Google Image | केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन
केंद्र सरकार ने कोरोना महामारी में इलाज को लेकर एक बड़ा बदलाव किया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने कोविड हॉस्पिटल में कोरोना मरीजों की भर्ती से जुड़े राष्ट्रीय नीति की समीक्षा के बाद यह फैसला लिया है। नई नीति में यह कहा गया है कि किसी भी कोविड हॉस्पिटल में भर्ती होकर इलाज कराने के लिए कोविड पॉजिटिव टेस्ट होना जरूरी नहीं है। कोरोना के लक्षण वाले मरीज भी बिना कोविड टेस्ट कराए सीधे अस्पतालों में भर्ती हो सकते हैं। उनका इलाज किया जाएगा।
हर स्वास्थ्य केंद्र पर होगा इलाज
केंद्र सरकार द्वारा जारी नई गाइडलाइन के मुताबिक अब कोरोना के संभावित संक्रमितों को भी CCC, DCHC या DHC सेंटर पर बने आइसोलेशन वॉर्ड में भर्ती कर उनका उपचार किया जाएगा। किसी भी सूरत में मरीजों को इलाज से इनकार नहीं किया जाएगा। यहां तक कि स्वास्थ्य केंद्र और अस्पताल मरीजों से ऑक्सीजन या दवाइयों की कमी का हवाला देकर भी उन्हें भर्ती कर उपचार से इनकार नहीं करेंगे। अगर मरीज दूसरे शहर का है, तो भी वह अपनी मौजूदा स्थिति के मुताबिक हॉस्पिटल में एडमिट होकर इलाज करा सकेगा।
स्थानीय बनाम बाहरी को नकारा गया
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इलाज में स्थानीय बनाम बाहरी को पूरी तरह नकार दिया है। नई पॉलिसी में कहा गया है कि निवासी अपने वर्तमान स्थिति के अस्पतालों में मेडिकल सेवाएं ले सकेंगे। कोई भी हॉस्पिटल सिर्फ इस वजह से उन्हें इलाज से इनकार नहीं करेगा, कि उनके पास उस शहर का कोई वैध पहचान और पते का प्रमाण पत्र नहीं है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने कहा है कि अस्पतालों में भर्ती होने का अधिकार जरूरत पर आधारित है। किसी भी राज्य या जिले का निवासी अपने मौजूदा राज्य-जिले में बेरोकटोक अपना उपचार करा सकेगा।
स्थानीय लोगों को मिलती है प्राथमिकता
दरअसल कोरोना की दूसरी लहर ने पूरे देश में बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं को तबाह कर दिया है। लोगों को अस्पताल-ऑक्सीजन, बेड और दवाएं नहीं मिल रहीं। हर राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन पर अपने निवासियों को चिकित्सकीय सुविधाएं देने का दबाव है। इसके चलते ज्यादातर जिलों में पहले वहां के स्थानीय निवासियों को इलाज मिल रहा है। अस्पतालों में भर्ती करते मरीजों और परिजनों से स्थानीय होने का सबूत मांगा जाता है। इसकी वजह से उन लाखों लोगों को परेशानी होती है, जो उस शहरों में अपनी जिंदगी का ज्यादा हिस्सा बिता चुके हैं, लेकिन उनके पास वहां का कोई प्रमाण पत्र नहीं है। ऐसे लोगों को समय पर उपचार नहीं मिल पा रहा है। पूरे देश में इस तरह का भेदभाव सामने आया था। ऊपर से कोरोना की दूसरी लहर का वायरस कोई अंतर नहीं कर रहा। इसमें सबको उपचार की जरूरत है। इसलिए केंद्रीय मंत्रालय ने यह अहम फैसला लिया है। sp;