Prayagraj/Greater Noida : गौतमबुद्ध नगर जिले के चिटहेरा गांव में हुए अरबों रुपए के भूमि घोटाले में प्रयागराज हाईकोर्ट ने आरोपियों को अंतरिम जमानत दी है। इस मामले में जिला प्रशासन की ओर से 9 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई गई थी। जिसमें उत्तराखंड में तैनात आईएएस-आईपीएस अफसरों के माता-पिता, सास-ससुर और पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के समधी-समधन शामिल हैं। सबसे पहले बुधवार को पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के समधी अनिल राम और समधन साधना राम को यह राहत दी गई। इसके बाद गुरुवार को तीन और आरोपियों को हाईकोर्ट ने अंतरिम जमानत दी हैं। साथ अदालत ने सारे आरोपियों को आदेश दिया है कि मामले में फैसला आने तक देश छोड़कर नहीं जाएंगे।
सबसे पहले पूर्व सीएम के रिश्तेदार पहुंचे हाईकोर्ट
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की समधन साधना राम और समधी अनिल राम ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में सबसे पहले याचिका दायर कर अंतरिम जमानत की मांग की। इन लोगों ने अदालत को बताया कि उनका इस भूमि घोटाले से कोई लेना-देना नहीं है। चिटहेरा गांव में उनकी कंपनी ने जमीन खरीदी थी। इस जमीन पर पट्टों को लेकर पहले अपर जिलाधिकारी और फिर अपर आयुक्त के न्यायालय से फैसले आए थे। उनका पूरे घोटाले से कोई सरोकार नहीं है। दोनों ने अदालत से कहा, "हमारा भूमाफिया यशपाल तोमर से कोई संबंध नहीं है।" दोनों ने बताया कि बुजुर्ग हैं और उम्र 70 वर्ष से ज्यादा है। दोनों को कई बीमारियां भी हैं। लिहाजा, मामले में जमानत दी जाए।
इतना ही नहीं दोनों ने गौतमबुद्ध नगर जिला प्रशासन पर गलत ढंग से मामले में फंसाने का आरोप भी लगाया है। अदालत में राज्य सरकार के वकील ने अनिल राम और साधना राम को जमानत देने का पुरजोर विरोध किया। जस्टिस विवेक कुमार सिंह की अदालत ने अनिल राम और साधना राम को अंतरिम जमानत दे दी है, लेकिन उन पर पांच बड़ी शर्तें लगाई हैं।
गुरुवार को अफसरों के रिश्तेदारों को राहत मिली
इसके बाद गुरुवार को उत्तराखंड कैडर के आईएएस मीनाक्षी सुंदरम के पिता एम भास्करन की अर्जी पर न्यायालय ने सुनवाई की। एम भास्करन को भी अनिल राम और साधना राम कि तरह अंतरिम जमानत दे दी गई है। मीनाक्षी सुंदरम फिलहाल उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सचिव हैं। उत्तर प्रदेश के सेवानिवृत्त नौकरशाह केएम संत को भी अंतरिम जमानत दी गई है। केएम सन्त उत्तराखंड के आईएएस बृजेश संत के पिता हैं। बृजेश संत अभी देहरादून-मसूरी विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष हैं। उत्तराखंड कैडर में आईपीएस बृजेश स्वरूप की मां सरस्वती देवी को भी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अंतरिम जमानत दे दी है।
इन पांच शर्तों के तहत सभी को जमानत मिली 1. आरोपी विचारण के लंबित रहने के दौरान भारत नहीं छोड़ेंगे। अगर विदेश जाना जरूरी होगा तो संबंधित ट्रायल कोर्ट से पूर्व अनुमति लेनी पड़ेगी। 2. आरोपी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी भी परिचित व्यक्ति को प्रलोभन, धमकी नहीं देंगे, जिससे इस मामले के तथ्यों का खुलासा करने से रोका जा सके। न्यायालय या किसी पुलिस अधिकारी को प्रलोभन नहीं देंगे। 3. आवेदक इस आशय का एक वचन पत्र दाखिल करेंगे कि वे
साक्ष्य के लिए नियत तारीखों पर कोई स्थगन नहीं मांगेगे और
गवाही के लिए कोर्ट में मौजूद रहेंगे। कोर्ट में हाजिर नहीं होने या मामले को लटकाने की कोशिश करेंगे तो निचली अदालत इसे जमानत का दुरुपयोग मानकर जमानत समाप्त करने के लिए स्वतंत्र होगी। निचली अदालत कानून के अनुसार आदेश पारित करेंगी। 4. मामले में आरोपी जमानत की स्वतंत्रता का दुरुपयोग करते हैं तो ट्रायल कोर्ट संबंधित कानून के अनुसार उचित कार्रवाई कर सकती है। सुशीला अग्रवाल बनाम राज्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला लागू होगा। 5. आवेदक परीक्षण से समय अदालत में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहेंगे। (i) मुकदमे की सुनवाई शुरू करने, (ii) आरोपों के निर्धारण के लिए नियत तारीखों पर, (iii) सीआरपीसी की धारा 313 के तहत बयान दर्ज करवाने के लिए ट्रायल कोर्ट की ओर से निर्धारित तारीखों पर हाजिर रहेंगे। इस शर्त का डिफ़ॉल्ट जानबूझकर या पर्याप्त कारण के बिना करते हैं तो ट्रायल कोर्ट के लिए सभी विकल्प खुले हैं। इस तरह की चूक को जमानत की स्वतंत्रता के दुरुपयोग के रूप में मानें और उसके खिलाफ कार्रवाई करें।