ताज महल विवाद : डॉ.महेश शर्मा ने बतौर संस्कृति मंत्री लोकसभा में दिया था बयान, सरकार के पास कोई सबूत नहीं कि ताजमहल हिंदू मंदिर था

देश | 2 साल पहले | Pankaj Parashar

Tricity Today | ताज महल के सामने बैठे डॉ.महेश शर्मा, यूएनईपी के कार्यकारी निदेशक एरिक सोलहेम और यूएनईपी सद्भावना दूत और अभिनेत्री दीया मिर्ज़ा। फाइल फोटो



New Delhi : ताजमहल मंदिर था, इस मुद्दे को लेकर भाजपा के कार्यकर्ता डॉ.रजनीश ने हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में याचिका दाखिल की है। याचिका ताजमहल के शिव मंदिर या तेजो महालय होने का दावा करती है। इस पर मंगलवार को सुनवाई होनी थी, लेकिन वकीलों की हड़ताल के चलते टल गई है। दूसरी तरफ सोशल मीडिया पर जंग छिड़ी है। भाजपा कार्यकर्ता और हिन्दुवादी संगठन ताजमहल के तहखाने खोलने की मांग को जायज करार दे रहे हैं। दूसरी तरफ वाले लोगों ने मुद्दे को पूर्व केंद्रीय संस्कृति मंत्री और गौतमबुद्ध नगर के सांसद डॉ. महेश शर्मा की ओर मोड़ दिया है। इनका कहना है, "बतौर संस्कृति मंत्री डॉ.महेश शर्मा ने वर्ष 2015 में लोकसभा में एक बयान दिया था। उन्होंने साफतौर पर कहा था कि सरकार के पास ऐसा कोई सबूत नहीं है, जिससे यह पता चले कि ताजमहल पहले मंदिर था।"

महेश शर्मा ने लोकसभा में क्या कहा था?
करीब 6 साल पहले 1 दिसंबर 2015 को तत्कालीन केंद्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने कहा था, "सरकार के पास इस बात का कोई सबूत नहीं है कि ताजमहल कभी हिंदू मंदिर था।" उस दिन लोकसभा में एआईएडीएमके के सांसद बी.सेनगुट्टुवन की ओर से पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए शर्मा ने यह बात कही थी। दरअलस, सरकार का नजरिया उस पिटीशन के बाद आया था, जिसे आगरा के कुछ वकीलों ने दायर किया था और दावा किया था कि ताजमहल पहले शिव मंदिर था। वकीलों ने मांग की थी कि ताजमहल का मालिकाना हक हिंदुओं को ट्रांसफर किया जाए। मुस्लिमों को वहां नमाज अदा करने से रोका जाए। वकीलों ने आगरा की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में याचिका मार्च 2015 में दायर की थी।

डॉ.शर्मा को विवाद और टूरिज्म पर असर पड़ने का डर था
1 दिसम्बर 2015 को तत्कालीन संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने कहा था, "सरकार को पिटीशन के बारे में पूरी जानकारी है, लेकिन टूरिज्म पर असर पड़ने और विवाद होने के चलते सरकार इस मामले पर गौर करने की जरूरत नहीं समझती है।"

अब नया मामला क्या है
अब एक याचिका प्रयागराज हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में दायर की गई है। जिसमें कहा गया है कि ताजमहल के तहखाने में कुल 22 कमरे हैं। इनमें से 20 कमरे बन्द पड़े हैं। जिन्हें खोलने की इजाजत देने के लिए लखनऊ हाईकोर्ट में यह याचिका दर्ज की गई है। याचिकाकर्ता का कहना है कि उसे 20 कमरों में तेजो महालय के सबूत होने की जानकारी मिली है। इसीलिए 20 कमरे खुलवाने के लिए याचिका दायर की है। यह साफ होना चाहिए कि वह शिव मंदिर है या वाकई मकबरा है। अगर बंद दरवाजे खुलेंगे तो यह विवाद हमेशा के लिए दफन हो जाएगा। याचिका पर फैसला कोर्ट करेगा, लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो ताज के 22 बंद दरवाजों को खोलना आसान नहीं है।

विश्व विरासत को खतरा, UNESCO का दखल और करोड़ों का खर्च
ताज महल के बंद दरवाजों को खोलने में कई अड़चनें हैं। इसे वर्ल्ड हेरिटेज का दर्जा हासिल है। इस इमारत से छेड़छाड़ के लिए करोड़ों रुपए और विशेषज्ञों की बड़ी टीम की जरूरत पड़ेगी। ताजमहल वर्ल्ड हैरीटेज मॉन्यूमेंट है, इसलिए UNESCO इस मामले में जरूर दखल देगा।

पहले सरकार और ASI कर चुकी है दावा खारिज
आपको बता दें कि आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने यह दावा खारिज कर दिया था कि 17वीं सदी का मुगल स्मारक ताजमहल कभी एक शिव मंदिर रहा था। ताजमहल को दुनिया के सात अजूबों में से एक माना जाता है। इसे वर्ष 1632 में मुगल शासक शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद में बनवाया था। यह यूनेस्को की विश्व धरोहरों में शामिल है।

सेंट्रल स्टडीज एंड हेरिटेज मैनेजमेंट रिसोर्सेज, पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट अहमदाबाद में ऑनरेरी डायरेक्टर देबाशीष नायक कहते हैं, 'ताजमहल वर्ल्ड हेरिटेज है, ऐसे में उसके ढांचे से छेड़छाड़ करने के लिए UNESCO से डिस्कस करना पड़ेगा। लॉजिक देना पड़ेगा। उसके बाद ही आप दरवाजे खोल सकते हैं।' लेकिन क्या यह संभव है अगर कोर्ट ASI को उन दरवाजों को खोलने का निर्देश दे और याचिकाकर्ता का दावा ठीक निकले, तो भी वह वर्ल्ड हेरिटेज रहे? वे कहते हैं, यह दूर की कौड़ी है। लेकिन अगर हेरिटेज इमारत का ऑब्जेक्टिव चेंज होगा तो UNESCO दखल जरूर देगा। उसके बाद वह इस पर फाइनल फैसला लेगा।

ताजमहल के आर्किटेक्चर को बचाए रखना बड़ी चुनौती
BHU की हिस्ट्री प्रोफेसर और आर्कियोलॉजिस्ट बिंदा कहती हैं, 'ताजमहल का आर्किटेक्चर बेहद अनूठा है। आप देखिए कि उस पर लिखी कुरान की आयतों को आप जिस भी डायरेक्शन से देखें तो वे दिखाई देती हैं। इसका मतलब है कि तब के कारीगरों और एक्सपर्ट्स ने इंसानी विजन को समझकर उसका वैज्ञानिक विश्लेषण करने के बाद आयतें इस ढंग से लिखी होंगी कि दूर से और हर एंगल से दिखाई दें। ऐसे में अगर दरवाजे खोलने का निर्णय लिया गया तो पहले बेहद सावधानी और एक्सपर्ट्स की टीम के साथ काम करना होगा।

बिंदा के मुताबिक, 'टीम की कई स्तरों पर गठन करने की जरूरत होगी। पहली आर्काइव को खंगालने के लिए, दूसरी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की टीम और फिर ऐसी टीम जो केमिस्ट्री यानी केमिकल्स की जानकार हो। अगर कोई स्ट्रक्चर जरा सा भी क्षतिग्रस्त हुआ तो उसे मेंटेन करना आसान नहीं होगा। इन सबके लिए करोड़ों रुपए के फंड की जरूरत होगी। ऐसे में अगर ताजमहल के दरवाजे खोलने का निर्णय हुआ तो सबसे पहले फंड एलोकेट करना होगा। वह कोई छोटा-मोटा फंड नहीं होगा। कई काम फंड की कमी से बीच में ही अटक जाते हैं।'

इतिहासकारों को भी नहीं पता, क्यों बंद हैं दरवाजे
आप हिस्ट्री की प्रोफेसर हैं, आपको क्या लगता है, आखिर यह 22 दरवाजे बंद क्यों हैं? इस सवाल पर प्रोफेसर बिंदा कहती हैं, 'देखिए कोणार्क मंदिर का भी कुछ हिस्सा बंद था, लेकिन उसके पीछे की वजह यह थी कि वह डैमेज हो रहा था। अगर उसे पर्यटकों के लिए खोला रखा जाता तो वह और डैमेज हो जाता। अब ताजमहल के बंद दरवाजों के पीछे रहस्य क्या है, यह तो उनके खुलने के बाद ही पता चलेगा। मेरी चिंता बस यह है कि अगर कोई विवाद है तो उसे सुलझाया जाए, लेकिन वैश्विक धरोहरों और दुनिया के लिए मिसाल बने आर्किटेक्चर से छेड़छाड़ न हो। अगर कुछ करना है तो फिर ऐसे हो कि विवाद भी सुलझ जाए और वह इमारत अपने मूल रूप में भी बनी रहे।'

याचिकाकर्ता ने कहा- भविष्य के विवाद से बचने के लिए पर्दा उठाना जरूरी
रजनीश सिंह ने कहा, 'मैं केवल शंका का समाधान चाहता हूं। जो सच होगा, वह सामने आएगा। वे 22 दरवाजे खुलेंगे, तो पता चलेगा कि वह मकबरा है या मंदिर है। मैं अभी से कोई दावा नहीं करता। उन्होंने यह भी साफ किया कि उनकी याचिका का भारतीय जनता पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है। यह उनकी व्यक्तिगत याचिका है।

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