Tricity Today Special Coverage: एक कहावत है कि बदमाश चाहे कितना भी बड़ा क्यों ना हो, उसकी किस्मत में दो ही चीज "पुलिस की गोली या जेल की खोली" होती हैं। करीब तीन दशक से गौतमबुद्ध नगर समेत वेस्ट यूपी और दिल्ली-एनसीआर में खौफ का पर्याय बना हुआ सुंदर भाटी आज अपने अंजाम तक पहुंच गया है। सुंदर भाटी को गौतमबुद्ध नगर के बहुचर्चित 'हरेंद्र नागर हत्याकांड' में जिला सत्र न्यायालय ने उम्र कैद की सजा सुनाई है। इस फैसले में साफतौर पर अदालत ने सुंदर भाटी को हरेंद्र नागर की हत्या करवाने का जिम्मेदार ठहराया है। हरेंद्र नागर की मौत से लेकर सुंदर भाटी को सजा मिलने के दरमियान 2249 दिन का समय लगा। अदालत में बचाव पक्ष ने तमाम मुद्दों को उठाने, गवाहों को झूठा ठहरने और पुलिस की जांच में कमियां गिनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन बड़ी बात यह है कि पुलिस और अभियोजन ने बड़े धैर्य, विद्वता व कानूनी मानकों का उपयोग करते हुए सुंदर भाटी और उसके 11 गुर्गों को सजा करवाने में कामयाबी हासिल की है।
अपर जिला एवं सत्र न्यायधीध (फ़ास्ट ट्रैक-1) अनिल कुमार सिंह ने 61 पेज का फैसला सुनाया है। देशभर के कई हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट और निचली अदालतों के फैसलों की 64 नजीर इस फैसले में शामिल हैं। बचाव पक्ष कि हर आपत्ति को बेहद खूबसूरती के साथ उद्धरण, गवाहों और साक्ष्यों के जरिए काटा गया है। इस मामले में अभियोजन पक्ष ने 28 गवाह पेश किए। जिनमें मृतक हरेंद्र नागर का सगा भाई रविंद्र नागर, चचेरा भाई विकास नागर, आज़ाद, पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर, इस पूरे प्रकरण की जांच करने वाले तीन इंस्पेक्टर और कई दूसरे का गवाह शामिल किए गए हैं। दूसरी ओर बचाव पक्ष ने 10 गवाह पेश किए। जिनमें गौतमबुद्ध नगर जिला जेल के तत्कालीन सुपरिटेंडेंट, 6 पुलिसकर्मी और 3 अन्य गवाह शामिल किए गए हैं। अभियोजन पक्ष की ओर से 89 दस्तावेजी सबूत अदालत के सामने पेश किए गए। दूसरी तरफ बचाव पक्ष ने 19 दस्तावेज अदालत के सामने रखें हैं। इस पूरे मामले में सरकार की ओर से जिला शासकीय अधिवक्ता, सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता और वादी रविंद्र नागर के वकील चौधरी हरिराज सिंह ने पक्ष रखा। बचाव पक्ष की ओर से सुंदर भाटी, सिंह राज और बाकी आरोपियों ने 5 वकील खड़े किए थे।
हरेंद्र नागर हत्याकांड की घटना कुछ इस तरह है
जिला शासकीय अधिवक्ता ब्रह्मजीत भाटी ने बताया कि इस मुकदमे के वादी रविंद्र सिंह ने 18 फरवरी 2015 को ग्रेटर नोएडा थाने में शाम 7:30 बजे एफआईआर दर्ज करवाई थी। रविंद्र ने लिखवाया कि वह, उसका भाई हरेंद्र नागर, पुलिस सुरक्षा कर्मी भूदेव शर्मा और चचेरा भाई विकास नगर नियाना गांव गए थे। नियाना गांव में प्रकाश प्रधान की बेटी की शादी थी। जब वे लोग दोपहर बाद करीब 3:10 बजे विवाह समारोह से वापस लौट रहे थे तो उन पर घात लगाकर हमला किया गया। दिनेश भाटी, मनोज भाटी, अनूप भाटी, सुरेंद्र पंडित, जितेंद्र चौधरी, पोपी गुर्जर, सोनू, कालू, बॉबी और कुछ अज्ञात लोग घात लगाकर बैठे हुए थे। इन सारे बदमाशों से मेरे भाई हरेंद्र नागर की दुश्मनी थी। दिनेश भाटी ने सामने से हरेंद्र नागर पर पिस्टल से गोली चलाई। हरेंद्र नागर और भूदेव शर्मा ने आत्मरक्षा में गोली चलाई। जिसमें एक हमलावर घायल हो गया। इस गोलीबारी में भूदेव शर्मा भी घायल हुए। इन हमलावरों ने पिस्टल और राइफल से गोलीबारी की। वादी ने बताया कि वह और उसके चचेरे भाई ने शोर मचाया तो आसपास से कुछ लोग उनकी तरफ दौड़े। इस पर हवा में फायरिंग करते हुए हमलावर फरार हो गए। नियाना गांव का प्रवीण उर्फ छोटे हमारे पास पहुंचा। मैं प्रवीण और अपने चचेरे भाई विकास नागर की मदद से हरेंद्र नागर व भूदेव शर्मा को ग्रेटर नोएडा के कैलाश अस्पताल लेकर पहुंचा, लेकिन वहां चिकित्सकों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया। डीजीसी ने बताया कि इस शिकायत के आधार पर ग्रेटर नोएडा पुलिस थाने में केस क्राइम नंबर 10/2015 आईपीसी की धारा 147, 148, 149, 307, 302, और 120-बी के तहत दर्ज की गई थी।
बचाव पक्ष ने इन मुद्दों पर आपत्ति जताई
एफआईआर दर्ज करवाने में 4 घण्टों से ज्यादा देरी क्यों : बचाव पक्ष ने आपत्ति जाहिर की कि घटना और एफआईआर दर्ज होने के समय में 4 घंटों से ज्यादा देरी की गई है। एफआईआर के मुताबिक घटना दोपहर बाद 3:10 पर हुई, जबकि एफआईआर दर्ज करने का समय 7:30 बजे है। इस पर अभियोजन ने तर्क दिया कि वादी हैरान-परेशान और दुख में था। उसके भाई हरेंद्र नागर की हत्या हुई थी। ऐसे में उसे पहले अपने भाई को बचाने के लिए प्रयास करने थे। जब उसे डॉक्टर ने यह बता दिया किसके भाई की मौत हो चुकी है तो उसने खुद को संभालकर कानूनी प्रक्रियाओं पर ध्यान दिया। लिहाजा, इस देरी का इस बात पर कोई असर नहीं पड़ता है कि वारदात हुई या नहीं। अभियोजन का यह कहना भी गलत है की कहानी बनाकर गलत ढंग से आरोपियों को शामिल किया गया है।
मरने वाले के घनिष्ट रिश्तेदार चश्मदीद गवाह हैं : बचाव पक्ष ने तीन चश्मदीद गवाह रविंद्र नागर, विकास नागर और आजाद पर सवाल उठाया। बचाव पक्ष के वकीलों ने कहा कि रविंद्र नागर, हरेंद्र नागर का सगा भाई है। विकास नागर चचेरा भाई है और आजाद रिश्तेदार है। ऐसे में इनकी गवाही प्रतिशोध से प्रेरित हो सकती है। इस पर अभियोजन ने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के कई फैसलों की नजीर देते हुए कहा कि चश्मदीद गवाह मरने वाले के घनिष्ट रिश्तेदार हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि उनकी गवाही झूठी है। जब वह लोग मौके पर थे तो वह चश्मदीद गवाह हैं। लिहाजा, अदालत ने बचाव पक्ष का यह तर्क भी खारिज कर दिया।
सभी आरोपियों के नाम एफआईआर में क्यों नहीं हैं : हरेंद्र नागर ने एफआईआर दिनेश भाटी, मनोज भाटी, अनूप भाटी, सुरेंद्र पंडित, जितेंद्र चौधरी, पोपी गुर्जर, सोनू, कालू, बॉबी और कुछ अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज करवाई थी। बाद में सुंदर भाटी, सिंघराज भाटी और अन्य के नाम शामिल किए गए हैं। इस पर अभियोजन ने तर्क दिया कि एफआईआर एनसाइक्लोपीडिया नहीं है। एफआईआर का उद्देश्य केवल इतना है कि जांच शुरू की जा सके। यह जरूरी नहीं है कि सभी आरोपियों के नाम आवश्यक रूप से एफआईआर में दर्ज करवाए जाएं। आरोपी योगेश, विकास पंडित, सुंदर भाटी, रिशिपाल और सिंह राज के नाम बाद में शामिल करना कोई चूक नहीं है। एफआईआर के बाद जांच एक लंबी प्रक्रिया है। जिसमें नए नाम को जोड़ा जा सकता है। लिहाजा, अदालत ने बचाव पक्ष का यह तर्क भी खारिज कर दिया।
एफआईआर दर्ज करने के लिए जीडी रोकी गई : बचाव पक्ष ने एक आरोप यह भी लगाया कि हरेंद्र नागर हत्याकांड की एफआईआर दर्ज करने के लिए ग्रेटर नोएडा पुलिस स्टेशन की जीडी को रोक दिया गया था। अभियोजन ने अदालत से कहा कि यह तर्क कतई स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। थाने में काम करने वाले हेडमोहर्रिर का घटित घटनाओं से कोई ताल्लुक नहीं है। वह नियमित रूप से अपना काम करता है। जब उसे शिकायत मिलती है तो वह एफआईआर दर्ज कर लेता है। अदालत ने इस तर्क को भी बलहीन करार दिया।
एफआईआर से पहले पंचायतनामा क्यों भरा गया : बचाव पक्ष ने अदालत में एक तर्क यह भी दिया कि हरेंद्र नागर और भूदेव शर्मा के शवों का पंचायत नामा एफआईआर दर्ज होने से पहले भर दिया गया था। इस पर अभियोजन पक्ष ने कहा, यह सामान्य बात है। एफआईआर 7:30 बजे दर्ज की गई थी। पंचायतनामा केवल मौत की सामान्य वजह को बताने के लिए भरा जाता है। यह अभियोजन का दस्तावेज नहीं है। पंचायतनामा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-162 के तहत भरा जाता है। अगर चश्मदीद गवाह विकास कुमार ने जांच के समय कोई बयान नहीं दिया है तो इस आधार पर अभियोजन के मामले की सत्यता पर संदेह नहीं किया जा सकता है। अभियोजन ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की कई नजीर अपने तर्क के साथ पेश कीं। जिसको अदालत ने सही ठहराया ही।
घायलों को अस्पताल लाने वाले सभी लोगों के नाम एडमिशन फॉर्म में क्यों नहीं : बचाव पक्ष ने एक और सवाल उठाया कि घायलों को अस्पताल लाने वाले सारे लोगों के नाम एडमिशन फॉर्म में दर्ज क्यों नहीं किए गए हैं। इससे साबित होता है कि जिन लोगों को चश्मदीद गवाह बताते हुए घायल हरेंद्र नागर और भूदेव शर्मा को अस्पताल लाना बताया गया है, वह मौके पर मौजूद ही नहीं थे। इस पर अभियोजन पक्ष ने कहा कि एडमिशन फॉर्म सबूत के तौर पर मान्य नहीं हो सकता। यह दस्तावेज न तो अभियोजन पक्ष का है और ना ही बचाव पक्ष का है। यह जरूरी नहीं है कि घायलों को अस्पताल लाने वाले सभी लोगों के नाम एडमिशन फॉर्म में दर्ज किए जाएं। अगर मेडिकोलीगल बनाने वाले डॉक्टर ने दस्तावेज में हरेंद्र नागर के भाई रविंद्र नगर का नाम नहीं लिखा है तो इससे यह साबित नहीं किया जा सकता कि वह अपने घायल भाई को अस्पताल लेकर नहीं गया था। मरने वाले के सभी रिश्तेदारों के नाम रिपोर्ट में दर्ज करने जरूरी नहीं हैं। यह न तो कानून की जरूरत है और ना ही अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टर को इसकी आवश्यकता होती है। लिहाजा, अदालत ने अभियोजन के इस तर्क को भी जायज माना है।
किसी गलत बयान से सही बयान को खारिज नहीं किया जा सकता : बचाव पक्ष ने चश्मदीद गवाहों रविंद्र सिंह, विकास नागर और आजाद के बयानों में कुछ हिस्सों को गलत ठहराया। इस पर अभियोजन ने अदालत को बताया कि तीनों गवाहों के बयानात में किसी भी तरह का विरोधाभास नहीं है। सबूतों के आधार पर अभियोजन ने इन बयानों को साबित किया है। अदालत का काम बयानों में से काम के तथ्यों को निकाल कर खराब तथ्यों को अलग करना है। ऐसे में किसी आंशिक गड़बड़ी के लिए पूरे बयान पर अविश्वास नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने गवाहों की मौखिक गवाही को तीन श्रेणी में विभाजित किया है। पूरी तरह विश्वसनीय, पूरी तरह अविश्वसनीय, ना विश्वसनीय और ना पूरी तरह अविश्वसनीय। अदालत ने आपत्ति को ख़ारिज कर दिया।
गवाह के चरित्र पर उठाया सवाल वाजिब नहीं : बचाव पक्ष ने अभियोजन के चश्मदीद गवाह रविंद्र सिंह के चरित्र पर सवाल उठाया। जिसे अभियोजन ने अस्वीकार कर दिया। कहा कि इससे अभियोजन के साक्ष्य की सत्यता को प्रभावित नहीं किया जा सकता है। आपराधिक मामलों के ट्रायल में इस तरह के सबूतों की कोई अहमियत नहीं है। अभियोजन के वकील ने विजेंद्र सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य की एक नजीर पढ़ते हुए कहा, हत्याएं गवाहों को पहले बताकर अंजाम नहीं दी जाती हैं। उनसे हत्या के वक्त मौजूद रहने का आग्रह नहीं किया जाता है। यदि किसी वेश्यालय में हत्या हो तो क्या वहां काम करने वाली वेश्या एक प्राकृतिक गवाह नहीं होगी? अगर मर्डर सड़क पर होगा तो वहां से गुजरने वाले लोग ही तो चश्मदीद गवाह बनेंगे। अगर आसपास रहने वालों के बीच कोई हत्या होती है तो पड़ोसी ही वहां चश्मदीद गवाह बन जाएगा। लिहाजा, इस तरह की आपत्ति स्वीकार्य नहीं है। अदालत ने बचाव पक्ष की इस आपत्ति को भी खारिज कर दिया।
हत्या के वक्त देहरादून में था रविंदर नागर : केस के ट्रायल में बचाव पक्ष ने एक और चौंकाने वाला तर्क रखा। अदालत को बताया कि जिस वक्त हरेंद्र नागर की हत्या की गई थी, उसका भाई रविंद्र नागर देहरादून में मौजूद था। ऐसी स्थिति में वह चश्मदीद गवाह कैसे हो सकता है? अभियोजन ने बचाव पक्ष के इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि अगर उनके पास इस तरह का कोई सबूत है तो अदालत के सामने पेश करें। बचाव पक्ष ऐसा कोई सबूत पेश नहीं कर पाया। आरोपियों के वकील ने बताया कि उस दिन के अखबारों में खबर छपी थी कि हरेंद्र नागर की हत्या के वक्त उसका भाई रविंद्र नगर देहरादून में था। अभियोजन ने कहा कि अखबार में छपा समाचार अदालत में पुख्ता सबूत के तौर पर उपयोग नहीं किया जा सकता है। यह सुनी सुनाई बात पर प्रकाशित की गई ख़बर हो सकती है।
घायल विक्की की गवाही क्यों नहीं ली गई : सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष ने एक और आपत्ति जताई। वकील ने कहा कि वारदात के वक्त एक विक्की नाम का युवक घायल हुआ था। उसे अदालत के सामने बतौर गवाह क्यों पेश नहीं किया गया? इस पर अभियोजन के वकील ने कहा, यह स्वीकारी आपत्ति नहीं है। अभियोजन यह तय करने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र है कि वह किसे अपना गवाह बनाना चाहता है। हम अपनी कहानी को साबित करने के लिए किससे समर्थन लेंगे, यह तय करना हमारा काम है।
हरेंद्र नागर के आमाशय में अधपचा खाना क्यों मिला : बचाव पक्ष ने पुलिस और अभियोजन की पूरी कहानी को पलटने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बचाव पक्ष के वकीलों ने यहां तक कहा कि यह वारदात नियाना गांव में हुई ही नहीं थी। इसके लिए तर्क दिया कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पता चला है कि हरेंद्र नागर के अमाशय में अधपचा खाना था। घटना की जगह कोई दूसरी थी। हरेंद्र नागर नियाना गांव के शादी समारोह में शामिल नहीं हुआ था। नियाना गांव में हुई घटना का समय 8 फरवरी 2015 की दोपहर बाद 3:10 बजे बताया गया है। जबकि, ऑटोप्सी 9 फरवरी 2015 को आधी रात के बाद करीब 1:30 बजे हुई है। अगर हरेंद्र नागर शादी समारोह में शामिल होता तो उसके पेट में अधपचा खाना नहीं मिलना चाहिए था। इस पर अभियोजन पक्ष ने कहा कि मृत्यु के तत्काल बाद अमाशय में पड़े भोजन का पाचन थम नहीं जाता है। मतलब, मौत होने के बाद पेट में खाना खुद भी पच सकता है।
गवाह के बयानों में विरोधाभास क्यों और मौके से भाग क्यों गए : बचाव पक्ष ने तीनों चश्मदीद गवाहों को झूठा ठहराने पर बहुत ज्यादा जोर दिया। सवाल उठाया कि गवाहों के बयानात में विरोधाभास है। यह लोग मौके पर थे तो वहां से भाग क्यों गए थे। जिस पर अभियोजन पक्ष ने कहा, "हर व्यक्ति जो किसी हत्या का गवाह होता है, अपने तरीके से प्रतिक्रिया करता है। कुछ स्तब्ध रह जाते हैं, अवाक हो जाते हैं और घटनास्थल पर खड़े रह जाते हैं। कुछ हिस्टेरिक हो जाते हैं और लड़खड़ाने लगते हैं। कुछ मदद के लिए चिल्लाने लगते हैं। बाकी लोग खुद को बचाए रखने के लिए भागते हैं। फिर भी अन्य लोग पीड़ित को बचाने के लिए दौड़ते हैं। कुछ लोग तो हमलावरों का विरोध करने के लिए उनसे भिड़ भी जाते हैं। लिहाजा, हर कोई अपनी तरह से प्रतिक्रिया देता है। इसका कोई प्राकृतिक या तय तरीका नहीं है। ऐसे में साक्षी पर यह शक करना कि उसने किसी विशेष तरीके से प्रतिक्रिया क्यों नहीं दी, यह उसकी वास्तविकता पर आक्षेप लगाना है। अभियोजन के वकील ने तर्क दिया कि चश्मदीद गवाहों के साक्ष्य को केवल इसलिए दोषपूर्ण नहीं कहा जा सकता क्योंकि वह मौके से भाग गए थे। तीनों चश्मदीद गवाह सर्वोत्कृष्ट हैं। इन पर अभियोजन को पूरा भरोसा है।
रविंद्र, विकास और आजाद न घायल हुए और न उनके कपड़ों पर खून था : बचाव पक्ष ने अदालत के सामने तर्क दिया कि अभियोजन ने तीन लोगों को चश्मदीद गवाह बताया है। उन्हें इस गोलीबारी में कोई चोट नहीं लगी। इन तीनों के कपड़ों पर भी खून का एक धब्बा तक नहीं मिला है। इससे साबित होता है कि यह तीनों लोग मौके पर मौजूद नहीं थे। खुद को गलत तरीके से चश्मदीद गवाह बता रहे हैं। इस पर अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि यह जरूरी नहीं है कि मौके पर मौजूद सभी लोग गोली का शिकार हो जाएं। यह भी जरूरी नहीं है कि उनके कपड़ों पर घायलों का खून लग जाए। पूर्व में भी सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट तक से इस मुद्दे पर जजमेंट आ चुके हैं। जिनमें कहा गया है कि जरूरी नहीं कि चश्मदीद गवाह घायल हो तभी उसका बयान सत्य माना जाए।
सुंदर भाटी के वकीलों की अदालत में अभियोजन के सामने एक नहीं चली
कुल मिलाकर हरेंद्र नागर हत्याकांड की सुनवाई के दौरान सुंदर भाटी के वकीलों की अदालत में अभियोजन के सामने एक नहीं चली। अंततः सोमवार को जिला एवं सत्र न्यायालय ने सबूत और गवाहों के आधार पर सुंदर भाटी और उसके 11 गुर्गों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। अदालत ने नौ अलग-अलग ट्रायल केसेज में नौ अलग-अलग सजा सुनाई हैं। ये सारी सजा एकसाथ चलेंगी। इन सारे दोषियों पर ₹1,80,000 का जुर्माना भी किया है। जुर्माने की आधी धनराशि हत्याकांड में मारे गए पुलिसकर्मी भूदेव शर्मा के परिवार को देने का आदेश अदालत ने दिया है। कुख्यात गैंगस्टर सुंदर भाटी को हुई यह सजा गौतमबुद्ध नगर में व्याप्त संगठित अपराध पर अब तक की सबसे बड़ी चोट है। खास बात यह है कि गौतमबुद्ध नगर में पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम लागू होने के बाद पिछले एक वर्ष के दौरान इस मामले की सुनवाई ने रफ्तार पकड़ी थी। अगर सुंदर भाटी और उसके सहयोगी अदालत आने में आनाकानी करते थे तो पुलिस और प्रशासन ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मामले की सुनवाई पूरी करवाई। सोमवार को फैसला सुनाने के लिए भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ही सुंदर भाटी और उसके बाद की 11 साथियों को अदालत के सामने हाजिर किया गया था।
अभियोजन ने सुंदर भाटी और उसके साथियों के लिए मांगी थी सजा-ए-मौत
सुंदर भाटी और उसके साथियों को जिला एवं सत्र न्यायालय ने विगत 25 मार्च को इस हत्याकांड के लिए दोषी करार दे दिया था। अब सोमवार को सजा सुनाई गई है। इससे पहले दोनों और के वकीलों ने सजा पर बहस की। अभियोजन पक्ष की ओर से जिला शासकीय अधिवक्ता ब्रह्मजीत भाटी ने सुंदर भाटी और उसके साथियों के लिए सजा-ए-मौत की मांग की। ब्रह्मजीत भाटी ने अदालत से कहा कि इन लोगों ने दो निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतारा है। यह लोग अगर जेल में जीवित रहेंगे तो अपने खिलाफ गवाही देने वाले लोगों और हरेंद्र नागर के परिजनों के लिए खतरा बने रहेंगे। डीजीसी ने इस हत्याकांड को विरल से विरलतम बताया। दूसरी ओर बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि हत्याकांड के बाद से सारे दोषी जेल में बंद हैं। वह पहले से ही सजा काट रहे हैं। सारे दोषी अब से पहले किसी भी मुकदमे में सजायाफ्ता नहीं हुए हैं। लिहाजा, अदालत को दया भाव के साथ दंड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत कम से कम सजा देनी चाहिए।
अदालत ने अपने फैसले में लिखा कि यह सत्य है कि सुंदर भाटी और उसके साथियों ने दो निर्दोष लोगों की हत्या की है, लेकिन यह विरल से विरलतम अपराध नहीं है। लिहाजा, इन सारे लोगों को सजा-ए-मौत नहीं दी जा सकती है। अदालत ने अलग-अलग आरोपों में उम्र कैद, 10 वर्ष, 7 वर्ष और 3 वर्ष की सजा सुनाई है।