पुलिस कमिश्नरेट पर कोई ओपिनियन अभी जल्दीबाजी, सुधार की जरूरत है: योगेंद्र नारायण

नोएडा | 4 साल पहले | Testing

Tricity Today | पुलिस कमिश्नरेट पर कोई ओपिनियन अभी जल्दीबाजी, सुधार की जरूरत है: योगेंद्र नारायण



उत्तर प्रदेश के चीफ सेक्रेट्री, भारत सरकार में उद्योग सचिव और राज्यसभा के महासचिव जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके सीनियर ब्यूरोक्रेट योगेंद्र नारायण पुलिस कमिश्नरेट पर अभी कोई भी ओपिनियन बनाने के पक्ष में नहीं हैं। उनका कहना है कि पुलिस कमिश्नरेट को लागू हुए बहुत ही कम समय हुआ है। इसके परिणाम आने अभी बाकी हैं। इतनी जल्दी इसे फेल बता देना या खत्म करने की बात कहना बेमायने है। हालांकि, वह यह मानते हैं कि इस व्यवस्था में कुछ सुधार करने की जरूरत जरूर है।

योगेंद्र नारायण ने इस मुद्दे पर ट्राइसिटी सिटी टुडे से कहा, "अभी पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम को गौतम बुध नगर में लागू किए 6 महीने हुए हैं। इनमें से 3 महीने कोरोना संक्रमण के खिलाफ लड़ाई में चले गए हैं। कोरोना संक्रमण से पहले केवल 3 महीने पुलिस को इस नई व्यवस्था के तहत काम करने का अवसर मिला है। इतने कम समय में अपराध घटा या बढ़ा, यह धारणा नहीं बनाई जा सकती है। आंकड़ों के आधार पर भी इसका विश्लेषण कर पाना संभव नहीं होगा। लिहाजा, इतनी जल्दी पुलिस कमिश्नरेट को खत्म करने या इसे फेल बता देने का कोई मतलब नहीं है। पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम को पूरा वक्त दिए जाने की आवश्यकता है। उसके बाद इसके परिणामों का विश्लेषण और उन पर चर्चा की जानी चाहिए। उसके बाद ही सरकार को यह फैसला लेना होगा कि इस व्यवस्था को आगे बढ़ाया जाए या खत्म कर दिया जाए।"

योगेंद्र नारायण आगे कहते हैं, "मैं एक बात जरुर कहना चाहता हूं। जिसे लेकर बार-बार आम आदमी और सिविलियंस चर्चा करते हैं। दिल्ली में पुलिस कमिश्नर व्यवस्था लागू है। एनसीआर के दूसरे इलाके गुड़गांव में भी यह व्यवस्था काम कर रही है। इसी के चलते लगातार नोएडा और ग्रेटर नोएडा में भी पुलिस कमिश्नरेट लागू करने की मांग की जाती थी। दिल्ली में पुलिस कमिश्नरेट होने के बावजूद हाल ही में दंगे हुए हैं। दूसरी समस्या यह है कि पूरी व्यवस्था पुलिस के हाथों में होने से काउंटर एंड बैलेंस की समस्या उत्पन्न होती है। सिविलियन अथॉरिटी को इस पुलिसिंग सिस्टम में ज्यादा हक हासिल नहीं है। ऐसे में अगर कोई पुलिस की ज्यादती या उपेक्षा का शिकार होता है तो वह अपनी शिकायत लेकर कहां जाए।"

योगेंद्र नारायण आदि कहते हैं, "जब जिले में जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक साथ-साथ काम करते थे तो पुलिस के खिलाफ आम आदमी जिलाधिकारी से शिकायत कर सकता था। एक स्वतंत्र और समांतर मजिस्ट्रियल इंक्वायरी का विकल्प लोगों के पास उपलब्ध होता था। लिहाजा, मैं यह कहना चाहूंगा कि पुलिस कमिश्नरेट सिस्टम अच्छा है, लेकिन इसमें सिविलियन अथॉरिटी को कुछ और बेहतर भूमिका देने की जरूरत है। यानी, कमिश्नरेट सिस्टम में सुधार करके इसे लागू किया जाना चाहिए। जिससे कि इसका सिविलियन अथॉरिटी की गैरमौजूदगी वाला पक्ष समाप्त हो सके।"

योगेंद्र नारायण आगे जोर देते हुए कहते हैं कि गौतम बुध नगर में बेहतर कानून-व्यवस्था की निसंदेह आवश्यकता है। इसके लिए पुलिस कमिश्नरेट रूल लागू करना कोई गलत बात नहीं है। पुलिस कमिश्नरेट को लागू हुए बहुत कम समय हुआ है। इसे अभी लागू रहना चाहिए। कम से कम 1 या 2 साल बाद इसके परिणामों का आकलन किया जाना चाहिए। उसके बाद सरकार फैसला ले सकती है कि इस व्यवस्था से बेहतर स्थिति सामने आई है या नहीं। इसे आगे लागू रखा जा सकता है या नहीं। इस वक्त महज 3 महीने के कार्यकाल पर पुलिस कमिश्नरेट के गुण और दोष पर विचार करना, इस फेल बता देना या खत्म कर देने की मांग करना न्यायोचित नहीं होगा।"

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