ये प्रदेश का सबसे हाईटैक शहर नोएडा है साहब ! मेरा मासूम बच्चा तो सड़क पर मर गया, बाइक पर उसकी लाश लेकर आ रहा हूं

Tricity Today |



साहब! यह उत्तर प्रदेश का सबसे हाईटेक शहर नोएडा है। मैं बुंदेलखंड का रहने वाला हूं। 20 साल से ग्रेटर नोएडा में रहकर अपने परिवार का पेट पाल रहा हूं। हमने इस शहर को 20 साल दिए हैं लेकिन यह शहर हमारी आने वाली पीढ़ी की जान तक नहीं बचा पाया। इससे अच्छा होता कि मैं महोबा में रहता। अगर वहां मेरा बच्चा मर भी जाता तो मुझे कोई मलाल ना होता। यह कहना है ग्रेटर नोएडा के सेक्टर-36 में रहने वाले प्रेम कुमार का। प्रेम कुमार की दर्द भरी दास्तान सुनने के बाद ट्राइसिटी टुडे के संवाददाता की आंखें भी नम हो गईं। दरअसल, प्रेम के 2 दिन के भतीजे ने उनके हाथों में दम तोड़ दिया और वह केवल फोन घुमाते रह गए।

प्रेम ने बताया कि वह ग्रेटर नोएडा के सेक्टर-36 में रहते हैं। वर्ष 2000 में अपने छोटे भाई के साथ ग्रेटर नोएडा आए थे। यहां दोनों एक कंपनी में काम करते हैं। छोटे भाई की शादी हुई और उनकी पत्नी प्रेग्नेंट थी। 25 मई को उसे डिलीवरी पेन हुआ। प्रेम कुमार और उनका छोटा भाई पत्नी को लेकर ग्रेटर नोएडा के कृष्णा लाइफ लाइन अस्पताल पहुंचे।

प्रेम का कहना है, "दो दिन पहले जब वह लोग डॉक्टर के पास आखिरी टेस्ट करवाने गए थे तो उन्हें बताया गया था कि बच्चा एकदम स्वस्थ है। नॉर्मल डिलीवरी होने की पूरी संभावना है। 25 मई को जब डिलीवरी का वक्त आया तो डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए।"

प्रेम कुमार का कहना है कि डॉक्टरों ने कहा, बच्चा फंस गया है और इसके बचने के चांसेस बहुत ही कम हैं। हम लोगों के हाथ-पांव फूल गए और हमने डॉक्टरों से मदद की गुहार लगाई। उन लोगों ने कहा, आप अपने मरीज को लेकर किसी अच्छे अस्पताल चले जाइए। प्रेम कुमार ने बताया कि "हम लोग ग्रीन सिटी अस्पताल चले गए। वहां हमसे कहा गया कि केस बहुत ज्यादा क्रिटिकल है। कम से कम 2 दिन हालात संभालने में लगेंगे। रोजाना 25000 रुपये का खर्चा आएगा। तीन महीने से हम लोग लॉकडाउन में फंसे हैं। तनख्वाह मिल नहीं रही है। इसके बावजूद हमने किसी तरह कर्ज पर पैसे लेकर 50000 रुपये का इंतजाम किया और डॉक्टर से कहा कि वह हालात को संभाल लें।"

प्रेम कुमार ने बताया कि बच्चा पैदा हो गया लेकिन उसकी हालत बहुत ज्यादा खराब थी। 25 मई की शाम ग्रीन सिटी अस्पताल के डॉक्टरों ने और बेहतर इलाज के लिए बच्चे और उसकी मां को रेफर करने की बात कही। प्रेम कुमार बताते हैं, "रात 9:30 बजे हम लोगों ने सरकारी अस्पताल की मदद लेने का फैसला किया। मैंने एंबुलेंस बुलाने के लिए सरकारी नंबर पर कॉल मिलाई। करीब एक घंटे तक कोशिश करता रहा लेकिन कोई कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद मैंने 112 पर कॉल करके पूरे मामले की जानकारी पुलिस को दी। पहले तो मुझे कहा गया कि आपको एंबुलेंस बुलानी चाहिए। जब मैंने बताया कि एंबुलेंस नहीं आ रही है तो कंट्रोल रूम से मदद भेजने की बात कही गई। पुलिसकर्मी हमारे पास पहुंच गए। इसके बाद हम और पुलिस वाले मिलकर एंबुलेंस बुलाने की कोशिश करते रहे। रात 1:30 बजे एंबुलेंस आई। लेकिन एंबुलेंस में ऑक्सीजन का इंतजाम नहीं था। बच्चे को बिना ऑक्सीजन के कहीं ले जाना खतरे से खाली नहीं था। 

प्रेम कुमार कहते हैं कि इस पूरे समय के दौरान मैंने कई बार पुलिस कर्मियों से कहा कि आप ही बच्चे को लेकर चलिए लेकिन वह तैयार नहीं हुए। एम्बुलेंस में ऑक्सीजन की समस्या को ठीक करने के लिए ग्रीन सिटी अस्पताल के स्टाफ ने एंबुलेंस से बातचीत की और पता चला कि नोजल फ्लो की जरूरत है। प्रेम कुमार बताते हैं कि मेरी विनती पर अस्पताल ने नोजल फ्लो दे दिया। जिसके बाद हम लोग एंबुलेंस में लेकर बच्चे को पहले दादरी अस्पताल पहुंचे। दादरी अस्पताल में सब लोग सो रहे थे। पहले तो उन लोगों ने बच्चे को देखने से मना कर दिया। जब मैंने हंगामा किया और वीडियो बनाने लगा तो एक डॉक्टर ने बच्चे को देखा। डॉक्टर ने कहा बच्चे की हालत बहुत ज्यादा खराब है। इसे यहां इलाज देना संभव नहीं है। आप इसे लेकर नोएडा के चाइल्ड अस्पताल चले जाइए।"

प्रेम कुमार कहते हैं, "दादरी से नोएडा फिर हम बच्चे को लेकर पहुंचे। इस दौरान मैं एंबुलेंस के पीछे अपनी मोटरसाइकिल से दौड़ता रहा। देर रात नोएडा के चाइल्ड अस्पताल में हम लोग गए तो वहां कोई डॉक्टर मौजूद नहीं था। इमरजेंसी में मैंने फिर हंगामा काटा तो डॉक्टर पहुंचे। उन्होंने बच्चे को देखकर कहा कि यह मर चुका है। कुल मिलाकर हम लोग पूरी रात सड़कों पर ही दौड़ते रहे और हमारे हाथों में ही बच्चे ने दम तोड़ दिया।"

प्रेम कुमार आगे कहते हैं, "नोएडा अस्पताल में हमें छोड़ते ही एंबुलेंस निकल गई। अब हम लोगों को वापस ग्रेटर नोएडा आना था। मैं और मेरा भाई बच्चे की लाश को मोटरसाइकिल पर लेकर ग्रेटर नोएडा पहुंचे।" प्रेम कुमार सवाल करते हैं कि आखिर इस सारी समस्या का जिम्मेदार कौन है? अगर हमारे बच्चे को सही समय पर इलाज मिल जाता और हमें सही समय पर कोई जानकारी दे देता तो क्या पता हम बच्चे को बचा सकते थे। अभी हमने बच्चे की मां को इस बारे में जानकारी नहीं दी है। उसे बताएंगे तो पता चला वह भी न मर जाए।

प्रेम कुमार दूसरा सवाल करते हैं कि कहने के लिए नोएडा और ग्रेटर नोएडा उत्तर प्रदेश के सबसे हाईटेक शहर हैं लेकिन मुझे 20 साल बाद एहसास हुआ कि महोबा और गौतमबुद्ध नगर में कोई खास फर्क नहीं है। शायद ऐसी ही घटना हमारे साथ महोबा में होती। हम लोग बिना वजह 20 वर्षों से सिर्फ इसीलिए इस शहर में रह रहे हैं कि कभी परेशानी पड़ने पर यहां सुविधाएं आसानी से मिल जाएंगी। लेकिन मेरा यह सोचना बे-मायने निकला। लॉकडाउन के दौरान हमारे इलाके के तमाम लोग अपने घर वापस लौट गए।

प्रेम कुमार आगे कहते हैं, "मेरे परिवार वालों ने भी वापस आने के लिए कहा, लेकिन मैं सिर्फ इसीलिए यहां अपने भाई बच्चों और बीवी को लेकर पड़ा रहा कि हमारे परिवार में एक नया सदस्य आने वाला है। जब इस बहू की डिलीवरी हो जाएगी तो उसके बाद आगे की योजना बनाएंगे। ऊपर से मुझे लग रहा था कि अगर अब हमने महोबा वापस लौटने की कोशिश की तो देशभर से वापस लौट रहे मजदूरों के साथ सफर करना पड़ेगा। उनसे कोरोनावायरस का संक्रमण हो सकता है।"

कुल मिलाकर प्रेम कुमार के सवाल जायज है और व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा करते हैं। यह उस आम आदमी की कहानी है, जो रोज सिस्टम की गड़बड़ियों, लापरवाही और झूठे वादों का शिकार हो रहा है।

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