Noida News : नोएडा और ग्रेटर नोएडा में करीब 50 हजार फ्लैट खरीदार बिना रजिस्ट्री वाले घरों में रह रहे हैं। इन सारे लोगों की नजरें अब उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) के आने वाले फैसले पर टिकी हैं। दरअसल, बिल्डरों पर प्राधिकरण का करीब 20 हजार करोड़ रुपये बकाया हैं। इस बकाया पर ब्याज दर को लेकर फैसला आना है। सुनवाई पूरी हो चुकी है। उम्मीद है कि इसी महीने उच्चतम न्यायालय का फैसला आएगा। बिल्डर बकाया नहीं चुका रहे हैं और प्राधिकरण ने रजिस्ट्री पर रोक लगा रखी है। इससे खरीदारों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
नोएडा-ग्रेनो में 50 हजार खरीदार
नोएडा में करीब 30 हजार और ग्रेटर नोएडा में 20 हजार से अधिक खरीदार हैं, जो पिछले चार सालों से अपने फ्लैटों की रजिस्ट्री का इंतजार कर रहे हैं। हर महीने ऐसे खरीदारों की संख्या बढ़ती जा रही है। दरअसल, बिल्डर खरीदारों को गुमराह करके फ्लैट बेच रहे हैं, लेकिन रजिस्ट्री नहीं कर पा रहे हैं। बिल्डरों पर दोनों प्राधिकरण का अरबों रुपये बकाया हैं। बिना बकाया भुगतान प्राधिकरण रजिस्ट्री की अनुमति नहीं दे रहे हैं। यहां शुरूआत में फ्लैटों की रजिस्ट्री कराते समय नोएडा प्राधिकरण एक पार्टी होता है। ऐसे में प्राधिकरण की मंजूरी के बिना रजिस्ट्री नहीं हो सकती है। जानकारों की मानें तो उच्चतम न्यायालय का फैसला आने के बाद बिल्डर बकाया जमा करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इन्तजार
बिल्डरों को अपने हक में फैसला आने की उम्मीद है। इसी कारण बिल्डर पैसा जमा नहीं कर रहे हैं। फैसला आने पर बकायेदारी का समाधान होगा, तब फ्लैट खरीदारों की रजिस्ट्री शुरू होगी। आपको बता दें, नोएडा प्राधिकरण अपने बकाए पर बिल्डरों से 11-24% ब्याज लेता है। ब्याज दर ज्यादा बताते हुए बिल्डरों ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। बिल्डरों का तर्क है कि इतनी अधिक ब्याज दर गलत है। इससे बकाए का काफी बोझ पड़ रहा है। इसको कम किया जाना चाहिए।
आंदोलन कर रहे फ्लैट खरीदार
यहां खरीदार रजिस्ट्री के लिए काफी परेशान हैं। मार्च 2021 में नोएडा आए मुख्य सचिव आर के तिवारी के साथ खरीदारों की बैठक हुई थी। बैठक में खरीदारों ने रजिस्ट्री कराने की गुहार लगाई थी लेकिन वो भी अनसुना कर गए। शपथ पत्र पर सहमति लेकर रजिस्ट्री शुरू करने के प्रस्ताव को मुख्य सचिव लागू नहीं करा सके। इससे पहले खरीदार विधायक, सांसद व मंत्री के यहां भी गुहार लगा चुके हैं।
35 हजार खरीदारों के करोड़ों फंसे
बताया जा रहा है कि 50 में से करीब 35 हजार ऐसे खरीदार हैं जिन्होंने फ्लैट की रजिस्ट्री कराने के लिए फ्लैट की कुल कीमत के पांच प्रतिशत के हिसाब से स्टांप भी ले रखा है। इन खरीदारों ने स्टांप खरीदकर करोड़ों रुपए सरकार के खाते में जमा करा दिए हैं। ऐसे में खरीदारों के पैसे फंस गए हैं। खरीदारों को नुकसान उठाना पड़ रहा है जबकि सरकार खरीदारों को बिना स्टांप का फायदा दिए ब्याज ले रही है।
अब अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ेगा
पंजीकरण राशि एक प्रतिशन होने से खरीदारों को अधिक नुकसान मार्च 2020 से पहले महंगी से महंगी संपत्ति की रजिस्ट्री कराने में पंजीकरण राशि अधिकतम 20 हजार रुपए लगती थी, लेकिन इसके बाद एक प्रतिशत हो गई। जिसका खामियाजा अब फ्लैट खरीदारों को भुगतना पड़ेगा। नोएडा-ग्रेटर नोएडा में औसतन फ्लैट की कीमत 50-60 लाख रुपए है। अब इतनी कीमत के फ्लैट की रजिस्ट्री कराते समय 60 हजार रुपए देने पड़ेंगे, पहले 20 हजार रुपए देने होते। खास बात यह है कि खुद की गलती नहीं होने के बावजूद खरीदारों को यह बड़ा आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा जबकि इसके लिए जिम्मेदार बिल्डर-प्राधिकरण को कोई नुकसान नहीं होगा।
35 हजार करोड़ रुपये बकाया
नोएडा प्राधिकरण का बिल्डरों और अन्य पर 35 हजार करोड़ से अधिक बकाया हैं। इनमें अगर फ्लैट बनाने वाले ग्रुप हाउसिंग से जुड़े बिल्डरों की बात करें तो उन पर करीब 20 हजार करोड़ रुपए बकाया हैं। नोएडा प्राधिकरण के ओएसडी अविनाश त्रिपाठी ने कहा, "बकाए पर ब्याज दर को लेकर उच्चतम न्यायालय में सुनवाई पूरी हो चुकी है। अब आदेश आना बाकी है। न्यायालय का जो भी आदेश होगा, उसक पालन किया जाएगा। अभी तक बकाया नहीं देने वाले बिल्डरों के फ्लैटों की रजिस्ट्री पर पूरी तरह से रोक लगाई हुई है।"
सबकी हैं अपनी-अपनी परेशानी
नोएडा सेक्टर-76 में प्रतीक विस्टीरिया हाऊसिंग सोसायटी के निवासी आशीष वालिया ने कहा, "मैंने दो साल पहले टू बीएचके फ्लैट खरीदा था। करीब 60 लाख रुपए कीमत है। उसी समय स्टांप लेकर बिल्डर को दे दिया लेकिन आज तक रजिस्ट्री नहीं हुई। स्टांप के रूप में करीब तीन लाख रुपए फंसे हुए हैं। बैंक के लोन की अलग से ईएमआई देनी पड़ रही है। रजिस्ट्री कराने के लिए बिल्डर-प्राधिकरण के चक्कर काटकर थक चुका हूं।" दूसरी तरफ क्रेडाई (पश्चिमी उत्तर प्रदेश) के अध्यक्ष प्रशांत तिवारी का कहना है, "उच्चतम न्यायालय के आदेश का पालन किया जाएगा। हम पिछले साल आए न्यायालय के आदेश का पालन कर पैसे जमा करने को तैयार थे लेकिन प्राधिकरण ने ही बात नहीं मानी।"