Noida : चंद्रयान-3 चांद की धरती पर कदम रख चुका है और इसके रोवर ने चांद पर चहलकदमी शुरू कर दी है। भारतीय स्पेस एजेंसी ISRO के वैज्ञानिकों ने पूरी दुनिया को दिखा दिया कि हम किसी से कम नहीं है। इस उपलब्धि के बाद चांद की जमीन पर उतरने वाला अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत चौथा देश बन गया है। इस सफलता के पीछे इसरो की मेहनत तो है ही, देश की कई दूसरी कंपनियों का भी योगदान है, जिन्होंने चंद्रयान को चांद पर उतारने में पूरा योगदान दिया। इनमें नवरत्नों में शामिल दो सरकारी कंपनियां भी हैं। इनमें एक है दुनिया की सबसे पुरानी एयरोस्पेस कंपनियों में से एक हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL- Hindustan Aeronautics Limited) है। आपको यह जानकार ताज्जुब होगा कि यह वही कंपनी है, जिसे लड़ाकू विमान राफेल के एसेंबलिंग और मेंटीनेंस के लिए अयोग्य समझा गया और उसका कांट्रेक्ट अंत समय में अनिल अंबानी की कंपनी को दे दिया गया था। इसके अलावा इस मिशन की सफलता में शामिल दूसरी कंपनी है भारत हैवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड।
राफेल डील को लेकर हुआ था हल्ला
विपक्ष का आरोप था कि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को राफेल सौदे से बाहर रखा गया, तो इसकी क्षमताओं पर सवाल उठाए गए। कई लोगों ने इस समझौते को भारतीय रक्षा क्षेत्र की पीएसयू के लिए मौत की घंटी करार दिया था। हालांकि, कंपनी ने पिछले पांच वर्षों में भारतीय शेयर बाजार में अपने बाजार पूंजीकरण या कुल मूल्य में 280 प्रतिशत की वृद्धि के साथ सभी उम्मीदों को खारिज कर दिया था। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने राफेल का ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट एचएएल से लेकर अनिल अंबानी की कंपनी को देने पर सवाल खड़े किए थे। हालांकि, इस विवाद को दरकिनार कर मोदी सरकार राफेल डील पर आगे बढ़ गई थी।
हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड
हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स कंपनी, जिसे एचएएल भी कहा जाता है, की स्थापना देश की आजादी से पहले 1940 में हो चुकी थी। इसी वजह से एचएएल सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया की सबसे पुरानी एयरोस्पेस और डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग कंपनी है। एचएएल का चंद्रयान-3 मिशन में काफी अहम योगदान दिया है। जानकारी के अनुसार, एचएएल ने चंद्रयान-3 को तैयार करने के लिए जरूरी कंपोनेंट दिए हैं।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, एचएएल-एलएंडटी कंसोर्टियम ने पिछले साल न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) से पांच पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) रॉकेट बनाने के लिए 860 करोड़ का कांट्रेक्ट जीता था, जिन्हें भारत के वर्कहॉर्स स्पेसक्राफ्ट के रूप में जाना जाता है। जानकारी के अनुसार नेशनल एयरोस्पेस लैबोरेटरीज (NAL) को सप्लाई किए गए कई पार्ट चंद्रयान-3 मिशन के लिए काफी जरूरी थे।
बीएचईएल की बनेगी पहचान
भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड देश बड़ी सरकारी कंपनियों में से एक है। इस कंपनी को महारत्न कंपनी का दर्जा हासिल है। इस कंपनी को भी अस्तित्व में आए 50 साल से ज्यादा हो चुके हैं। यह कंपनी भारत में अपनी तरह की सबसे बड़ी इंजीनियरिंग और मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों में से एक है। भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स एक इंटिग्रेटिड पावर प्लांट डिवाइस मेकर है, जो पॉवर, ट्रांसमिशन, इंडस्ट्री, ट्रांसपोर्ट, डिफेंस आदि सेक्टर्स के लिए प्रोडक्ट्स और सर्विसेज की कई रेंज के डिजाइन, इंजीनियरिंग, निर्माण, टेस्टिंग, कमीशनिंग और सर्विसिंग में शामिल है। इस कंपनी ने भी चंद्रयान-3 मिशन को सफल बनाने में काफी अहम योगदान दिया है। इस कंपनी ने इसरो को काफी सामान चंद्रयान तैयार करने के लिए उपलब्ध कराया है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बीएचईएल ने चंद्रयान-3 मिशन के लिए इसरो को अपनी 100वीं बैटरी की सप्लाई की है। इसके अलावा कंपनी ने कई तरह के दूसरे कंपोनेंट भी अवेलेबल कराए थे।
बढ़ेगा भारत का एयरो प्रोडक्ट्स का एक्सपोर्ट
चंद्रयान की सफलता के बाद एचएएल-बीएचईएल के डिवाइसेस और जरूरी कंपोनेंट की डिमांड में इजाफा होने की उम्मीद है। जानकारों की मानें तो चंद्रयान-3 के सफल होने की जरूरत इसलिए भी थी, ताकि एचएएल-बीएचईएल की पहचान दुनिया में बन सके और दूसरे देशों से एयरोस्पेस डिवाइस और कंपोनेंट का एक्सपोर्ट बढ़ सके। वोल्जा के इंडिया एक्सपोर्ट डेटा के अनुसार, 11 अगस्त 2023 तक भारत से रॉकेट निर्यात शिपमेंट 8,400 था, जिसे 1,465 भारतीय निर्यातकों द्वारा 2,548 खरीदारों को निर्यात किया गया था।
विश्व का तीसरा बड़ा एक्सपोर्ट
भारत अपने अधिकतर रॉकेट संयुक्त राज्य अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात और यूनाइटेड किंगडम को निर्यात करता है और दुनिया में रॉकेट का तीसरा सबसे बड़ा एक्सपोर्टर है। रॉकेट के टॉप-3 एक्सपोर्टर में पहला नाम चीन का है, जिसने अभी तक 27,145 शिपमेंट एक्सपोर्ट की है। दूसरे नंबर पर वियतनाम है, जिसके शिपमेंट एक्सपोर्ट का आंकड़ा 10,566 है। तीसरे पायदान पर 8,378 शिपमेंट के साथ भारत है।