।
  1. किसान के पास उपलब्ध कुल भूमि कितनी थी। 
  2. आबादी के लिए छोड़ी गई भूमि का क्षेत्रफल कितना है। 
  3. जिन प्रकरणों में किसानों को एक से अधिक बार लाभ दिया गया है, उनकी संख्या और विवरण। 
  4. 24 अप्रैल 2010 के शासनादेश के अनुसार आबादी व्यवस्थापन होने के बाद भी 6% आबादी भूखंड का लाभ पाने वाले लोगों के नाम। 
  5. इस शासनादेश के बाद प्राधिकरण की आवासीय योजनाओं में भी प्लॉट आरक्षण का लाभ पाने वाले लोगों के नाम। 
  6. जिन प्रकरणों में भूमि अधिग्रहण करने के लिए अधिग्रहण कानून की धारा-4 के बाद भूमि क्रय की गई है, उनका संपूर्ण विवरण।
  7. ऐसे प्रकरणों की जानकारी मांगी गई, जिनमें विकास प्राधिकरण ने  बैनामा के आधार पर सीधे भूमि खरीदी थी और उसके बाद भी आबादी व्यवस्थापन का लाभ दिया गया है।
एसआईटी ने सरकार से 6 सिफारिश की हैं

एसआईटी ने रिपोर्ट में बताया है कि कुल 2192 प्रकरणों में से ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने केवल 44 केसों में मुआवजा उठाने की जानकारी दी है। बाकी मामलों में किसानों ने मुआवजा नहीं उठाया है। ऐसे में खातेदार का मूल निवासी होने या नहीं होने की जानकारी देना कठिन है। इन प्रकरणों की जांच करवाकर मूल और बाहरी काश्तकार की सूचना मांगी गई है। इस बारे में गौतमबुद्ध नगर के जिलाधिकारी से सूचनाएं लेकर अलग से रिपोर्ट शासन को भेजी जाएगी। अपनी जांच के आधार पर एसआईटी ने शासन से छह सिफारिश की हैं।
  1. लीजबैक पॉलिसी आने से पहले ही 208 लोगों को जमीन लौटाई गई : 24 अप्रैल 2010 को जारी शासनादेश से पहले लीजबैक के 208 मामले हैं। इनमें से 194 मामले बादलपुर गांव के हैं और 14 प्रकरण खेड़ा चौहान पुर गांव के हैं। यद्यपि यह सभी प्रकरण ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण के बोर्ड से अनुमोदित हैं, लेकिन शासन ने लीजबैक करने का कोई आदेश जारी नहीं किया है।
  2. 159 लोगों को लीजबैक के बाद 6% भूखंड भी दे दिए गए : इस सभी प्रकरणों में आबादी के लिए दी जाने वाले 5, 6 या 7 प्रतिशत आवासीय प्लॉटों के आवंटन और प्राधिकरण की आवासीय योजनाओं में आरक्षण का कोई लाभ अनुमन्य नहीं होगा। इसके बावजूद इन 1451 मामलों में से 159 ऐसे हैं, जिसमें लीजबैक के साथ-साथ 6% आबादी भूखंडों का भी लाभ दिया गया है। यह शासनादेश का उल्लंघन है और अनियमित स्वीकृति है। हालांकि, अभी तक किसी भी किसान को प्राधिकरण की आवासीय भूखंड योजना में आरक्षण का लाभ नहीं दिया गया है।
  3. 136 लोगों को एक से अधिक बार लीज बैक का लाभ दिया गया है : जिन प्रकरणों में किसानों को एक से अधिक बार लीजबैक का लाभ दिया गया है, उनकी संख्या 136 है। हालांकि, दोबारा लाभ देने पर नियमों में निषेध नहीं है, लेकिन यह लीजबैक के उद्देश्य के प्रतिकूल है। क्योंकि लीजबैक किसानों के अपरिहार्य आवासीय प्रबंध के लिए है, ना कि परिवारों को एक से अधिक आवास उपलब्ध कराने के लिए है।
  4. केवल 2 किसानों की आबादी सैटेलाइट इमेजरी ने सही मानी थी : लीज बैक नियमावली के तहत किसानों को आवासीय जमीन लौटाने के लिए एक तकनीकी व्यवस्था स्थापित की गई है। जिसके तहत मौके पर निर्माण का पता लगाने के लिए वर्ष 2011 की सेटेलाइट इमेजरी का उपयोग किया गया है। विशेष जांच दल को सैटेलाइट इमेजरी और स्थल पर निर्माण होने, आंशिक निर्माण होने अथवा निर्माण नहीं होने की स्थलीय रिपोर्ट के निष्कर्ष भी उपलब्ध करवाए गए हैं। जिसमें बताया गया है कि लीजबैक स्वीकृति के 394 मामलों में मौके पर निर्माण नहीं मिला था। 1776 प्रकरणों में आंशिक निर्माण पाया गया था। केवल 2 मामले ऐसे हैं, जिनमें मौके पर पूर्ण निर्माण मिला था।
  5. जिनके खिलाफ शिकायत की गई, उन्हें फिलहाल क्लीन चिट मिली : लीजबैक घोटाले का आरोप लगाते हुए कुछ चुनिंदा लोगों के खिलाफ शिकायत की गई थी। आरोप था कि यह लोग गांव के मूल काश्तकार नहीं हैं। मुंबई और दिल्ली समेत देश के अलग-अलग शहरों से आकर उन्होंने यहां जमीन खरीदी थीं। इन लोगों को बहुत बड़ा रकबा लीज बैक के रूप में वापस सौंप दिया गया है। इन शिकायतों के आधार पर स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम का गठन हुआ। एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, "24 अप्रैल 2010 को जारी किए गए शासनादेश में पात्रता का मापदंड निर्धारित नहीं था। यह निश्चित नहीं था कि यह सुविधा गांव के निवासियों को ही अनुमन्य होगी और बाहर के निवासियों को नहीं। क्योंकि यह व्यवस्था शासनादेश में उल्लिखित नहीं थी, अतः इस तरह के प्रकरणों में कोई कार्यवाही किए जाने का आधार नहीं बनता है।" एसआईटी ने अपनी सिफारिश में यह भी लिखा है कि गौतमबुद्ध नगर के जिलाधिकारी से सूचनाएं मांगी गई हैं। मूल काश्तकार और बाहरी के बारे में सूचना प्राप्त होने के बाद अलग से रिपोर्ट शासन को भेजी जाएगी।

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