नई शिक्षा नीति बदलेगी भारत की दिशा व दशा, पक्ष रख रही हैं डॉ संध्या तरार

Tricity Today | डॉ संध्या तरार



शिक्षा व्यक्तिव के सर्वांगीण विकास का माध्यम है। साढ़े तीन  दशक के बाद देश की शिक्षा नीति में आमूल चूल बदलाव किया गया है, उससे भारत शिक्षा की दृष्टि से अंतरराष्ट्रीय मानचित्र पर अपना स्थान बना सकेगा और पुनः नालंदा व तक्षशिला जैसे ख्यातनाम विश्वविद्यालय की पूरी एक श्रृंखला देश में विकसित हो सकेगी। इतने वर्षों से विशषज्ञों से विचार मंथन करने के बाद वर्तमान में सर्वश्रेष्ठ शिक्षा का ब्लूप्रिंट प्रस्तुत किया गया है। इस ब्लूप्रिंट के अनुसार आगे बढ़ने पर जहाँ एक और छात्रों का सर्वांगीण विकास किया जा सकेगा, वहीं देश में अनुसंधान और नवोन्मेष की गति बढ़ाई जा सकेगी। देश की शिक्षा नीति में पहली बार बाल विकास, टीचिंग पैडागोजी, शिक्षा में रोचकता, राष्ट्रीय आचार विचार और शिक्षा में स्वावयत्ता सभी पर पूरी आनुपातिकता के साथ विचार किया गया है व सहज शिक्षण, समग्र, बहु-तकनीकी शिक्षा के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

नई शिक्षा नीति के निर्माण के लिए परामर्श प्रक्रिया वर्ष 2015 में शुरू की गई थी। अक्टूबर 31, 2015 में नई शिक्षा नीति के कार्यान्वन के लिए स्वर्गीय टीएसआर सुब्रमण्यम की अध्यक्षता में समिति का गठन हुआ। इसके उपरांत जून 24, 2017 में डॉ के कस्तूरीनन्दन की अध्यक्षता में मसौदा शिक्षा नीति के लिए समिति का गठन व विस्तार का आदेश हुआ। मई 31, 2019 को डॉ के कस्तूरीनन्दन की अध्यक्षता में समिति ने अपनी रिपोर्ट मंत्रालय को सौंपी। अगस्त 25, 2019 तक मसौदा राष्ट्रीय शिक्षा नीति पर सुझाव आमंत्रित किये गए औऱ इस प्रकार विभिन्न चरणों से गुजरती हुई विषय विशेषज्ञों से लेकर आम जनमानस के सुझावों को शामिल करके नवंबर 7, 2019 को मानव संसाधन विकास सम्बन्धी संसदीय स्थायी समिति की बैठक हुई। अंत में जुलाई 29, 2020 को केंद्र सरकार ने कैबिनेट से मंजूरी लेकर नई शिक्षा नीति 2020 का निर्धारण किया।

इस नीति में ये कुछ मुख्य बिंदु हैं

  1. मातृभाषा व क्षेत्रीय भाषाओं के समावेश से छात्रों का सर्वांगीण विकास हो सकेगा व रटने की बाध्यता से मुक्ति मिलेगी व रचनात्मकता विकसित होगी। विभिन्न देशों में हुए सर्वे व अनुसंधान से यह बात सामने आई है कि शिक्षा अगर मातृभाषा में हो तो ज्यादा प्रभावशाली होती है। मौलिक विचार भी मातृभाषा में ही आते हैं ना कि विदेशी भाषा में। और यही कारण है कि आज के छात्रों में नवोन्मेष की प्रवर्ति जहाँ कम हुई, वहीं रटकर अधिक नम्बर लाने की सोच को बढ़ावा मिला है। नई शिक्षा नीति इस खामी को दूर करेगी।
  2. भारतीय सभ्यता व सांस्कृतिक विरासत का समावेश पाठ्यक्रम में हो, यह इस शिक्षानीति का महत्वपूर्ण बिंदु है। इससे भारतीय युवा राष्ट्र के प्रति गौरव की भूमिका महसूस करेगा व सबल आत्मविश्वासी, राष्ट्रहित के प्रति सजग युवा ही राष्ट्र निर्माण में एक सशक्त भूमिका निभा सकता है। ऐसा युवा नहीं जो हीन भावना से ग्रस्त, पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण करते हुए सिर्फ अपनी आजीविका के लिए जीवन यापन करता है। अतः इस शिक्षा नीति से सबल युवा का निर्माण होगा जो देशप्रेम की भावना से ओतप्रोत होगा।साथ ही इस शिक्षा नीति में नैतिकता व जीवन मूल्यों पर बल दिया गया जिससे युवाओं में उच्च जीवन मूल्यों एवं नैतिकता का अभिसरण होगा।
  3. शिक्षा व्यय 4.3% से 6% किये जाने से शिक्षा में उच्च गुणवत्ता के लिए संसाधनों का संकट दूर होगा।
  4. स्थानीय हस्तशिल्पी व कलाकारों को प्रश्रय मिलेगा, इससे सामाजिक उद्यमिता को बढ़ावा मिलेगा। सामाजिक उद्यमिता रोजगार का बहुत बड़ा साधन बन सकेगा व भारत का विश्व में उद्यमिता के क्षेत्र में सम्मान भी बढ़ेगा एवं आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कदम बढ़ाएगा।
  5. भारत जैसे देश में स्नातक उपाधि पूरी करने में अगर बीच में छात्र को किसी कारणवश छोड़ना पड़ेगा तो उसको सर्टिफिकेट व डिप्लोमा का प्रावधान होने से छात्र का समय व पैसा दोनों का सदुपयोग हो पायेगा।
  6. 8वीं सदी से आई विदेशी आक्रांताओं ने देश की सभ्यता, संस्कृति व शिक्षा प्रणाली पर जो कुठाराघात किया, उससे हम सब परिचित हैं। जिसके चलते भारतीय इतिहास में विदेशी आक्रांताओं पर आधारित इतिहास ही पढ़ाया जाता रहा है। जबकि हमारे देश का पिछले 5000 वर्षों का अत्यंत उज्ज्वल इतिहास रहा है व संपूर्ण अखंड भारत में अनेक पराक्रमी राजा हुए हैं। उनका इतिहास पुस्तकों में उल्लेख ही कठिनाइ से मिलता है। उदाहरण के लिए चोल राज राजेंद्र जिनका 1014 में राज्यारोहण हुआ था उनका राज्य बंगाल में गंगा तट से लेकर सम्पूर्ण  दक्षिण एशिया में रहा है, उनकी अत्यंत सबल नौसेना थी। उस नौसेना के प्रबल पराक्रम के माध्यम से उन्होंने सम्पूर्ण श्रीलंका व दक्षिण पूर्व एशिया तक राज्य विस्तार किया था।ऐसे सारे हमारे इतिहास के उज्ज्वल प्रसंग हमारी इस शिक्षा नीति के साथ पढ़ाये जाएंगे।
  7. देश में अनेक समानान्तर नियामक प्राधिकरणों (यूजीसी और एआईसीटीई इत्यादि) के स्थान पर एक नियामक प्राधिकरण संस्थान ले लेगा वह होगा 'भारतीय उच्च शिक्षा परिषद'। देशभर में अनेक तरह की प्रवेश परीक्षाये होती हैं, उनके स्थान पर एक ही नेशनल टेस्टिंग एजेंसी द्वारा वर्ष में एक प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया जाएगा।
  8. देश में शिक्षा की बढ़ती लागतों को नियंत्रण करने के लिए इस शिक्षा नीति में अधिकतम शुल्क की सीमा निर्धारण का भी प्रावधान है। इससे सभी श्रेणियों के छात्रों के लिए शिक्षा उचित शुल्क सीमा में सुलभ हो सकेगी।
  9. नेशनल रिसर्च फाउंडेशन नवोन्मेष की चाहत रखने वाले छात्र छात्रओं व शोध विद्यार्थियों को अनुसंधान के लिए उत्तम संसाधन उपलब्ध कराकर उनके सपनों को नई उड़ान देगा।
  10. शिक्षा ज्ञानपरक व उपयोगी हो, रचनात्मकता से परिपूर्ण  हो व जीवन उपयोगी हो, इन सभी बिंदुओं को ध्यान में रखकर इस शिक्षा नीति का निर्धारण किया गया है।
  11. मल्टीपल एंट्री एंड चॉइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम छात्रों की रचनात्मकता व नवोन्मेष प्रवर्त्ति को बढ़ाकर उनका सर्वांगीण विकास करेगा ऐसी आशा है।
  12. आंकड़ो के अनुसार वर्ष 2019 में आर्टिफिशियल इंटलीजेंस व इनफार्मेशन व कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी का मार्केट 71.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो वर्ष 2024 तक लगभग 156.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने के कयास लगाए जा रहें हैं, और आने वाला समय निश्चित रूप से एआई का होने वाला है। ऐसे में आर्टिफिशियल इंटलीजेंस (क्रत्रिम बुद्धिमत्ता) व इनफार्मेशन व कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी के प्राइमरी स्तर से लेकर उच्च स्तर तक समावेश जैसे बहुत महत्वपूर्ण कदम को भारत के विश्वगुरु बनने की दिशा में एक सार्थक कदम माना जायेगा। आने वाले कुछ वर्षों में भारत विश्व की 18% ग्लोबल वर्किंग ऐज वाला एकमात्र देश होने का फायदा उठाकर अपनी अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाई दे पाएगा।

डॉक्टर संध्या तरार ग्रेटर नोएडा के गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर कार्यरत हैं। अध्यापन क्षेत्र आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस है। स्कूल ऑफ़ इनफार्मेशन एंड कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी से जुड़ी हैं। 

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