रेलवे पुलिस की बड़ी कामयाबी : ऑपरेशन मुस्कान के तहत 20 दिन में 100 गुमशुदा बच्चों को परिजनों से मिलाया, इस खास तकनीक से मिली सफलता

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आगरा और झांसी रेलवे पुलिस ने पिछले 20 दिनों में 100 से ज्यादा गुमशुदा बच्चों को देश के अलग-अलग हिस्सों से बरामद कर उनके परिवारों से मिलाया है। इन दोनों मंडलों की रेलवे पुलिस ने एक अभियान के तहत 200 से ज्यादा गुमशुदा बच्चों की लिस्ट तैयार की और महज 20 दिनों में 100 से ज्यादा लापता बच्चों को तलाश कर उनके परिजनों को सौंप दिया। पुलिस अधीक्षक रेलवे झांसी, आगरा आशीष  तिवारी ने शुक्रवार को इस बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि आगरा और झांसी अनुभाग की विशेष टीम पिछले 20 दिनों में 100 से ज्यादा गुम हुए बच्चों को  देश के कई राज्यों और जिलों से तलाशकर उनके परिवारों से मिलाया है। 

इसके लिए अपर पुलिस अधीक्षक रेलवे आगरा मोहम्मद मुश्ताक की अगुवाई मे जीआरपी अनुभाग आगरा और झांसी ने एक मिशन के तहत मिल कर काम किया। इस टीम ने वर्ष  2018,19 और 2020 में लापता हुए बच्चों की बरामदगी के लिये गृह मंत्रालय द्वारा  संचालित 'ऑपरेशन मुस्कान' के तहत दोनों मंडलों के अन्तर्गत आने वाले गुमशुदा सभी बच्चों को तलाशने के लिए एक अभियान चलाया। मिशन के दौरान विगत करीब 20 दिनों में 100 से ज्यादा बच्चों को राज्य के तमाम जिलों और दूसरे सूबों से बरामद कर उनके परिवारों से मिलाया। इस मुहिम को सफल बनाने के  लिए सबसे पहले दोनों अनुभागों के अंतर्गत आने वाले सभी जनपदों और जीआरपी के थानों से गुम हुए बच्चों की जानकारी इकट्ठा की गई। 

इसके बाद गुम हुए बच्चों से संबंधित पूरी जानकारी की एक एल्बम  तैयार की गयी। इसमें कुल 231 बच्चे गुमशुदा पाये गये। इन सभी बच्चों को  बरामद करने के लिए एक टीम और बेहतर रणनीति बनाई गई। सबसे पहले एक स्टैंडर्ड  ऑपरेटिंग  प्रोसीजर तैयार की गया। इसके बाद दोनों अनुभागों से समर्पित और सामाजिक कार्यों में रुचि तथा प्रेरणा रखने वाले पुलिस कर्मियों का साक्षात्कार के बाद चयन किया गया। तत्पश्चात दोनों अनुभागों में कुल चार टीमें गठित की गयीं। इन सभी टीम सदस्यों को बच्चों से संबंधित कानूनों के बारे में पारंगत किया गया। इन सभी को बाल अधिकार संरक्षण कानून - 2005, जुबेनाइल जस्टिस (बच्चों की देखभाल और  संरक्षण) कानून - 2000, बाल मजदूरी (निषेध एवं नियमन) कानून - 1986, पोक्सो  एक्ट – 2012 जैसे कानूनों के बारे व्यावहारिक रुप से प्रशिक्षित किया गया।

साथ ही गुमशुदा बच्चों की तलाश के लिये बनाये गये मिशन की कार्यशाला आयोजित कर जानकारी दी गयी। इसके तहत आश्रय स्थल, बस  स्टैंड, रेलवे स्टेशन, एनजीओ, स्थानीय पुलिस का प्रयोग कर लापता बच्चों की पहचान करने का हुनर सिखाया गया। बच्चों को खोजने से लेकर उनके घर तक पहुंचाने की सारी जानकारी प्रशिक्षण के जरिए इस टीम को दी गई। प्रशिक्षण के बाद पहले चरण में उत्तर प्रदेश के आगरा, मथुरा, हाथरस, एटा, कासगंज, फिरोजाबाद,  अलीगढ, मैनपुरी, इटावा, फरुर्खाबाद, बांदा, जालौन, ललितपुर, हमीरपुर,  कानपुर, झांसी, महोबा, चित्रकूट जिलों को चिन्हित किया गया। हर टीम को कुछ जिलों की जिम्मेदारी दी गई। इसके बाद यह सभी टीमें अपने तय जिले में मिशन पर निकल गईं। 

दूसरे चरण मे भारत के बडे शहरों दिल्ली,  फरीदाबाद, पलवल, गुडगांव, गाजियाबाद, ग्वालियर, भोपाल, इंदौर और मुम्बई को  चिन्हित किया गया। इन जिलों में फिलहाल कार्रवाई की जा रही है। सिर्फ 20 दिन में इन टीमों ने  तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए 100 से ज्यादा बच्चों को खोज लिया है। इनमें एल्बम के 231 बच्चों मे से कुल 81 बच्चों के परिजनों से संपर्क किया गया, तो यह सभी गुमशुदा बच्चे अपने घर आ चुके थे।  ये टीमें सिर्फ गुमशुदा बच्चों का ही पता नहीं लगा रहीं। बल्कि ये टीमें रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और बालगृहों में कई वर्षों से  अंधकारमय जीवन बिता रहे कुल 22 बच्चे-बच्चियों को कडी मेहनत और समर्पण से उनके परिजनों से मिलाया है। इस दौरान पुलिस ने सर्विलांस की मदद ली। मुहिम का दूसरा चरण अभी चल रहा है। तीसरे चरण में ये टीमें  कोलकाता, चेन्नई और गुजरात में गुमशुदा बच्चों की तलाश में जाएंगी।

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