Tricity Today | MLA Dhirendra Singh
गौतम बुद्ध नगर में जेवर विधानसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के विधायक ठाकुर धीरेंद्र सिंह ने न केवल अपने जिले बल्कि उत्तर प्रदेश के करोड़ों अभिभावकों को फीस वृद्धि से निजात दिलाने में बड़ी भूमिका अदा की है। धीरेंद्र सिंह ने जन भावनाओं को सरकार तक पहुंचाया बल्कि फीस वृद्धि को रुकवाने के लिए राज्य के डिप्टी चीफ मिनिस्टर दिनेश शर्मा के सामने अभिभावकों का पक्ष मजबूती के साथ पेश किया। सोमवार को राज्य सरकार ने यूपी में सभी बोर्ड के स्कूलों को आदेश जारी कर कहा है कि इस शिक्षण सत्र में फीस वृद्धि नहीं की जाएगी।
ग्रेटर नोएडा में फ्लैट खरीदारों की संस्था नेफोवा ने करीब 5 अप्रैल को फीस वृद्धि का विरोध करते हुए एक प्रत्यावेदन ठाकुर धीरेंद्र सिंह को दिया था। नेफोवा के अध्यक्ष अभिषेक कुमार का कहना है कि धीरेंद्र सिंह ने हमारी बात को स्वीकार किया और पक्ष को मजबूती के साथ डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा के सामने रखा था। विधायक ने डिप्टी सीएम से फोन पर बात की और बाद में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र भी लिख कर भेजा।
ग्रेटर नोएडा शहर के कई अभिभावकों ने भी ठाकुर धीरेंद्र सिंह से इस मुद्दे पर बात की थी। महिला शक्ति समाज समिति की अंजू पुंडीर ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के दौरान यह मुद्दा उठाया था। विधायक ने उन्हें आश्वासन दिया था कि वह उनकी मांग और भावना को सरकार तक पहुंचाएंगे। अंजू पुंडीर ने सोमवार को आए आदेश पर सरकार और विधायक धीरेंद्र सिंह को धन्यवाद दिया है। अंजू पुंडीर ने कहा कि विधायक धीरेंद्र सिंह ने लाखों अभिभावकों की बड़ी मदद की है।
सोमवार को सरकार की ओर से शासनादेश जारी करने के बाद विधायक धीरेंद्र सिंह ने खुशी जाहिर की। उन्होंने कहा, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा ने जन भावनाओं का ख्याल रखते हुए महत्वपूर्ण फैसला लिया है। जब मैंने डिप्टी सीएम से बात की थी तो उन्होंने आश्वासन दिया था कि वह इस मुद्दे पर शीघ्र ही निर्णय लेंगे। सोमवार को शिक्षा विभाग की ओर से आदेश जारी कर दिया गया है।
उत्तर प्रदेश सरकार ने सोमवार की शाम एक बड़ा आदेश जारी किया है। सरकार ने सभी स्कूलों को आदेश दिया है कि वह नए शिक्षण सत्र 2020-21 में किसी भी तरह की फीस नहीं बढ़ाएंगे। स्कूलों ने बीते शिक्षण सत्र 2020-19 में पुराने और नव प्रवेशी छात्र-छात्राओं से जितनी फीस ली थी, उतनी ही आगामी शिक्षण सत्र के दौरान लेनी होगी। सरकार ने यह भी आदेश दिया है कि अगर कोई स्कूल अपने छात्र-छात्राओं से बढ़ी हुई फीस ले चुका है तो वह आने वाले महीनों में उसे समायोजित करेगा।
उत्तर प्रदेश सरकार की प्रमुख सचिव आराधना शुक्ला ने सोमवार को नया शासनादेश जारी किया है। इससे पहले भी सरकार दो शासनादेश जारी कर चुकी है। सबसे पहले 2 अप्रैल को उत्तर प्रदेश सरकार की प्रमुख सचिव आराधना शुक्ला ने शासनादेश जारी करके प्राइवेट स्कूलों को आदेश दिया था कि वह अभिभावकों पर फीस वसूली के लिए दबाव नहीं बनाएं। अगर अभिभावक नए शिक्षण सत्र के लिए अभी फीस देने से इंकार कर रहे हैं तो किसी भी छात्र-छात्रा को ऑनलाइन क्लासेज से नहीं रोका जाना चाहिए। प्रमुख सचिव ने यह भी आदेश दिया था कि तीन महीनों अप्रैल मई और जून की फीस स्कूल प्रबंधन अगले महीनों में ले सकते हैं।
इसके बाद 20 अप्रैल को आराधना शुक्ला की ओर से दूसरा शासनादेश जारी किया गया। जिसमें अभिभावकों की मांग का हवाला देते हुए लिखा गया था की स्कूल शिक्षण शुल्क के साथ ट्रांसपोर्टेशन फीस भी वसूल कर रहे हैं। जब लॉकडाउन के कारण छात्र-छात्राएं स्कूलों में नहीं आ रहे हैं और पढ़ाई ऑनलाइन माध्यमों से की जा रही है तो ऐसे में ट्रांसपोर्टेशन फीस वसूल नहीं की जानी चाहिए।
प्रमुख सचिव ने सभी स्कूल प्रबंधनों को तत्काल ट्रांसपोर्टेशन फीस वसूली पर रोक लगाने का आदेश दिया था। साथ ही यह भी कहा था कि अगर स्कूलों ने यह फीस ले ली है तो इसे समायोजित किया जाए। अब सोमवार को आराधना शुक्ला ने तीसरा शासनादेश जारी किया है।
नए आदेश में उन्होंने लिखा है कि उत्तर प्रदेश में संचालित किसी भी बोर्ड का कोई भी स्कूल नए शिक्षण सत्र में शुल्क वृद्धि नहीं करेगा। अगर स्कूलों ने शुल्क वृद्धि कर दी है और अभिभावकों ने पहली तिमाही के लिए उसके अनुसार फीस जमा कर दी है तो उसे आने वाले महीनों की फीस में समायोजित कर लिया जाए।
आपको बता दें कि नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गाजियाबाद समेत पूरे उत्तर प्रदेश के अभिभावक लॉकडाउन व कोरोना वायरस के कारण व्याप्त महामारी का हवाला देते हुए फीस बढ़ाने का विरोध कर रहे हैं। बड़ी संख्या में ऐसे अभिभावक भी हैं जिनका कहना है कि फीस बढ़ाने की बजाय स्कूल प्रबंधन को फीस कम करनी चाहिए।
अभिभावक चाहते हैं कि नए शिक्षण सत्र के दौरान स्कूल प्रबंधन केवल ट्यूशन फीस लें। डेवलपमेंट फीस और अन्य मदों में ली जा रही फीस खत्म कर देनी चाहिए। इसके पीछे अभिभावकों का तर्क है कि सारे स्कूल नो प्रॉफिट नो लॉस के आधार पर सामाजिक संस्थाओं द्वारा संचालित किए जा रहे हैं। प्राइवेट स्कूल के पास करोड़ों रुपए की एफडीआर उपलब्ध हैं। ट्यूशन फीस अभिभावक देने के लिए तैयार हैं। जिससे शिक्षकों और कर्मचारियों का वेतन बहुत आसानी से दिया जा सकता है। ऐसे में बाकी मदों से होने वाले मुनाफे को प्राइवेट स्कूलों को छोड़ देना चाहिए।
पहले सरकार फीस वृद्धि के मुद्दे पर ही अभिभावकों को कोई राहत देने के लिए तैयार नहीं थी। लेकिन सोशल मीडिया और जनप्रतिनिधियों पर लगातार पड़ रहे दबाव के बाद सरकार ने फीस वृद्धि पर रोक लगा दी है।
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