यथार्थ अस्पताल में कोरोना संक्रमित की मौत, 24 घण्टे तक डेडबॉडी नहीं देने का आरोप, अस्पताल प्रबंधन ने आरोप ख़ारिज किए

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ग्रेटर नोएडा वेस्ट के यथार्थ अस्पताल में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज की मौत हो गई। परिवार का आरोप है कि अस्पताल ने करीब 11:50 लाख रुपये का बिल दिया। परिवार ने 4.20 लाख रुपये जमा किए। परिवार का आरोप है कि अस्पताल ने पूरा बिल जमा किए बिना डेडबॉडी नहीं दी। परिवार में पत्नी और दो छोटे बच्चे हैं। इस पर यथार्थ अस्पताल के प्रवक्ता का कहना है कि इलाज लंबा चला था। वह ठीक भी हो गए थे। उन्हें प्लाज्मा थेरेपी दी गई थी, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण यह रहा कि शनिवार को उन्हें कार्डियक अरेस्ट आया। जिसकी वजह से उनकी मौत हुई। डेड बॉडी 24 घंटे रोककर रखने की बात गलत है।

मूल रूप से जेवर क्षेत्र के नगला शाहपुर गांव के रहने वाले एडवोकेट राजबहादुर सिंह ग्रेटर नोएडा के सेक्टर गामा-दो में परिवार के साथ रह रहे थे। उन्हें लिवर से जुड़ी बीमारी थी। उन्हें ग्रेटर नोएडा वेस्ट के यथार्थ अस्पताल में भर्ती करवाया गया था, जहां कोरोनावायरस मन की पुष्टि की गई थी। परिवार का आरोप है कि अस्पताल ने करीब 11.50 लाख रुपये का बिल दिया। परिवार ने 4.20 लाख रुपये जमा किए। अस्पताल प्रबंधन ने बाकी सात लाख रुपए जमा किए बिना डेड बॉडी देने से इनकार कर दिया। एडवोकेट राजबहादुर सिंह गौतमबुद्ध नगर बार एसोसिएशन के करीब 30 साल पुराने सदस्य थे। परिजनों ने बार एसोसिएशन के सदस्यों को इस बारे में जानकारी दी। वकीलों का कहना है कि परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। रोता बिलखता परिवार परेशान है। विधवा के पास पैसा नहीं है। कोई जमापूंजी 7 लाख रुपये जमा करने के लिए नहीं है।  इस घटना से वकीलों में ज़बरदस्त रोष है। लगभग 24 घण्टे से वकील राजबहादुर सिंह की डेडबॉडी अस्पताल में रोककर रखी है।

दोपहर में यह प्रकरण वकीलों के जरिए जिलाधिकारी और मुख्य चिकित्सा अधिकारी के सामने रखा गया। प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने अस्पताल प्रबंधन से बातचीत की। इसके बाद डेडबॉडी परिवार को सौंपी गई है। परिवार ने अंतिम संस्कार कर दिया है। दूसरी और इस प्रकरण के बारे में यथार्थ अस्पताल के प्रवक्ता गुल मोहम्मद ने कहा, यह आरोप गलत है कि डेडबॉडी को 24 घंटे रोककर रखा गया था। एडवोकेट राजबहादुर सिंह का लंबे समय तक इलाज चला था। उन्हें कोरोना संक्रमण के अलावा दूसरी बीमारी भी थी। उन्हें बचाने के लिए प्लाजमा थेरेपी भी दी गई थी। अब वह पूरी तरह स्वस्थ हो चुके थे। जल्दी उन्हें अस्पताल से छुट्टी दी जानी थी, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से उन्हें कार्डियक अरेस्ट आया। राज बहादुर सिंह को बचाने की भरपूर कोशिश की गई, लेकिन उनकी मौत हो गई। परिवार ने 4.20 लाख रुपये जमा किए थे। बाकी बिल जमा करने के लिए उन्हें कहा गया था। कुछ लोगों ने इस प्रकरण को अनावश्यक रूप से तूल देने का प्रयास किया है। अस्पताल ने परिवार की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए परिजनों को शव सौंप दिया है। राज बहादुर सिंह के उपचार में पूरी तरह कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन किया गया है।

दूसरी ओर इस पूरे प्रकरण के बारे में जिलाधिकारी सुहास एलवाई ने कहा, "हम लगातार लोगों से अपील कर रहे हैं कि ग्रेटर नोएडा के राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान और नोएडा के सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में कोरोनावायरस संक्रमण के उपचार से जुड़ी अच्छी सुविधाएं उपलब्ध हैं। लोगों को अनावश्यक रूप से पैसा खर्च करने की आवश्यकता नहीं है। हमारे सरकारी अस्पतालों में आसानी से बेड उपलब्ध हैं। लिहाजा, सभी को सरकारी सुविधाओं का भरपूर उपयोग करना चाहिए। इस महामारी के दौर में आर्थिक नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा। अगर एडवोकेट राज बहादुर सिंह का परिवार शिकायत देता है तो मुख्य चिकित्सा अधिकारी से जांच करवाई जाएगी। देखा जाएगा उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से निर्धारित प्रोटोकोल और दरों के मुताबिक उपचार किया गया है या नहीं किया गया है।

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