यमुना एक्सप्रेस वे की बड़ी खबर, अब बैंक और प्राधिकरण मिलकर चलाएंगे एक्सप्रेस वे, टोल रेट और टाइम की पूरी जानकारी

Tricity Today | Yamuna Expressway



जेपी इंफ्राटेक के खिलाफ नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) से आए फैसले ने यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण और बैंकों को बड़ी राहत दी है। जेपी इंफ्राटेक और यमुना प्राधिकरण के बीच हुए अनुबंध नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कारपोरेशन (एनबीसीसी) को भी मानने होंगे। एनसीएलटी ने अपने आदेश में कहा है कि यमुना एक्सप्रेस वे के संचालन और रखरखाव आदि के लिए नए एसपीवी (स्पेशल परपज व्हीकल) का गठन करना होगा।

नए एसपीवी में एनबीसीसी, यमुना प्राधिकरण और बैंक के प्रतिनिधि शामिल किए जाएंगे। अब यमुना एक्सप्रेस वे पर हादसों को रोकने के लिए आईआईटी के सुझावों पर भी एसपीवी को ही काम करना होगा। इस कंपनी के पास 5 टाउनशिप की जमीन है। इन जमीनों को बेचने या विकसित करने का अधिकार नई कंपनी को दिया गया है।

गौरतलब है कि जेपी ग्रुप ने यमुना एक्सप्रेस वे का निर्माण करने के लिए तत्कालीन मायावती सरकार के कार्यकाल में एग्रीमेंट किया था। करीब 12 हजार करोड़ रुपये की इस परियोजना की एवज में जेपी ग्रुप की कंपनी जेपी इंफ्राटेक को दो महत्वपूर्ण लाभ दिए गए थे। यमुना एक्सप्रेस वे का संचालन करने का 36 वर्षों का अधिकार है। नोएडा से आगरा तक पांच स्थानों पर 500-500 हेक्टेयर (2,500 हेक्टेयर) जमीन दी गई थी। इन पांचों स्थानों पर जेपी इंफ्राटेक को टाउनशिप बसाने का अधिकार है।

एनसीएलटी ने अपने आदेश में कहा है कि जेपी इंफ्राटेक और यमुना प्राधिकरण के बीच हुए अनुबंध को एनबीसीसी मानेगा। एक्सप्रेस वे के संचालन और रखरखाव आदि के लिए एसपीवी का गठन होगा। ताकि एक्सप्रेस वे का सुचारु संचालन हो सके। इसके अलावा यमुना एक्सप्रेस वे पर टोल वसूली की समय सीमा में दस वर्ष का विस्तार करने की एनबीसीसी की मांग पर एनसीएलटी ने कहा कि यह निर्णय यमुना प्राधिकरण करेगा। एनबीसीसी को इसका प्रस्ताव यमुना प्राधिकरण को देना होगा। प्राधिकरण टोल वसूली के लिए दस वर्ष अतिरिक्त देने या नहीं देने पर फैसला लेगा।

इस मुद्दे पर यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के अधिकारियों का कहना है कि एनबीसीसी को इसके लिए वाजिब कारण बताना पड़ेगा। एनबीसीसी के प्रस्ताव पर प्राधिकरण विचार करेगा। उसके बाद यह प्रस्ताव बोर्ड में रखा जाएगा। टोल वसूली का समय बढ़ाने या नहीं बढ़ाने का निर्णय बोर्ड लेगा। अगर बोर्ड मंजूरी दे देगा तो फिर पारित प्रस्ताव को अंतिम मंजूरी के लिए प्रदेश सरकार को भेजा जाएगा।

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