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हाथरस में कथित गैंगरेप और उसके बाद दलित युवती की हत्या ने उत्तर प्रदेश में भूचाल ला दिया है। इस वक्त पूरा विपक्ष, मीडिया और सिविल सोसाइटी राज्य सरकार के खिलाफ तलवारें खींच कर खड़े हैं। मामले में सबसे आगे राहुल और प्रियंका गांधी नजर आ रहे हैं। बीते गुरुवार को बहन-भाई ने हाथरस जाने की कोशिश की थी। नोएडा डीएनडी तो पार कर लिया था, लेकिन ग्रेटर नोएडा में यमुना एक्सप्रेस वे पर चलना गौतमबुद्ध नगर पुलिस ने दुश्वार कर दिया था। अंततः हिरासत में लिया गया। मुकदमा दर्ज किया गया और रिहाई भी हुई। अब शनिवार की सुबह एक बार फिर राहुल गांधी ने ऐलान कर दिया कि वह हर हाल में हाथरस जाएंगे और दुनिया में कोई ताकत ऐसी नहीं है, जो उन्हें पीड़ित परिवार से मिलने से रोक सके।
राहुल गांधी का यह ट्वीट होने के तुरंत बाद उत्तर प्रदेश सरकार लखनऊ में और यहां गौतमबुद्ध नगर पुलिस हरकत में आ गई। आनन-फानन में करीब 2000 पुलिसकर्मी डीएनडी पर तैनात कर दिए गए। नोएडा डीएनडी पर कुछ इस कदर पुलिस और पीएसी तैनात की गई कि शायद अब से पहले कभी लोगों ने ऐसा नजारा देखा होगा। क्या राहुल और प्रियंका गांधी 3 अक्टूबर का इतिहास दोहराना चाहते थे? गांधी परिवार से जुड़ा 3 अक्टूबर का इतिहास क्या है? आइए हम आपको बताते हैं।
3 अक्टूबर 1977 की रात इंदिरा गांधी ने पुलिस की हिरासत में गुजारी थी। राजनीतिक रूप से देश की सबसे शक्तिशाली महिला को पहली बार पुलिस हिरासत में जाना पड़ा था। हालांकि, यह उनकी चंद घंटों की हिरासत थी और उन्हें गिरफ्तार करने वाले तत्कालीन गृह मंत्री चौधरी चरण सिंह के हाथ-पांव फूले हुए थे। दरअसल, कहानी कुछ इस तरह थी। आपातकाल के बाद देश में चुनाव हुआ और इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस बुरी तरह चुनाव हार गई थी। जनता पार्टी को बहुमत मिला और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बन गए थे। उनके गृह मंत्री किसान नेता चौधरी चरण सिंह थे। दोनों ही पहले इंदिरा गांधी की कैबिनेट में मंत्री रह चुके थे।
पूरी जनता पार्टी ने इंदिरा गांधी को जेल भेजने की योजना बनाई। यह काम आसान नहीं था। मोरारजी देसाई की कैबिनेट में इंदिरा गांधी से चुनाव हार कर लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने वाले तत्कालीन हेल्थ मिनिस्टर राजनारायण थे। राजनारायण और इंदिरा गांधी के मुकदमे की बदौलत ही देश में इमरजेंसी लगी थी। आपातकाल का हथकड़ी लगे हाथ वाला जॉर्ज फर्नांडिस का फोटो प्रतीक बन गया था। मोरारजी देसाई के साथ फर्नांडीज इंडस्ट्री मिनिस्टर थे। लालकृष्ण आडवाणी इंफॉर्मेशन मिनिस्टर थे। शांति भूषण कानून मंत्री थे। विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेई थे। यह सब लोग इंदिरा गांधी को सलाखों के पीछे देखना चाहते थे। दरअसल, इंदिरा गांधी की वजह से ही लोगों ने महीनों अनजानी जिलों में गुजारे थे।
चौधरी चरण सिंह तो 1977 में सरकार बनते ही इंदिरा गांधी को जेल भेजना चाहते थे, लेकिन मोरारजी देसाई कुछ मामलों में सैद्धांतिक रूप से बड़े मजबूत थे और वह कोई भी काम कानून के खिलाफ करने को तैयार नहीं हुए। लिहाजा, इंदिरा गांधी के खिलाफ फाइलें खोली गईं। भ्रष्टाचार के मामले लगाए गए और जांच के लिए शाह आयोग का गठन किया गया। इंदिरा गांधी को जीप घोटाले में फंसाया गया। आरोप लगा कि रायबरेली का चुनाव लड़ने के लिए 40 जीप खरीदी गई थीं। जिनकी कीमत करीब चार लाख रुपये थी। राज नारायण ने आरोप लगाया कि वह जीप कांग्रेस के पैसे से नहीं, बल्कि उद्योगपतियों और सरकारी पैसे से खरीदी गई थीं।
कुल मिलाकर चौधरी चरण सिंह ने अपने भरोसेमंद अफसरों को आगे किया और तत्कालीन सीबीआई डायरेक्टर एनके सिंह को यह ऑपरेशन करने की जिम्मेदारी दी गई। पहले 1 अक्टूबर को इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी की तारीख तय हुई। लेकिन चौधरी चरण सिंह की पत्नी ने उस पर वीटो लगा दिया। दरअसल, वर्ष 1977 में 1 अक्टूबर को शनिवार था। चौधरी चरण सिंह की पत्नी धर्म-कर्म में भरोसा रखती थीं। लिहाजा, शनिवार का दिन उन्होंने इस सब काम के लिए अशुभ समझा। चौधरी चरण सिंह ने तारीख बदल दी और इसके बाद तय हुआ इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी 3 अक्टूबर को की जाएगी। इस तरह 3 अक्टूबर को शाम करीब 4:55 बजे सीबीआई के एसपी इंदिरा गांधी के आवास पर पहुंचे। इंदिरा गांधी का सहायक बाहर आया। सीबीआई के एसपी ने उन्हें बताया, "वी आर हियर टू एस्कॉर्ट मिसेज गांधी इनटू कस्टडी अंडर सेक्शन 5(2) ऑफ द प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट।" कुल मिलाकर उस दिन इंदिरा गांधी को गिरफ्तार कर लिया गया।
हथकड़ी को लेकर 3 घंटे से ज्यादा विवाद चला था
इंदिरा गांधी सीबीआई अफसरों के सामने आ गईं और गिरफ्तार होकर चलने के लिए तैयार हो गईं, लेकिन इंदिरा गांधी ने कहा कि वह हथकड़ी लगवाकर ही यहां से जाएंगी। इस पर सीबीआई के एसपी ने जवाब दिया कि हथकड़ी लगाने का आदेश नहीं दिया गया है। आपको बिना हथकड़ी ही चलना होगा। इस पर इंदिरा गांधी अड़ गईं और उन्होंने कहा कि वह घर जाएंगी तो हथकड़ी लगवाकर ही जेल जाएंगी। रात 8:00 बजे तक हाई वोल्टेज ड्रामा चलता रहा। तब तक इंदिरा गांधी के आवास के बाहर हजारों लोगों की भीड़ जमा हो गई। नारेबाजी शुरू हो गई और मीडिया का जमावड़ा लग गया। अंततः इंदिरा गांधी ने गिरफ्तारी दी और बमुश्किल 16 घंटे वह पुलिस हिरासत में रहीं। इंदिरा गांधी को जमानत मिल गई लेकिन 3 अक्टूबर 1977 की तारीख इंदिरा गांधी के राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिन बन चुका था।
आज ठीक 43 साल बाद राहुल और प्रियंका गांधी भी उसी मोड़ पर खड़े नजर आए। राहुल और प्रियंका गांधी के साथ पुलिस ने धक्का-मुक्की की। दोनों बहन-भाई के गिरेबान तक पुलिसकर्मियों के हाथ पहुंचे। जिस तरह नोएडा डीएनडी पर मोर्चाबंदी की गई थी, उसे देखकर लग रहा था कि पुलिस और उत्तर प्रदेश सरकार पीछे हटने वाले नहीं हैं। दूसरी ओर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भी ऐलान कर दिया था कि वह भी पीछे हटने वाले नहीं हैं। विश्वस्त सूत्रों के हवाले से यह जानकारी भी मिल रही थी कि अगर राहुल और प्रियंका गांधी को नोएडा से आगे नहीं बढ़ने दिया जाता तो वह डीएनडी पर धरना देने के लिए बैठ जाते। ऐसी परिस्थिति में उत्तर प्रदेश सरकार और पुलिस के पास केवल दो विकल्प थे। पहला विकल्प जो उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनाया और राहुल-प्रियंका को हाथरस जाने की इजाजत दे दी।
दूसरा विकल्प केवल इनकी गिरफ्तारी बचता। ऐसे में निसंदेह 3 अक्टूबर 1977 का इतिहास एक बार फिर दोहराया जाता। अब यह तो साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता कि राहुल और प्रियंका गांधी को यह तारीख याद है या नहीं, लेकिन देश के राजनीतिक इतिहास में एक बार फिर 3 अक्टूबर की तारीख में एक पन्ना और जुड़ गया है।