नोएडा में डकैती : अथॉरिटी ने इन 3 कम्पनियों को दी 80% कमर्शियल लैंड, अब 15 हजार करोड़ बकाया

नोएडा | 3 साल पहले | Pankaj Parashar

Tricity Today | नोएडा में डकैती



Noida CAG Report : नोएडा अथॉरिटी में वर्ष 2005 से लेकर 2017 तक किस तरह नियम-कायदों को मनमाने ढंग से तोड़-मरोड़ कर पसंदीदा बिल्डरों और कंपनियों को फायदे पहुंचाए गए, यह महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है। अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अथॉरिटी के अफसरों ने शहर में कमर्शियल कैटेगरी की 80% जमीन तीन बिल्डरों को आवंटित कर दी है। इससे भी बड़ी बात यह है कि इन बिल्डरों पर करीब 15 हजार करोड़ रुपये बकाया हैं।

इन तीन कम्पनियों को आवंटित की गई 80% जमीन
सीएजी ने रिपोर्ट में लिखा है कि वर्ष 2005 से 2018 तक कमर्शियल कैटेगरी की जितनी जमीन आवंटित की गई, उसमें से 79.83% तीन बिल्डरों को आवंटित की गई है। यह जमीन वेव ग्रुप, थ्री-सी और लोजिक्स ग्रुप को नोएडा अथॉरिटी ने आवंटित की है। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा है कि तमाम नियम-कायदे तोड़ने और 14,958.45 करोड़ रुपए का भारी-भरकम बकाया होने के बावजूद नोएडा अथॉरिटी इन तीनों बिल्डरों के खिलाफ कोई कार्यवाही करने में असफल रही है। एक और बड़ी बात रिपोर्ट में कही गई है। सीएजी ने लिखा है, इन तीनों बिल्डरों को जितनी जमीन आवंटित की गई, उसमें से करीब 75% क्षेत्रफल पर अब तक काम शुरू नहीं हो सका है। यह पूरी जमीन नॉन-फंक्शनल पड़ी हुई है। जबकि 12 वर्षों का वक्त बीत चुका है। इससे साफ जाहिर होता है कि इन बिल्डरों ने जमीन विकसित करने के लिए नहीं ली थी, बल्कि ऊंची कीमतों पर जमीन बेचकर मोटा मुनाफा कमाना था। नोएडा अथॉरिटी परियोजनाओं को लागू करने और इनकी समीक्षा करने में असफल रही है।

प्लॉट अलॉट होने के 5 दिन बाद कंसोर्सियम छोड़ गई कंपनी
सीएजी ने ऑडिट रिपोर्ट में लिखा है कि नोएडा अथॉरिटी ने 1,680.93 करोड रुपए कि 1,43,250 वर्ग मीटर जमीन ऐसी कंपनियों को आवंटित की, जो प्रारंभिक रूप से टेक्निकल एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया को पूरा नहीं कर रही थीं। इन कंपनियों की योग्यताओं पर ध्यान नहीं दिया गया। कंसोर्सियम बनाकर आवेदन करने की इजाजत दी गई। इस पूरे घालमेल का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कंसोर्सियम में शामिल हुई बड़ी-बड़ी कंपनियां भूखंड आवंटन होने के 5 दिन बाद ही कंसोर्सियम छोड़कर चली गई थीं। ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें बड़ी कंपनियों की बैलेंसशीट इस्तेमाल करके कंसोर्सियम बनाए गए। अरबों रुपए की जमीन आवंटित करवा ली गई। इसके बाद 5 दिन से लेकर 13 महीनों में बड़ी कंपनियां कंसोर्सियम छोड़कर चली गई। ऐसे में आवंटित भूखंड अयोग्य कंपनियों के पास ही रह गए।

फिर दूसरी कंपनियों को ऊंची कीमतों पर बेची गई जमीन
इसके बाद यह जमीन दूसरी कंपनियों के नाम पर ऊंची कीमतों पर ट्रांसफर की गई। इस तरह नोएडा अथॉरिटी से जमीन हासिल करने वाली छोटी-छोटी कंपनियां रातों-रात अरबपति बन गईं। जिसके लिए प्राधिकरण ने कोई शुल्क नहीं लिया। इससे प्राधिकरण को करीब 84 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। कुल मिलाकर यह अपने पसंदीदा और अयोग्य लोगों को अरबों रुपए की जमीन देने का अवैध रास्ता था। इतना ही नहीं आगे चलकर भी इन कंपनियों को तमाम तरह की रियायतें दी गईं, लेकिन प्रोजेक्ट अभी तक लटके पड़े हैं।

बार-बार रीशेड्यूलमेंट किया लेकिन पैसा नहीं मिला
सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि 7 ऐसे बिल्डर सामने आए हैं, जिन्हें अथॉरिटी ने नाजायज ढंग से बार-बार री-शेड्यूलमेंट पॉलिसी का फायदा देने की कोशिश की है। इन सातों मामलों में बिल्डरों ने री-शेड्यूलमेंट करवाने के बावजूद एक फूटी कोड़ी प्राधिकरण में जमा नहीं की है। जिसका परिणाम यह हुआ कि इन बिल्डरों पर आज की तारीख में 4,257.58 करोड़ रुपए बकाया हैं। जब इन बिल्डरों को जमीन दी गई थी तो कीमत 2,383.91 करोड़ रुपए थी। सीएजी का कहना है कि प्राधिकरण डिफॉल्टर बिल्डरों पर कार्रवाई करने और अपना पैसा वापस लेने में पूरी तरह असफल रहा है।

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