Noida News : सेक्टर 30 स्थित चाइल्ड पीजीआई से पिछले कुछ दिनों से बुरी खबर ही सामने आ रही थी। जैसे बिल्डिंग जर्जर हो रही है। परिसर के अंदर कूड़े का ढेर लगा हुआ है, वगैरह-वगैरह। लेकिन अब एक अच्छी खबर सामने आई है। दरअसल, चाइल्ड पीजीआई में बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए 8 बेड की सुविधा शुरू हो गई हे। पहले इसके लिए सिर्फ एक बेड ही था।
अब अधिक मरीजों का बोन मैरो ट्रांसप्लांट संभव
कैंसर विभागाध्यक्ष डॉ. नीता राधाकृष्णन ने बताया कि नौ बेड पर सुविधा शुरू होने से एक समय में अधिक से अधिक मरीजों का बोन मैरो ट्रांसप्लांट संभव हो सकेगा। इसका लाभ देश के हर क्षेत्र के बच्चों को मिलेगा। इलाज के लिए बेड की संख्या बढ़ने से अब मरीजों की संख्या में भी इजाफा होने की संभावना है। उन्होंने बताया कि ट्रांसप्लांट की पूरी प्रक्रिया में 2 से 3 घंटे का समय लगता है और यह दर्द रहित होता है। इसमें न तो कोई हड्डी कटती है और न ही उसे किसी तरह का नुकसान पहुंचता है। इसे पूरी तरह से काम करने में तीन से 18 महीने का समय लगता है। गौरतलब है कि बाल चिकित्सालय में अब तक 30 मरीजों का बोन मैरो ट्रांसप्लांट किया जा चुका है।
ऐसे होता है बोन मैरो ट्रांसप्लांट
बोन मैरो ट्रांसप्लांट या स्टेम सेल ट्रांसप्लांट एक जटिल चिकित्सा प्रक्रिया है, जिसमें क्षतिग्रस्त या नष्ट हो चुके स्टेम सेल को स्वस्थ अस्थि मज्जा कोशिकाओं से बदला जाता है। बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन से कैंसर और थैलेसीमिया समेत कई गंभीर बीमारियों का इलाज संभव है।
बच्चों के लिए सबसे बड़ा सेंटर होगा
बच्चों के बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन के मामले में चिल्ड्रेन हॉस्पिटल एंड पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट को उत्तर भारत में एक बड़े सेंटर के तौर पर स्थापित किया जाएगा। एम्स दिल्ली इसका सबसे बड़ा सेंटर है, लेकिन वहां हर उम्र के मरीजों का बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन होता है। चिल्ड्रेन हॉस्पिटल एंड पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट 18 साल से कम उम्र वालों के लिए सबसे बड़ा सेंटर होगा।