Noida News : नोएडा के चाइल्ड पीजीआई में कैंसर रेटिनोब्लास्टोमा का इलाज शुरू हो गया है। दरअसल, कैंसर रेटिनोब्लास्टोमा पांच साल से कम उम्र के छोटे बच्चों में देखने को मिलता है। इसका लक्षण है कि इन बच्चों की आंखों में रेटिना पर सफेद चमक दिखाई देती है। ऐसे बच्चों का चाइल्ड पीजीआई में तीन डिपार्टमेंट मिलकर इलाज करेंगे।
इलाज न मिलने पर दिमाग पर करता है अटैक
चाइल्ड पीजीआई के हेमेटोलॉजिकल ऑन्कोलॉजी विभाग की प्रमुख डॉ. नीता राधाकृष्णन ने कहा कि इस बीमारी के बारे में जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है। यही कारण है कि इलाज की सुविधाएं उपलब्ध होने के बावजूद शुरुआती दौर में बहुत कम पीड़ित बच्चों की पहचान हो पा रही है। रेटिनोब्लास्टोमा सप्ताह के माध्यम से, हम नेत्र रोग विशेषज्ञों, बाल रोग विशेषज्ञों के साथ-साथ परिवार के सदस्यों के बीच जागरूकता पैदा करने के लिए काम कर रहे हैं। ताकि अगर बच्चे की बीमारी का शुरुआती दौर में पता चल जाए तो उसे सही इलाज देकर उसकी दृष्टि क्षमता को सुरक्षित रखा जा सके। हमें यह समझना होगा कि आंखों का यह कैंसर बहुत तेजी से फैलता है। अगर समय पर इलाज न मिले तो यह दिमाग तक पहुंच सकता है।
यह डिपार्टमेंट करेंगे सहयोग
हेमेटोलॉजिकल ऑन्कोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अनुज सिंह ने बताया कि रेटिनोब्लास्टोमा का इलाज चाइल्ड पीजीआई में किया जा रहा है। हेमेटोलॉजिकल ऑन्कोलॉजी के अलावा पीडियाट्रिक ऑप्थैल्मोलॉजी और पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग इसमें सहयोग करेंगे। इसका कारण यह है कि शुरुआती चरण में पहचान और इलाज बाल नेत्र रोग विज्ञान में ही किया जाएगा। हेमेटोलॉजिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के पास कीमोथेरेपी और विकिरण सहित इसके खतरों से बचाने के लिए दवाएं हैं।
कैंसर का स्टेज बढ़ने पर भेजा जाएगा दिल्ली
वहीं, यदि अंतिम चरण में सर्जरी की आवश्यकता होती है तो बाल चिकित्सा सर्जरी विभाग की आवश्यकता होगी। सामान्य नेत्र विज्ञान जांच के अलावा अल्ट्रासाउंड और एमआरआई स्कैन से भी इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है। कैंसर की स्टेज बढ़ने पर उन्हें रेडियोथेरेपी के लिए एम्स दिल्ली भेजा जाएगा। इसके लिए एम्स चाइल्ड पीजीआई को सहयोग कर रहा है।
90 फीसदी मामलों में आंखें रहेंगी सुरक्षित
डॉ. अनुज सिंह ने बताया कि अगर रेटिनोब्लास्टोमा का पता शुरुआती दौर में चल जाए तो इलाज के बाद आंखें और दृष्टि बचाने की संभावना 90 फीसदी तक बढ़ जाती है। एक बार आंख में गांठ बन जाने पर सर्जरी की जरूरत पड़ती है। साथ ही दृश्यता से बचने की संभावना भी कम हो जाती है। सर्जरी के बाद भी बच्चा विकृत नहीं होना चाहिए। इसके लिए आंख की रीस्ट्रक्चरिंग भी की जाती है।
जन्म के बाद बच्चे की करवाएं जांच
दूसरे, यह बीमारी अनुवांशिक भी हो सकती है। ऐसे में अगर माता-पिता में से किसी को भी आंख का कैंसर रहा है तो जन्म के कुछ समय बाद बच्चे की जांच करवाएं। यह रोग बच्चे की दोनों आँखों में भी हो सकता है। ऐसे में जितनी जल्दी इलाज शुरू हो जाए. वही बच्चे के लिए बेहतर होगा।