नोएडा में डकैती : जब 'सरकार' जेब में तो डर किसका, गुलशन होम्स कंपनी ने कैसे खड़ा किया रियल एस्टेट एंपायर

नोएडा | 3 घंटा पहले | Pankaj Parashar

Tricity Today | मोहिंदर सिंह



Noida News : हम नोएडा प्राधिकरण की समूह आवास योजनाओं के आवंटन पर महालेखा परीक्षक (सीएजी) की ऑडिट रिपोर्ट के हालिया निष्कर्षों पर एक समाचार श्रृंखला प्रकाशित कर रहे हैं। अभी तक हमने आपको बताया कि कैसे तत्कालीन मुख्य कार्यपालक अधिकारी मोहिंदर सिंह ने कानून को ताक पर रखकर मनमानी की। अब हम आपको बताएंगे कि 'मोहिंदर सिंह की डकैती' में शामिल बिल्डरों ने कैसे अकूत संपत्ति इकठ्ठा की। इन घटनाक्रमों के मद्देनजर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने एक जांच शुरू की है, मोहिंदर सिंह से ₹100 करोड़ की संपत्ति जब्त की है। हमारी जांच-पड़ताल में गुलशन होम्ज़ बिल्डर की अवैध गतिविधियां सामने आई हैं। एक मामूली सी कंपनी ने अरबों रुपये का हेरफेर किया है।

गुलशन होम्स कंपनी ने नेटवर्थ से 24 गुना ज्यादा कीमत की जमीन हासिल की
गुलशन होम्ज़ प्राइवेट लिमिटेड को तीन प्लॉट का आवंटन वर्ष 2009-10 के दौरान किया गया। कंपनी उन भूखंडों पर रियल एस्टेट गतिविधियां संचालित कर रही है। इन भूखंडों का आवंटन ₹357.40 करोड़ के प्रीमियम किया गया था। बड़ी बात यह है कि उस समय गुलशन होम्ज़ प्राइवेट लिमिटेड की कुल नेटवर्थ ₹15.47 करोड़ थी। इन आवंटनों के लिए कंपनी की आवश्यक नेटवर्थ कम से कम ₹225 करोड़ होनी चाहिए थी। मल्टीपल एलॉटमेंट हासिल करने के लिए कंपनी ने ₹32.60 करोड़ नेटवर्थ उपयोग की थी। जिससे साफ होता है कि गुलशन होम्ज़ प्राइवेट लिमिटेड ने इन भूखंडों को हासिल करने के लिए अपनी नेटवर्थ के मुकाबले 24 गुना अधिक लाभ उठाया।  इन तीन भूखंडों को बाद में 6 हिस्सों में विभाजित करवाया गया था।

प्लॉट लेने के लिए कंसोर्टियम बनाए, बड़ी कंपनियों को छोटे से हिस्से मिले
बिल्डरों ने किस तरह अंधेरगर्दी की, उसका एक उदाहरण गुलशन होम्स प्राइवेट लिमिटेड से जुड़ा मामला है। नोएडा के सेक्टर-77 में भूखंड संख्या जीएच-02 का आवंटन हासिल करने के लिए गुलशन होम्ज़ प्राइवेट लिमिटेड ने एक संघ (कंसोर्टियम) का गठन किया था। जिसके लिए बनाई गई स्पेशल पर्पज कंपनी में एक्सप्रेस बिल्डर्स एंड प्रमोटर्स प्राइवेट लिमिटेड, एचआर ओरेकल डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड और सिविटेक डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड शामिल हुए। साथ में अग्रवाल एसोसिएट्स (प्रमोटर्स) लिमिटेड और सनग्लो बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड शामिल हुए। नोएडा अथॉरिटी ने 31 मार्च 2010 को इस कंसोर्टियम को प्लॉट का आवंटन का दिया। पूरे कंसोर्टियम की नेटवर्थ 88.81 करोड़ रुपये थी। आवंटन के बाद एक वर्ष के भीतर अधिकांश हितधारक कंसोर्टियम से बाहर निकल गए।

सारी बड़ी कंपनियां जमीन छोड़कर फटाफट कंसोर्टियम से बाहर निकल गईं
इस कंसोर्टियम में सबसे बड़ी 47.83 करोड़ रुपये (53.86%) नेटवर्थ अग्रवाल एसोसिएट्स (प्रमोटर्स) लिमिटेड की थी और हिस्सेदारी केवल 10% थी। अग्रवाल एसोसिएट्स (प्रमोटर्स) लिमिटेड 19 सितंबर 2011 को कंसोर्टियम से निकल गई थी। कंसोर्टियम की दूसरी बड़ी कंपनी गुलशन होम्ज़ प्राइवेट लिमिटेड थी। जिसकी नेटवर्थ 15.47 करोड़ रुपये (17.42%) थी और कंसोर्टियम में हिस्सेदारी 10% थी। गुलशन होम्ज़ प्राइवेट लिमिटेड 28 जुलाई 2011 को कंसोर्टियम से बाहर चली गई। तीसरी हिस्सेदार कंपनी सनग्लो बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड की नेटवर्थ 14.25 करोड़ रुपये (16.05%) थी और हिस्सेदारी केवल 10% थी। यह कंपनी 30 सितंबर 2011 को कंसोर्टियम से बाहर हो गई थी। इस तरह 87.27% नेटवर्थ की हिस्सेदारी वाली कंपनियां कंसोर्टियम से बाहर चली गई थीं।

कंसोर्टियम की नेटवर्थ ₹88.81 करोड़, बाहर जाने वाली कंपनियों की नेटवर्थ ₹77.22 करोड़
88.81 करोड़ रुपये नेटवर्थ वाले कंसोर्टियम से बाहर जाने वाली तीनों कंपनियों की नेटवर्थ 77.22 करोड़ रुपये थी। इस तरह अरबों रुपये की कीमत वाला यह प्लॉट 11.59 करोड़ रुपये नेटवर्थ वाली तीन छोटी-छोटी कंपनियों एक्सप्रेस बिल्डर्स एंड प्रमोटर्स प्राइवेट लिमिटेड, एचआर ओरेकल डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड और सिविटेक डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड के पास रह गया। कुल मिलाकर यह कंसोर्टियम जमीन की लूट करने के लिए बनाया गया था। गुलशन होम्ज़ प्राइवेट लिमिटेड, अग्रवाल एसोसिएट्स (प्रमोटर्स) लिमिटेड और सनग्लो बिल्डर्स प्राइवेट लिमिटेड मुख्य रूप से अपने क्रेडेंशियल उधार देकर आवंटन को सुविधाजनक बनाने के लिए संघ में शामिल हुए थे। काम पूरा होने के बाद विशेष प्रयोजन कंपनी (एसपीसी) से बाहर निकल गए।

गुलशन होम्ज़ प्राइवेट लिमिटेड ने सवालों का जवाब नहीं दिया
  1. इन निष्कर्षों और चल रही जांच की गंभीरता को देखते हुए हमने गुलशन होम्ज़ प्राइवेट लिमिटेड को अपना पक्ष रखने करने का अवसर दिया। कंपनी के कम्युनिकेशन को तीन बार ई-मेल भेजा गया। हमने उनसे निम्नलिखित सवाल पूछे थे, जिनका कंपनी की ओर से जवाब नहीं दिया गया है।
  2. कंसोर्टियम से बाहर कैसे निकले: क्या आप विस्तार से बता सकते हैं कि संघ से बाहर निकलने की संरचना कैसे बनाई गई? एसपीसी के भीतर शेयरधारिता व्यवस्था क्या थी, और शेष या नए हितधारकों को शेयर कैसे हस्तांतरित किए गए?
  3. संघ के गठन के पीछे की मंशा: बहुसंख्यक हितधारकों का तेजी से बाहर निकलना आवंटन की मूल शर्तों के संभावित उल्लंघन का संकेत देता है। क्या झूठे बहाने से प्लॉट को सुरक्षित करने के इरादे से संघ का गठन किया गया था? नोएडा के दिशा-निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए गए?
  4. पारदर्शिता और विनियामक: यदि शेयर हस्तांतरण का उचित रूप से खुलासा नहीं किया गया, तो इससे पारदर्शिता और विनियामक अनुपालन के बारे में चिंताएं पैदा होती हैं। क्या आप पुष्टि कर सकते हैं कि नोएडा और अन्य विनियामक निकायों को सभी प्रासंगिक खुलासे किए गए थे?
अब आगे पढ़िए
गुलशन होम्स प्राइवेट लिमिटेड का निदेशक मंडल यहीं नहीं रुका। इस कंपनी के निदेशक मंडल ने जमीन हासिल करने के लिए येन केन प्रकारेण मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स के नियमों और कंपनी कानूनों का खुलेआम उल्लंघन किया है। यह कंपनी थ्री-सी बिल्डर की धोखाधड़ी में शामिल है। जिस मामले में प्रवर्तन निदेशालय जांच कर रहा है। हम इस समाचार श्रृंखला के अगले अंक में यह जानकारी आपके सामने रखेंगे। हमने मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स, उत्तर प्रदेश सरकार के औद्योगिक विकास विभाग और नोएडा अथॉरिटी से जानकारियां मांगी हैं। आखिरकार इस आर्थिक धोखाधड़ी पर अब तक सरकार और विभागों ने संज्ञान क्यों नहीं लिया?

अन्य खबरें