यमुना प्राधिकरण को झटका लेकिन 30 हजार आवंटियों को बड़ा फायदा, बढ़े मुआवजे की भरपाई आवंटियों से नहीं, पढ़िए हाईकोर्ट का फैसला

Tricity Today | इलाहाबाद हाईकोर्ट और यमुना प्राधिकरण



इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण को एक महत्वपूर्ण मामले में फैसला सुनाते हुए तगड़ा झटका दिया है। दूसरी ओर ग्रेटर नोएडा में गलगोटिया विश्वविद्यालय, जेपी ग्रुप सहित दर्जनों हाउसिंग और एजूकेशनल सोसाइटीज को राहत दी है। इन आवंटियों ने यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के रिकवरी आदेश को चुनौती दी थी। 

दरअसल, विकास प्राधिकरण ने वर्ष 2014 में एक आदेश जारी किया था कि उसने इस जमीन के लिए हाईकोर्ट के आदेश पर किसानों को 64.7 प्रतिशत अतिरिक्त मुआवजा दिया है। यह अतिरिक्त धनराशि आवंटियों को देनी होगी। भूमि आवंटन के लिए लांच की गई स्कीम के ब्रोशर में भी यह उल्लेख है कि भविष्य में जमीन की कीमतों में बढ़ावा किया जा सकता है।

सरकार और प्राधिकरण के आदेश मनमाने व अवैधानिक हैं

अब हाईकोर्ट ने आवंटित भूमि की एवज में विकास प्राधिकरण के अति‌रिक्त मुआवजा राशि वसूलने के आदेश को रद्द कर दिया है। अदालत ने आदेश दिया है कि भू-स्वामियों को बढ़ा हुआ मुआवजा देकर उसकी भरपाई आवंटियों से करने का अधिकार विकास प्राधिकरण को नहीं है। कोर्ट ने इसके लिए विकास प्राधिकरण को अधिकृत करने के 29 अगस्त 2014 के शासनादेश को भी मनमाना और अवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति विपिन चंद्र दीक्षित की खंडपीठ ने दिया है। 

गजराज बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के मामले को हर जगह लागू करना अनुचित

हाईकोर्ट ने कहा है कि सरकार ने भूमि अधिग्रहण से जुड़े गजराज सिंह बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के केस में किसानों को बढ़ा हुआ मुआवजा देने का आदेश दिया था। उस आदेश के मद्देनजर समानता के आधार पर एक्सप्रेस वे के ‌लिए अधिग्रहीत भूमि का भी बढ़ा हुआ मुआवजा देने का सरकार और विकास प्राधिकरण ने निर्णय लिया है। सरकार की यह नीति सही नहीं है। साथ ही ऐसा करने का कोई कारण नहीं है।

अब हाईकोर्ट ने क्या कहा है

अब खंडपीठ ने कहा कि गजराज केस का फैसला यहां लागू नहीं होगा। क्योंकि अधिग्रहण की कार्यवाही कोर्ट का फैसला आने से पहले की है और यहां अधिग्रहण को कोर्ट में चुनौती भी नहीं दी गई है। सरकार का आदेश भूमि अधिग्रहण अधिनियम का उल्लंघन है और यह क्षेत्राधिकार से बाहर है।

विकास प्राधिकरण को 20 हजार करोड़ रुपये का फटका

इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले से यमुना एक्सप्रेस औद्योगिक विकास प्राधिकरण को करीब 20 हजार करोड रुपए का नुकसान होगा। दरअसल, यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण बड़ी संख्या में किसानों को 64.7% अतिरिक्त मुआवजे का भुगतान कर चुका है। दूसरी ओर वह यह धनराशि अपने आवंटियों से वसूल करना चाहता था। लेकिन हाईकोर्ट के इस फैसले ने प्राधिकरण के आदेश को खत्म कर दिया है। अब यह धनराशि प्राधिकरण को ही वहन करनी पड़ेगी। दूसरी ओर बड़ी संख्या में जिन किसानों को अभी तक 64.7% मुआवजा नहीं मिला है, उन्हें प्राधिकरण भुगतान नहीं करेगा।

प्राधिकरण ने मनमानी की, हम अपने हकों के लिए कोर्ट गए

इस पूरे मामले में मुख्य याची शकुंतला एजुकेशनल ट्रस्ट के मुखिया और गलगोटिया यूनिवर्सिटी के चांसलर सुनील गलगोटिया ने कहा, "यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने जो जमीन हमें आवंटित की थी, उसकी पूरी कीमत हम लोग दे चुके हैं। उसके बाद विकास प्राधिकरण ने प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री एजुकेशनल ट्रस्ट के नाम कर दी है। रजिस्ट्री करने के कई वर्षों के बाद विकास प्राधिकरण अतिरिक्त 64.7% प्रीमियम की मांग कर रहा है। यह न्यायोचित नहीं है। प्राधिकरण ने हमें रिकवरी आर्डर जारी किया था। हमने उसका कानूनी जवाब दिया तो विकास प्राधिकरण की ओर से दबाव बनाया गया। जिसके खिलाफ हम लोग हाईकोर्ट चले गए और हाईकोर्ट ने हमारे तर्कों को जायज करार दिया है।

अब सुप्रीम कोर्ट जाएंगे प्राधिकरण और सरकार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आवंटियों को बड़ी राहत दे दी है, लेकिन अभी यह लड़ाई लंबी चलने वाली है। दरअसल, हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के शासनादेश और यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण के रिकवरी आर्डर को रद्द कर दिया है। यमुना प्राधिकरण के एक अधिकारी ने कहा कि किसानों के हितों और विकास प्राधिकरण की आर्थिक क्षति को बचाने के लिए विकास प्राधिकरण और शासन हाईकोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे। अभी हाईकोर्ट का ऑर्डर नहीं मिला है। प्रमाणित प्रतिलिपि मिलने का इंतजार किया जा रहा है। आर्डर का अध्ययन करने के बाद इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने पर विचार किया जाएगा।

कोर्ट के सामने यह तथ्य रखे गए थे

  1. शकुंतला एजूकेशनल सोसाइटी (गलगोटिया विश्वविद्यालय), जेपी ग्रुप ‌सहित दर्जनों हाउसिंग और 12 अन्य एजूकेशनल सोसाइटीज ने याचिका दाखिल कर यमुना एक्सप्रेस वे प्राधिकरण से 15 ‌दिसंबर 2014 को जारी डिमांड नोटिस और 29 अगस्त 2014 के शासनादेश को चुनौती दी थी।
  2. यमुना एक्सप्रेस अथॉरिटी के लिए जिन किसानों की भूमि अधिग्रहीत की गई थी, वे नोएडा और ग्रेटर नोएडा के किसानों की तरह अतिरिक्त मुआवजे की मांग कर रहे थे। 
  3. इसे देखते हुए तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार में मंत्री राजेंद्र चौधरी की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि हाईकोर्ट ने गजराज सिंह केस में वर्ष 2011 में ग्रेटर नोएडा के किसानों को 64.7 प्रतिशत बढ़ा हुआ मुआवजा देने का आदेश दिया था। 
  4. अकारण मुकदमेबाजी रोकने के लिए एक्सप्रेस वे के लिए अधिग्रहीत भूमि का भी इसी दर से बढ़ा हुआ मुआवजा किसानों को दिया जाना चाहिए। 
  5. सरकार ने इस रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया और यमुना अथॉरिटी को बढ़े हुए मुआवजे का भुगतान अपने स्रोतों से करने का आदेश दिया। 
  6. साथ ही विकास प्राधिकरण की मांग पर उसे आवंटियों से अतिरिक्त प्रीमियम की वसूली की छूट दे दी।

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