Tricity Today | वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा से खास बातचीत
Jewar Airport News : करीब दो दशकों से लोग रह रहकर खबरें पढ़ और सुन रहे थे। जेवर में एयरपोर्ट बनेगा। जेवर में बनने वाला एयरपोर्ट फिरोजाबाद शिफ्ट होगा। एयरपोर्ट को केंद्र सरकार ने नामंजूर किया। अब एयरपोर्ट को केंद्र सरकार ने हरी झंडी दी। इन तमाम हेडलाइंस वाली खबरों को लिखने वाली एक शख्सियत से आज हम आपको रूबरू करवा रहे हैं। कई राष्ट्रीय अखबारों नोएडा में ब्यूरो चीफ रह चुके विनोद शर्मा को "नोएडा की विकिपीडिया" भी कहा जाता है। पेश हैं विनोद शर्मा और पंकज पाराशर के बीच हुई खास बातचीत।
- जेवर में इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनेगा, यह खबर आने की शुरुआत कब हुई और कैसे दो दशक लंबा वक्त बीत गया?
जेवर में एयरपोर्ट की सुगबुगाहट वर्ष 2001 के आसपास शुरू हुई थी। उस वक्त केंद्र सरकार में नागरिक उड्डयन विभाग के सेक्रेटरी बृजेश कुमार थे। बृजेश कुमार ग्रेटर नोएडा शहर के पहले मुख्य कार्यपालक अधिकारी भी रहे थे। वह ग्रेटर नोएडा को एक अत्याधुनिक और सपनों का शहर बनाने की इच्छा रखते थे। ठीक उसी वक्त उत्तर प्रदेश में राजनाथ सिंह मुख्यमंत्री बने। उस वक्त यह नहीं सोचा जा सकता था कि जेवर में अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डा बनेगा। बीच-बीच में राजनीतिक अड़ंगे आते रहे। मायावती ने इस एयरपोर्ट का हमेशा समर्थन किया। उस वक्त केंद्र में कांग्रेस की सरकार थीं। जिसकी वजह से बात नहीं बन पाई। मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव हमेशा आगरा और फिरोजाबाद में एयरपोर्ट बनाना चाहते थे। मैं कहना चाहूंगा कि जब कोई सरकार तय कर लेती है तो लक्ष्य हासिल हो जाता है। इस बार योगी आदित्यनाथ ने यह तय कर लिया था। इस वक्त केंद्र और राज्य में सरकार भारतीय जनता पार्टी की हैं। दृष्टिकोण और लक्ष्य एक है। लिहाजा, सफलता मिल गई है। हम खाली जेवर एयरपोर्ट को ही क्यों देखें। हमने एनएच-24 पर लंबे-लंबे ट्रैफिक जाम देखे हैं। 20 वर्षों के दौरान केंद्र और राज्य में चाहे कोई सरकारी थी, इस समस्या का समाधान नहीं कर पाई। गाजियाबाद जाने के लिए जाम में सरकना पड़ता था। नोएडा से इंदिरापुरम जाना और वापस लौटकर टास्क होता था। दृढ़ इच्छाशक्ति का परिणाम है कि आज वहां विश्वस्तरीय हाईवे बन गया है।
- आपने यहां पत्रकारिता की है। यहीं पले और बड़े हुए। कुछ वर्षों पहले जेवर तक कनेक्टिविटी के क्या हालात थे?
वर्ष 1997 में गौतमबुद्ध नगर जिला बना। उससे पहले यहां जिला गाजियाबाद था। वर्ष 1997 के बाद हुए चुनाव के दौरान हम कवरेज के लिए जेवर जाते थे। नोएडा से सीधे जेवर जाने का कोई रास्ता नहीं था। हमें हरियाणा के फरीदाबाद और पलवल होकर जेवर जाना पड़ता था। एक बार तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती दस्तमपुर गांव में आई थीं। उसी रास्ते से जेवर जाकर कवरेज की। अभी भी आप देख लीजिए। जिस तरह नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना क्षेत्र का विकास हुआ है, उसी तरह फरीदाबाद में भी हो रहा है। लेकिन अभी भी कनेक्टिविटी की बड़ी गुंजाइश है। कालिंदी कुंज के बाद पलवल के पास यमुना नदी पर दूसरा पुल है। सोचो आज भी कितनी दूर तक लोग चक्कर लगाते हैं। अगर नोएडा और जेवर के बीच यमुना नदी पर दो-तीन पुल बना दिए जाएं तो कनेक्टिविटी कितनी बेहतर हो जाएगी। कालिंदी कुंज पर लगने वाला ट्रैफिक जाम खत्म हो जाएगा।
- अब सारे किंतु-परंतु खत्म हो चुके हैं। आप क्या मानते हैं जेवर एयरपोर्ट आएगा तो क्या-क्या लाएगा?
देखिए जेवर एयरपोर्ट तो अपने आप में उत्तर भारत की बहुत बड़ी उपलब्धि है। मैं यह बात इसलिए कह रहा हूं कि यह सबसे बड़ा एयरपोर्ट होगा। दूसरी बात यह कि जिस इलाके में इसे बनाया जा रहा है, उसके चारों ओर विकास की अपार संभावनाएं हैं। निवेशकों को भरपूर काम करने के अवसर मिलेंगे। खूब विस्तार योजनाएं लागू की जा सकती हैं। जब कहीं एयरपोर्ट बनता है तो कनेक्टिविटी और आधारभूत ढांचा विश्वस्तरीय बनाने का अवसर मिलता है। होटल इंडस्ट्री विकसित होगी। बहुत सारे देशी-विदेशी संस्थान अपने कार्यालय और परिसर जेवर एयरपोर्ट के बेहद नजदीक बनाएंगे। जब कोई अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर उतरता है तो वह लंबा सफर करके दूर जाना नहीं चाहता। ऊपर से दिल्ली में भीड़ बहुत ज्यादा है। ट्रैफिक की हालत बहुत ज्यादा खराब है। हमारे लिए दूसरी बड़ी उपलब्धि ब्रज क्षेत्र है। मथुरा धर्म और पर्यटन की दृष्टि से अयोध्या की बराबर महत्व रखता है। दुनियाभर से लोग मथुरा आएंगे, वह इसी एयरपोर्ट का इस्तेमाल करेंगे। थोड़ी सी दूरी पर आगरा का ताजमहल है। उसे देखने हर साल लाखों विदेशी पर्यटक आते हैं। वह लोग अब दिल्ली हवाईअड्डे पर क्यों उतरेंगे। एयरपोर्ट के पास विश्वस्तरीय सुविधाओं वाली फिल्म इंडस्ट्री बन रही है। मैं मानता हूं कि एक वक्त ऐसा आएगा, जब दुनियाभर के फिल्म निर्माता और कलाकार यहां आएंगे। आज ऑस्कर अवॉर्ड की बदौलत पूरी दुनिया की फिल्म हस्तियों का जमावड़ा लगता है। उसी तरह जेवर फिल्म सिटी में जमावड़ा लगेगा। यह बात बड़े लंबे अरसे बाद पूरी नहीं होगी। मेरा मानना है कि बहुत जल्दी यह होने जा रहा है। भारतीय फिल्म इंडस्ट्री और सरकार को ऑस्कर अवार्ड की तरह बड़े अवॉर्ड की स्थापना करनी चाहिए। पूरी दुनिया के फिल्म निर्माता अपनी एंट्री यहां भेजेंगे। इसे आईपीएल की तरह स्थापित किया जाना चाहिए। भारतीय फिल्म इंडस्ट्री 100 साल पुरानी हो चुकी है। अब नए अभिनेता बनेंगे। नए फिल्म निर्माता बनेंगे। लोगों को काम मिलेगा। यही नजदीक डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर बन रहे हैं। जिनकी बदौलत औद्योगिकरण और आयात-निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। मैं मानता हूं कि यह पूरा इलाका आर्थिक दृष्टिकोण से चमकते सूर्य की तरह बन जाएगा।
- नोएडा और ग्रेटर नोएडा को लेकर कुछ कमियां रह गई हैं, जो हमारे मन में कसक पैदा करती हैं। ऐसा यमुना अथॉरिटी को क्या करना चाहिए, जिससे पूरी तरह सुनियोजित विकास हो?
हमारे बीच बेहद सुंदर नदियां यमुना और हिंडन हैं। इनके सौंदर्य की बात किए बिना इस क्षेत्र का विकास बेमायने है। अगर आप हिंडन और यमुना नदी को साफ-सुथरा नहीं कर सकते तो फिर सबकुछ बेकार है। गंदगी से भरी यह नदियां अगर इन शहरों के बीच से होकर गुजरेंगी तो कैसा लगेगा? बाहर से आने वाले लोग हमारे बारे में कैसा महसूस करेंगे? हमारी राज्य और केंद्र सरकार को सबसे पहले इन दोनों नदियों को साफ-सुथरा बनाने के लिए काम शुरू करना चाहिए। मैं अपना अनुभव बताता हूं। मैं वर्ष 1978 के आसपास 10-12 वर्ष का था। मैंने यमुना नदी में एकदम नीला पानी देखा। उस पर पक्षी कलरव करते थे। इतना सुंदर नजारा होता था कि बस पूछो मत। यह नजारा फिर से यमुना नदी पर आना चाहिए। जिस दिन ऐसा होगा, उस दिन नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना सिटी में चार चांद लग जाएंगे। यह पर्यावरण और हमारी आने वाली पीढ़ियों के दृष्टिकोण से बेहद जरूरी है। गंदगी से भरी नदियां प्रदूषण के साथ-साथ जल संकट की वजह बनेंगी। तभी यह नदियां जीवनदायिनी कहलाएंगी।
- नोएडा शहर की यात्रा वर्ष 1977 से शुरू होती है। आज वर्ष 2021 समाप्त होने वाला है। किसानों के मुद्दे सामने खड़े हुए हैं। ग्रेटर नोएडा में भी कमोबेश यही दशा है। यमुना अथॉरिटी को ऐसा क्या करना चाहिए, जो ऐसी नकारात्मक छवि तैयार करने वाली घटनाएं सामने ना आएं?
मैं मानता हूं अगर आपको शहर में कोई आदर्श सेक्टर डिवेलप करना है तो नोएडा के सेक्टर-15ए का मॉडल अख्तियार कीजिए। इस सेक्टर के बराबर में मुख्य सड़क है। उसके बराबर में ग्रीन बेल्ट है। अंदर जाने के लिए केवल दो रास्ते हैं। सेक्टर के चारों तरफ सड़क हैं। वहां किसी अतिक्रमण की गुंजाइश नहीं है। पर्यावरण की दृष्टि से ग्रीन बेल्ट, सीवर लाइन और तमाम दूसरी सुविधाएं हैं। इसी तरह सारे गांव और सेक्टर हों। उसके चारों तरफ एक पेरिफेरल रोड बनाइए। उसके चारों ओर ग्रीन बेल्ट छोड़िए। फिर सेक्टर या गांव का डेवलपमेंट कीजिए। यह व्यवस्था गांवों में खासतौर से अपनाने की आवश्यकता है। भूमि अधिग्रहण के साथ ही गांव के चारों ओर एक पेरिफेरल रोड बना देनी चाहिए। ग्रामीणों के लिए जरूरी स्कूल, अस्पताल, कम्युनिटी सेंटर और दूसरी सेवाओं के लिए जमीन छोड़ देनी चाहिए। उस पर बोर्ड लगा देना चाहिए। जिससे कोई अतिक्रमण ना कर सके।
मैं एक और महत्वपूर्ण बिंदु की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा। इस बात पर नोएडा और ग्रेटर नोएडा में कोई ध्यान नहीं दिया गया। गांव में भूमि अधिग्रहण किसानों से किया गया है, लेकिन गांवों में किसानों पर आश्रित दूसरे परिवार भी हैं। उनके बारे में किसी ने कुछ नहीं सोचा है। भूमिहीन लोगों को काम कैसे मिले, उन्हें आवासीय सुविधाएं कैसे मिलें? उनके लिए एलआईजी और ईडब्ल्यूएस घर दिया जाए। उनके लिए वेंडर्स जॉन बनाए जाएं। उनका पुनर्वास किया जाना नितांत आवश्यक है। गांव में जो बच्चे पढ़े-लिखे हैं, उनके लिए रोजगार सेल का गठन किया जाए। अगर गांव के बच्चे नहीं पढ़ पाए तो यह आने वाले वक्त में बड़ी परेशानी बन जाएगी। कहीं ऐसा ना हो, विकास की चकाचौंध में बच्चों को वह शिक्षा ना मिल पाए, जिसके वह हकदार हैं।
- आप कोई ऐसी जानकारी या संस्मरण बताएं, जिसके बारे में हमें पता ना हो?
मैं पिछले सवाल के जवाब को ही आगे बढ़ाते हुए एक संस्मरण बताना चाहता हूं। छलेरा गांव का एक किसान अपने बच्चे का दाखिला नोएडा के कैंब्रिज स्कूल में करवाने के लिए गया। स्कूल मैनेजमेंट और प्रिंसिपल ने दाखिला देने से इनकार कर दिया। कहा गया कि यह गांव का बच्चा है, स्कूल का माहौल खराब करेगा। बच्चे के पिता ने प्रयास किए और किसी तरह दाखिला करवाने में कामयाब हो गया। वह बच्चा कक्षा 6 से लेकर 12वीं तक स्कूल में टॉपर रहा। बाद में आईआईटी गया। आईआईटी चेन्नई का गोल्डमेडलिस्ट बना। अब नीदरलैंड में नौकरी कर रहा है। जब मैंने यह कहानी सुनी तो उस परिवार के पास गया। इस पूरे घटनाक्रम और बच्चे की कामयाबी पर समाचार प्रकाशित किया। किसान परिवार ने उस खबर को फ्रेम करके अपने घर की दीवार पर टांग रखा है। मैं हमेशा बस यही बात कहता हूं कि प्रत्येक बच्चे को भरपूर अवसर मिलना चाहिए। इसे सहज रूप से समझने के लिए इस तरह कह सकते हैं, "गेहूं के ढेर में पड़े दानों में से कौन सा दाना अधिक उपजाऊ होगा और कौन सा नहीं? यह तब तक पता नहीं लगाया जा सकता है, जब तक उन सभी को जमीन में नहीं बोया जाएगा। लिहाजा, हर दाने को दरख़्त बनने का पूरा हक है।"