यूपी विधानसभा चुनाव 2022 : मीरापुर को लावारिस छोड़ अब जेवर की रहनुमाई करना चाहते हैं अवतार सिंह भड़ाना, रालोद-सपा गठबंधन देगा टिकट

Google Image | अवतार सिंह भड़ाना



UP Assembly Election 2022 : उत्तर प्रदेश की राजनीति में जो हो जाए कम है, लेकिन कुछ किरदारों को याद किए बिना चुनावी चर्चा पूरी होनी मुश्किल है। अब पूर्व सांसद और मीरापुर के लापता विधायक अवतार सिंह भड़ाना को ही ले लीजिए। अवतार सिंह भड़ाना ने पिछला विधानसभा चुनाव मुजफ्फरनगर जिले में जाकर मीरापुर सीट से लड़ा था। बाहरी प्रत्याशी होने के बावजूद भाजपा ने उनके लिए संघर्ष किया। करीब 116 वोटों के मामूली अंतर से असंभव सी जीत दिलाई। भड़ाना जीतकर मीरापुर वापस नहीं लौटे। इतना ही नहीं भाजपा में विधायक रहते वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव फरीदाबाद से कांग्रेस के टिकट पर लड़कर हार गए। पिछले करीब 5 वर्षों से मीरापुर विधानसभा क्षेत्र के वोटर खुद को लावारिस मानते हैं। अब अवतार सिंह भड़ाना गौतमबुद्ध नगर में प्रकट हुए हैं। जानकारी मिली है कि वह राष्ट्रीय लोकदल-समाजवादी पार्टी गठबंधन के जेवर विधानसभा सीट से उम्मीदवार होंगे। अगले कुछ दिनों में उनके नाम की घोषणा होने वाली है।

जेवर से चुनाव क्यों लड़ेंगे अवतार सिंह भड़ाना
अवतार सिंह भड़ाना आखिर जेवर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने क्यों आ रहे हैं? यह सवाल आजकल चर्चाओं में है। करीब 64 साल के भड़ाना महज 34 साल की उम्र में सांसद बन गए थे। दरअसल, पिछले लोकसभा चुनाव में अवतार सिंह भड़ाना फरीदाबाद से हार चुके हैं। वह तीन बार कांग्रेस के फरीदाबाद से (1991-1996, 2004-2009 और 2009-2014) और एक बार मेरठ (1999-2004) से सांसद रहे हैं। अब पिछले दो लोकसभा चुनाव (2014 और 2019) में उन्हें फरीदाबाद में भारतीय जनता पार्टी के कृष्णपाल सिंह गुर्जर हरा रहे हैं। लिहाजा, पहले उन्होंने 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा में एंट्री की। फिर मीरापुर जैसी गुर्जर वोटरों वाली सीट तलाश की। तब तक उत्तर प्रदेश भाजपा में सुरेंद्र सिंह नागर, वीरेंद्र सिंह कांधला और नरेंद्र सिंह भाटी जैसे गुर्जर नेता नहीं थे। लिहाजा, दाल गल गई और वह चुनाव जीत गए। उन्हें पूरा भरोसा था कि यूपी में भाजपा की सरकार बनेगी और वह मंत्री बन जाएंगे।

जब ऐसा नहीं हो पाया तो मीरापुर की पब्लिक के पापड़ कौन बेलता और वह ना केवल फरीदाबाद वापस लौट गए बल्कि कांग्रेस में भी घर वापसी कर ली। उन्हें भरोसा था कि वह 2019 के लोकसभा चुनाव में कृष्णपाल सिंह गुर्जर को हरा देंगे। अब जरा परिणाम देखिए। अवतार सिंह भड़ाना 2014 का चुनाव 4,66,873 वोट से हारे थे और 2019 में हार का फैसला बढ़कर 6,44,895 हो गया। यह परिणाम भाजपा की देशभर में टॉप-5 जीत में शामिल है। लिहाजा, अवतार सिंह भड़ाना के लिए फरीदाबाद की जनता ने संसद के किवाड़ भेड़ दिए। अब एक बार फिर अवतार सिंह को उत्तर प्रदेश में गुर्जर वोटरों वाली विधानसभा सीट की तलाश है। जेवर सीट उन्हें मुफीद नजर आ रही है। गुर्जरों के साथ मुसलमान वोटर अच्छे-खासे हैं। फरीदाबाद का बॉर्डर भी है। लिहाजा, इलाके को अपना घर बताना, रिश्तेदारियां निकालना, सेवा करने का वादा और बेटा बनकर चूल्हे-चौके तक पहुंचना आसान रहेगा। सपा-रालोद का गठजोड़ अल्पसंख्यक वोटर मिलने की गारंटी नजर आ रही है।

शुरू से राजनीति के हरफनमौला हैं अवतार सिंह
कांग्रेस, इंडियन नेशनल लोकदल, समाजवादी जनता पार्टी (राष्ट्रीय) और भारतीय जनता पार्टी में रह चुके अवतार सिंह भड़ाना अब जयंत चौधरी के राष्ट्रीय लोकदल में जाएंगे। दरअसल, भड़ाना ने राजनीति की शुरुआत हरियाणा विधानसभा से की। वह चौधरी देवी लाल की दूसरी सरकार में 1988-89 के दौरान 6 महीनों के लिए राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रहे थे। आपको बता दें कि 1987 के हरियाणा चुनाव में वह मेवला महाराजपुर विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़े थे। केवल 622 वोट मिली थीं, लेकिन राजनीतिक तिगड़म की बदौलत विधायक बने बिना वह चौधरी देवी लाल जैसे दिग्गज नेता के मंत्रिमंडल में जगह पा गए थे। विधानसभा सदस्य नहीं होने के कारण उन्हें 6 महीने बाद पद छोड़ना पड़ा था, लेकिन आगे का राजनीतिक सफर तय करने के लिए यह मौक़ा पर्याप्त था। इसके बाद भड़ाना ने कांग्रेस का दामन थाम लिया। कांग्रेस ने भजन लाल जैसे दिग्गज नेता की फरीदाबाद लोकसभा सीट से भड़ाना को मौक़ा दे दिया।

आखिर भड़ाना को क्यों आती है यूपी की याद
दूसरा सवाल यह है कि आखिर बार-बार अवतार सिंह भड़ाना को उत्तर प्रदेश की याद क्यों आती है? वह तीसरी बार यूपी में चुनाव लड़ेंगे। सबसे पहले 1999 में मेरठ से सांसद बने थे। पहली बार 1991 में फरीदाबाद कांग्रेस से सांसद बने और अगले चुनाव 1996 में भाजपा के रामचंद्र बैंदा से चुनाव हार गए। ठीक दो साल बाद यानि 1998 में फिर लोकसभा चुनाव हुआ। इस बार अवतार सिंह कांग्रेस छोड़कर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की समाजवादी जनता पार्टी (राष्ट्रीय) से चुनाव मैदान में उतरे और तीसरे नंबर पर खिसक गए। अब तक के पॉलिटिकल करियर में यह अवतार सिंह भड़ाना की दूसरी सबसे खराब परफॉर्मेंस रही है। भड़ाना को जल्दी ही अपनी भूल सुधारने का मौक़ा मिल गया और 1999 में फिर लोकसभा चुनाव हो गया। वह दूसरी बार फिर कांग्रेस में शामिल हुए। इस बार कांग्रेस ने उन्हें वापस तो ले लिया लेकिन चुनाव लड़ने उत्तर प्रदेश की मेरठ जैसी कठिन सीट पर भेज दिया। अवतार सिंह का जादू चला और मेरठ में तीन बार के सांसद ठाकुर अमरपाल सिंह को कांटे की टक्कर में हराया।

कांग्रेस में अवतार सिंह भड़ाना के लिए माहौल सामान्य हो गया। दूसरी तरफ फरीदाबाद में कांग्रेस को लगातार तीसरी बार भाजपा से शिकस्त मिली। लिहाजा, भड़ाना की फरीदाबाद वापसी का रास्ता खुल गया। 2004 और 2009 में फरीदाबाद से जीत हासिल की। कुल मिलाकर भड़ाना लगातार 15 वर्षों तक संसद में रहे। 2014 में मोदी की प्रचंड लहर में कृष्णपाल सिंह गुर्जर के सामने बड़े फासले से हार गए। अब तक कांग्रेस से मोह भांग हो गया था। 2014 में पुराने घर की याद आई। ताऊ देवीलाल के दरवाजे पर फिर दस्तक दी लेकिन 2016 आते-आते भाजपा में पहुंच गए। अब एक बार फिर उत्तर प्रदेश का रुख किया। यूपी में 2017 के चुनाव में मीरापुर का किस्सा आप ऊपर पढ़ चुके हैं। कुल मिलाकर जब अवतार सिंह भड़ाना की हरियाणा में दाल नहीं गलती तो वह मेहमान बनकर यमुना पार करके उत्तर प्रदेश आ जाते हैं। अबकी बार उन्होंने गौतमबुद्ध नगर में जेवर सीट की रहनुमाई का सपना संजोया है। अब देखना होगा कि आने वाले चुनाव में मीरापुर वालों को दर्द देने वाले हरफनमौला अवतार सिंह भड़ाना क्या करते हैं?

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