आरएलडी-भाजपा की बात टूटी : अब बसपा और भाजपा मिलकर लड़ेंगे चुनाव, वेस्ट यूपी बना है सिरदर्द

नोएडा | 1 साल पहले | Deepak Sharma

Tricity Today | मायावती, जेपी नड्डा और जयंत चौधरी



Noida Desk : चुनावी चौसर बिछ चुकी है। सत्ताधारी दल बीजेपी शह मात के खेल में किसी भी हालत में बाजी किसी दूसरे के हाथों में देने के मूड़ में नजर नहीं आ रही है। सबसे ज्यादा 80 सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश को लेकर उसकी खास योजना है। हाल ही में लोकसभा चुनावों के मद्देनजर बीजेपी ने अपने शीर्ष नेतृत्व में बड़ा परिवर्तन किया है। अपनी घोषित राष्ट्रीय कार्यकारिणी में यूपी को विशेष जगह दी गई। लोकसभा चुनावों के मद्देनजर बीजेपी एनडीए का कुनबा बढ़ाने की ओर अग्रसर है। इसी क्रम में यूपी से एक बड़ी खबर आ रही है। बताया जा रहा है बीजेपी वेस्ट यूपी के अपने पुराने साथी दल रालोद को भी एनडीए में लाने का पुरजोर प्रयास कर रही थी, लेकिन उसके इस प्रयास को तगड़ा झटका लगा है। दरअसल, रालोद और बीजेपी की वार्ता विफल हो चुकी है। इसके बाद बीजेपी के लिए वेस्ट यूपी एक बार फिर सिरदर्द बनकर उभर रहा है। 

बीजेपी ने डाले डोरे, जयंत का इंकार
राष्ट्रीय लोकदल से वार्ता विफल होने के बाद बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व पश्चिमी यूपी को लेकर नए सिरे से प्लानिंग में जुट गया है। दरअसल, रालोद के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी ने बीजेपी के साथ आने से साफ इनकार कर दिया है। रालोद सूत्रों का कहना है कि 14 जून को पटना में हुई विपक्षी दलों की बैठक में जयंत के नहीं पहुंचने के कारण बीजेपी की तरफ से यह प्रचारित किया गया था कि रालोद एनडीए का हिस्सा बनने जा रहा है। जबकि कर्नाटक में हुई बैठक में जयंत ने पहुंचकर एक तरह से साफ कर दिया था कि वे INDIA का ही हिस्सा रहेंगे। वहीं, बीजेपी सूत्रों ने बताया कि रालोद से दो तीन दौर की बातचीत हुई थी। जबकि रालोद ने इससे साफ इनकार कर दिया है।

क्यों नहीं गए जयंत
जून के महीने में पटना में हुई विपक्षी दलों की बैठक से रालोद नेता जयंत की दूरी बनाने से चर्चा का बाजार गर्म हो गया था। उनके विरोधियों द्वारा यह फैला दिया गया कि जयंत भी अपने पिता चौधरी अजीत सिंह के नक्शेकदम पर चल निकले हैं। सत्ता के बिना नहीं रह सकते। लेकिन, जयंत ने इसे झुठलाते हुए चर्चा पर विराम लगा दिया और अपना निर्णय सुना दिया कि वे जहां हैं, वहीं रहेंगे और INDIA का ही हिस्सा रहेंगे। दूसरा, जयंत जानते हैं कि इस वक्त सत्ता के साथ जाने से एंटीइकंबेंसी का भी सामना करना पड़ेगा। 

बीजेपी के लिए RLD से बेहतर विकल्प BSP
राजनीति के जानकारों के मुताबिक, रालोद से बेहतर बीजेपी के लिए बीएसपी का विकल्प है। क्योंकि अगर हम पिछले लोकसभा चुनावों की बात करें तो वेस्ट यूपी में भी रालोद अपना खाता तक नहीं खोल सकी थी। दूसरा, रालोद का जनाधार वेस्ट यूपी के 18 जिलों मतलब जाटलैंड से बाहर नहीं है। जबकि दूसरी ओर मायावती की पार्टी बीएसपी का प्रदर्शन वेस्ट यूपी में अच्छा खासा रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में वेस्ट यूपी से बसपा के खाते में चार सीटें आईं थीं। वेस्ट यूपी को मिलाकर शेष राज्य से बसपा को कुल 10 सीटें मिलीं थीं। जबकि जाटलैंड में बीजेपी को भी पांच सीटें मिली थीं। इस लिहाज से देखा जाए तो बीजेपी के लिए माया का साथ ही बेहतर है। किन्तु, यहां यह भी बताना जरूरी है कि लोकसभा चुनाव 2019 में बीएसपी सपा और रालोद के बीच गठबंधन था।

BSP को जीती हुईं सीटें पश्चिम में देने को तैयार BJP
रालोद से वार्ता विफल होने के बाद बीजेपी का शीर्ष नेतृव बसपा सुप्रीमो मायावती को अपने पाले में लाने में जुट गया है। सूत्रों का कहना है कि एनडीए में शामिल होने पर बीजेपी वेस्ट यूपी में बीएसपी द्वारा जीतीं गईं सीटें उसके लिए छोड़ने का फैसला कर सकती है। बता दें कि बीएसपी ने लोकसभा चुनावों में वेस्ट यूपी की अमरोह, बिजनौर, नगीना और सहारनपुर की सीटों पर विजय पताका फहराया था। 

अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा
यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने बीते दिनों प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया था। मायावती ने कहा, "NDA और I.N.D.I.A दोनों के साथ हम नहीं हैं। राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी। मायावती ने कांग्रेस और भाजपा दोनों पर निशाना साधा और कहा कि गठबंधन की राजनीति कांग्रेस करती है। उनका जातिवादी दलों के साथ गठबंधन है। वहीं, BJP की बातें-दावे खोखले हैं।

एनडीए के साथ जाना माया की मजबूरी या कुछ और...!
अब तक मायावती एकला चलो की रणनीति पर ही काम कर रही हैं। बीते दिनों मायावती ने ऐलान कर दिया था कि वह किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं होंगी। उनका एनडीए और 'इंडिया' से कोई नाता नहीं है। लेकिन, दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि बीजेपी हर हाल में बसपा सुप्रीमो को अपने खेमे में लाने के लिए जोर आजमाइश कर रही है। बीजेपी को पता है कि लोकसभा चुनाव में उसके लिए बसपा का साथ बेहद जरूरी है। सूत्र बताते हैं कि इन सियासी घटनाक्रमों पर मायावती की गंभीर निगाहें जमी हुई हैं। उन्हें सिर्फ माकूल वक्त का इंतजार है। कहा तो यह भी जा रहा है कि आने वाले दिनों में मायावती का फैसला चौंकाने वाला हो सकता है।

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