यमुना एक्सप्रेसवे इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी में बतौर विशेष कार्याधिकारी काम कर रहे उत्तर प्रदेश प्रशासनिक सेवा के अफसर शैलेंद्र भाटिया उन चुनिंदा लोगों में से एक हैं, जिन्होंने जेवर में बन रहे नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लिए दिन-रात काम किया है। खास बात यह है कि इस एयरपोर्ट को सिरे चढ़ाने के लिए बनी सरकारी कंपनी नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड के वह पहले और इकलौते अधिकारी भी हैं। राज्य और केंद्र सरकार को चिट्ठियां लिखने से लेकर फाइलें तैयार करने और विभाग दर विभाग दौड़ने वाले शैलेंद्र भाटिया आजकल बहुत खुश हैं। दरअसल, 25 नवंबर को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जेवर एयरपोर्ट का शिलान्यास करेंगे तो उनकी करीब 5 वर्षों की मेहनत सफल हो जाएगी। इस काम को अंजाम देने में आई चुनौतियों, इस वक्त चल रही तैयारियों और भविष्य की योजनाओं पर शैलेंद्र भाटिया से ट्राईसिटी टुडे ने खास बातचीत की। पेश हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश...
- आप जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट की स्थापना प्रक्रिया के पहले दिन से ही जुड़े हुए हैं। इस परियोजना के भविष्य को एक विशेषज्ञ के तौर पर आप कैसा मानते हैं ?
यह मेरे लिए बहुत ही सौभाग्य का विषय है कि मैं जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट प्रक्रिया में शुरुआत से ही जुड़ा हुआ हूं। 6 जुलाई 2017 को इसका साइट क्लियरेंस हुआ था, तब से मैं इसी एयरपोर्ट से जुड़ा हुआ हूं। इस दौरान मैं उड्डयन मंत्रालय, पर्यावरण मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और विभिन्न मंत्रालय से जुड़ा रहा। जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट की लोकेशन बहुत ही अद्भुत है। अद्भुत इस मामले में है कि यह देश का सबसे बड़ा एयरपोर्ट तो है ही इसके अलावा दिल्ली-एनसीआर जैसे क्षेत्र का दूसरा एयरपोर्ट है। उत्तर प्रदेश सरकार को इस एयरपोर्ट की आवश्यकता तो थी लेकिन दिल्ली-एनसीआर को भी दूसरे एयरपोर्ट की आवश्यकता थी, जो अब पूरी होने जा रही है। आपको हम बता दें कि हमने इसकी स्टडी करवाई है, उसके मुताबिक पहले साल से ही 5 मिलियन लोग जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट के आसपास रहेंगे। यह 12 मिलियन क्षमता पैसेंजर का पहले चरण में बनेगा। मैं आपको बता दूं कि इस एयरपोर्ट 5 रनवे का है, लेकिन इसकी दो स्टेज है। स्टेज वन में 2 रनवे बनाएंगे और जिसकी क्षमता 70 मिलियन की है। इसके अंदर ही दो चरण हैं, उनमें से प्रथम चरण में 12 मिलियन पैसेंजर का होगा। उसका ऑपरेशन पीरियड हम 2023 से लेकर 2027 तक मांग रहे हैं। इस दौरान कुल एक रनवे बनेगा। दूसरा चरण 30 मिलियन पैसेंजर का होगा। हम लोग कोशिश कर रहे हैं कि यह स्थिति 2031 या 32 तक आ जाएगी। तीसरे चरण में यह 50 मिलियन का होगा, जो 2036 या 2037 की स्थिति होगी। चौथा चरण 70 मिलियन पैसेंजर का होगा। जो 2040-50 के बीच होगा। इस तरह इन चारों चरणों को मिलाकर यह 29,560 करोड़ रुपए की परियोजना है। अगर मैं इसे व्यक्तिगत तौर पर मानूं तो यह ऐतिहासिक और भारत की बहुत बड़ी उपलब्धि होने जा रही है। इससे पर्यटन और अन्य क्षेत्रों में उपलब्धि होगी। इसकी वजह से रोजगार बढ़ेंगे। आयात और निर्यात में प्रोत्साहन मिलेगा। इससे सबसे बड़ी बात यह होगी कि राज्य सरकार को इंटरनेशनल एयरपोर्ट से बहुत बड़ी आय मिलेगी। क्योंकि 400 रुपए प्रति पैसेंजर का शेयर सरकार को मिलेगा। यह सभी गतिविधियों को बूस्ट करने वाली परियोजना है।
- जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, फरीदाबाद और गुड़गांव को क्या फायदा देगा और इसके अलावा कितने बड़े दायरे में इस परियोजना का लाभ मिलेगा?
हमने जो ट्रैफिक स्टडी करवाई है, उसके हिसाब से जो डायरेक्ट इंपैक्ट के जिले आ रहे हैं, जिसमें राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और पश्चिम उत्तर प्रदेश के लगभग 27 जिले हैं। वो सीधे यहा पर ट्रैफिक के रूप में आएंगे और यह 27 जिले एक राज्य से बड़े हैं। अगर जनसंख्या के हिसाब से देखा जाए तो यह बहुत बड़ा एक विकास का एरिया है। यह बहुत बड़ा इंटरलैंड है जो दिल्ली-एनसीआर, राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश को लेकर बना है। यहां के 27 जनपदों से सीधे लोग जेवर एयरपोर्ट के लिए ट्रैफिक बनेंगे। इसके अलावा एक बहुत बड़ा फायदा होने वाला है। हमने जो ट्रैफिक स्टडी करवाई थी, उसके हिसाब से 51 फीसदी आईजीआई कार्गो का ट्रैफिक सिर्फ गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर से होता है। इसका मतलब आप समझ सकते हो कि कार्गो पर जो सामान आयात-निर्यात होता है, उसमें 50 फीसदी से ज्यादा गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर से होता है, जो अब जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट से होगा। इसके अलावा इतनी अच्छी कनेक्टिविटी वाला एयरपोर्ट पूरे प्रदेश में नहीं है, बल्कि देश का पहला एयरपोर्ट है, जो किसी एक्सप्रेसवे के इतने किनारे स्थित है। जेवर एयरपोर्ट और यमुना एक्सप्रेसवे के बीच केवल 100 मीटर की दूरी होगी। इसलिए हम इस पर अंतरराष्ट्रीय लेवल का इंटरचेंज बनाने जा रहे हैं। जिससे नोएडा इंटरनेशनल एयरपोर्ट को सीधे यमुना एक्सप्रेसवे से जोड़ा जाएगा। इसके अलावा जो दूसरा हमारा ईस्टर्न पेरीफेरल एक्सप्रेसवे है, उस पर भी हम इंटरचेंज बनाने जा रहे हैं। इसी के बगल में 60 मीटर की हमारी सर्विस रोड है। इसी पर हमारा दिल्ली-मुंबई-वल्लभगढ़ को जोड़ने वाला एक्सप्रेसवे आ रहा है। इसी पर हाईस्पीड रेल दिल्ली-वाराणसी वाली आ रही है। यह देश का पहला ऐसा एयरपोर्ट है, जो एयर के साथ-साथ रेल, रोड और सभी कनेक्टिविटी दे रहा है। जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट पूरे एनसीआर में मेगा इकोनॉमी के रूप में कार्य करेगा।
- जेवर एयरपोर्ट के भूमि अधिग्रहण और पुनर्स्थापन में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा और उन पर किस प्रकार से जीत हासिल की?
यह बहुत बड़ा चैलेंज था, क्योंकि लगभग 3,300 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया जाना था। इसमें लगभग 8,050 किसान सम्मिलित हैं। सात मजरे ऐसे थे, जिनके किसानों को दूसरे स्थान पर स्थापित करना था। ऐसे परिवारों की संख्या लगभग 3,000 थी। जब नए भूमि अधिग्रहण अधिनियम को लागू करके जमीन अधिग्रहण शुरू हुआ तो केवल 4 किसानों ने सहमति दी। हम सफल नहीं हो पाए। उसके बाद हमने किसानों से संपर्क शुरू किया। माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी का निर्देश था कि किसानों के पास जाइए और उनकी बात सुनिए। उनके गांव में जाकर उनसे संवाद करिए। एक योजना बनाई गई। इसमें तत्कालीन डीएम बीएन सिंह का बहुत बड़ा योगदान है। पूरा स्टाफ किसानों के पास गया। हमने फायदे गिनाए। बताया कि एयरपोर्ट बनने के बाद आप लोगों को क्या फायदे होंगे। देश और प्रदेश वासियों को क्या फायदे होंगे। उस समय जमीन का सर्किल रेट 900 रुपये प्रति वर्गमीटर था। इससे 2 गुना यानी 1,800 रुपए प्रति वर्गमीटर दर से मुआवजा देना था। फिर मुख्यमंत्री जी की तरफ से 500 रुपये प्रति वर्गमीटर अतिरिक्त दिए गए। कुल मिलाकर 2,300 रुपये प्रति वर्गमीटर के हिसाब से जमीन का अधिग्रहण हुआ। यह देश का पहला ऐसा एयरपोर्ट है, जिसमें 3,000 से अधिक किसानों की जमीन का अधिग्रहण नए कानून के तहत हुआ है। पुनर्स्थापन में किसानों को कानून और प्रचलित नीति से ज्यादा फायदा दिया है। नियम के मुताबिक एक इंदिरा आवास के तहत मकान देने की व्यवस्था है, लेकिन हमने जेवर कस्बे के निकट 50 हेक्टेयर जमीन पर एक आधुनिक सेक्टर बनाया। जिसमें चौड़ी सड़क, अंडरग्राउंड बिजली और सीवर सिस्टम है। इस परियोजना में जिन किसानों के मकान गए हैं, उन्हें नया घर बनाने के लिए न्यूनतम 50 वर्गमीटर और अधिकतम 500 वर्गमीटर जमीन दी है। किसानों को विकसित भूमि दी और संपत्ति की कीमत का दोगुना पैसा दिया है। जेवर कस्बे में इन किसानों की पुनर्स्थापन की व्यवस्था इसलिए की, क्योंकि कस्बे के आसपास हॉस्पिटल, पोस्ट ऑफिस, विश्वविद्यालय और थाने हैं। हमने जो कार्य किया है, यह पूरे भारत में उदाहरण बनने वाला है। कई राज्यों के अफसरों ने मुझसे बात की हैं कि आखिर कैसे इतना अच्छा अधिग्रहण किया है। योगी आदित्यनाथ जी की मंशा है कि हम ऐसा पुनर्स्थापन करें, जो पूरे देश में उदाहरण बने।
इस समय जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट के दूसरे चरण के विस्तार के लिए क्या प्रक्रिया चल रही है? दूसरे चरण के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इस पर अभी क्या स्टेटस है?
जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट का जो विस्तारीकरण हो रहा है, इसको हम स्टेज-2 कहते हैं। जेवर इंटरनेशनल एयरपोर्ट के पहले चरण में 1,334 हेक्टेयर, दूसरे चरण में 1,365 हेक्टेयर, तीसरे चरण में 1,318 हेक्टेयर और चौथे चरण में 735 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण होगा। जिसमें एयरपोर्ट एरिया है। बाकी इसमें इंडस्ट्री आएगी। जिसकी वजह से हो सकता है कि यह क्षेत्र और भी बढ़ जाए। इसमें तीन रनवे बनेंगे। इस 1,365 हेक्टेयर जमीन पर अधिग्रहण के लिए सरकार ने अनुमति दे दी है। इसके साथ ही 1,365 हेक्टेयर जमीन के लिए बजट भी अनुमोदित करके जिला प्रशासन को उपलब्ध करवा दिया है। वर्तमान में उसकी सोशल इंपैक्ट असिस्टेंट की स्थिति चल रही है। यह जो 1,365 हेक्टेयर जमीन पर तीसरा रनवे है, वह वर्तमान में दो रनवे के लिए साइन किए हैं। उसके नार्थ में ऊपर बनाया जाएगा। इसकी प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। हम नए जमीन अधिनियम के तहत अधिग्रहण कर रहे हैं। इसकी भी प्रगति अच्छी है। आने वाले दिनों में इसकी जो निर्धारित प्रक्रिया है, वह पूरी कर रहे हैं। वर्ष 2040-42 के बीच यहां पर तीसरा रनवे बनाया जाएगा।
- आप कुछ ऐसा बताएं जिसके बारे में हमें नहीं पता है?
मैं इस एयरपोर्ट के बनने से बहुत खुश हूं। क्योंकि जब आप किसी परियोजना को शुरू करते हैं और उसका पहला एप्लीकेशन डालते हैं, फिर उस परियोजना का शिलान्यास आपके ही कार्यकाल में हो रहा है और उसको डील भी आप कर रहे हो। यह मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी उपलब्धि रही है। सबसे बड़ी बात यह है कि यह सिंगल हैंड प्रोजेक्ट रहा है। इसमें किसी अन्य अधिकारी का हस्तक्षेप नहीं है, फिर इसमें चाहे पर्यावरण मंत्रालय या फिर भारत सरकार के ढेर सारे मंत्रालय से समन्वय करना हो या उत्तर प्रदेश राज्य सरकार, यमुना प्राधिकरण या फिर भूमि अधिग्रहण कार्यालय गौतमबुद्ध नगर से समन्वय करना हो। मैं इसका सिंगल नोडल अफसर रहा हूं। आज भी मैं इन सभी से समन्वय कर रहा हूं। यह मेरे लिए बहुत ही लर्निंग का विषय रहा है। इससे मैंने बहुत कुछ सीखा है। यह मेरे लिए ज्ञान की संपत्ति है। क्योंकि एक पीसीएस अधिकारी का कार्य तो तहसील में रहना होता है। टेक्निकल कार्य को नहीं कर पाता, लेकिन मैं सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूं। फिजिक्स और मैथ का व्यक्ति हूं। इसलिए ही मुझसे यह संभव हो पाया और तकनीकी तौर पर चीजों को मैं समझ पाया। यह मेरा भाग्य है कि हमारे सीईओ साहब ने मुझको यह मौका दिया।