Yamuna Authority : उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath ) के आदेश पर वरिष्ठ नौकरशाह नरेंद्र भूषण की छुट्टी कर दी गई है। नरेंद्र भूषण के पास औद्योगिक विकास विभाग में प्रमुख सचिव जैसा महत्वपूर्ण पद था। वह उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास प्राधिकरण और यमुना एक्सप्रेसवे इंडस्ट्री डेवलपमेंट अथॉरिटी के चेयरमैन भी थे। नरेंद्र भूषण से यह ज़िम्मेदारी भी छीन ली गई हैं। मिली जानकारी के मुताबिक़ नरेंद्र भूषण यमुना अथॉरिटी की बोर्ड मीटिंग्स से जुड़ी फाइलों पर दस्तख़त नहीं कर रहे थे। जिसकी वजह से प्राधिकरण की कई महत्वपूर्ण परियोजनाएं अधर में लटक गई थीं। आपको बता दें कि गुरुवार की दोपहर बाद राज्य सरकार ने शीर्ष नौकरशाही में बड़ा बदलाव किया है। जिसमें नरेंद्र भूषण को वेटिंग लिस्ट में डाल दिया गया है। फ़िलहाल उनके पास कोई काम नहीं है।
अनिल सागर यमुना अथॉरिटी के चेयरमैन बनाए गए
यमुना अथॉरिटी का चेयरमैन अनिल सागर को बनाया गया है। अनिल सागर अभी उत्तर प्रदेश सरकार में औद्योगिक अवस्थापना विभाग के प्रमुख सचिव हैं। उत्तर प्रदेश कैडर में 1998 बैच के आईएएस अफ़सर हैं। मूल रूप से कन्नौज ज़िले के रहने वाले हैं। वह लखनऊ, कानपुर, मेरठ, मुरादाबाद और सहारनपुर जैसे महत्वपूर्ण ज़िलों के कलेक्टर रह चुके हैं। बस्ती के मण्डलायुक्त रहे हैं। उत्तर प्रदेश शासन के कई महत्वपूर्ण विभागों में बतौर सचिव और विशेष सचिव काम करने का अनुभव है।
बतौर प्रमुख सचिव दागियों को प्राइम पोस्टिंग दीं
नरेंद्र भूषण ने उद्योग विभाग में प्रमुख सचिव रहते हुए पिछले महीने हुई ट्रांसफर पोस्टिंग में अजीबोगरीब स्थिति पैदा कर दी थी। नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेसवे इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी से जिन दागी अफ़सरों को सरकार ने हटाया था, उन तमाम अधिकारियों को नरेंद्र भूषण ने मलाईदार पोस्ट देकर वापस भेज दिया था। इनमें वह तमाम अफ़सर शामिल हैं, जिनके खिलाफ़ घपले, घोटालों और अनियमितताओं की जांच चल रही हैं। इतना ही नहीं, नरेंद्र भूषण ने इन तमाम अफ़सरों के ख़िलाफ़ चल रही जांच ठंडे बस्ते में डलवा दी थीं। उद्योग विभाग से पहले नरेंद्र भूषण लोक निर्माण विभाग में प्रमुख सचिव बनाए गए थे। वहां भी ट्रांसफर पोस्टिंग में बढ़ा बवाल हुआ था। ग्रेटर नोएडा में बतौर मुख्य कार्यपालक अधिकारी लंबे अरसे काम किया, इस दौरान उनकी कार्यप्रणाली को लेकर शहर के लोग परेशान रहे। नरेंद्र भूषण के कार्यकाल के दौरान ग्रेटर नोएडा शहर अपने सबसे बुरे दौर से गुज़रा था। अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके कार्यकाल में ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण पर कर्ज़ घटने की बजाए बढ़ता चला गया था। अथॉरिटी में अनुशासनहीनता चरम पर पहुंच गई थी।