जरा याद करो कुर्बानी : Kargil शहीद Captain Vijayant Thapar की कहानी, आखिरी खत में लिखा -'अगले जनम मोहे फौजी ही कीजो'

नोएडा | 1 महीना पहले | Jyoti Karki

Tricity Today | कैप्टन विजयंत थापर के पिता



Noida News : 15 अगस्त यानि कि आज हमारा देश 78 स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। ऐसे में हमारे देश के लिए कई वीर सपूतों ने अपने प्राण न्योछावर किए हैं। उन्हीं में शामिल हैं नोएडा के विजयंत थापर। जिनकी बहादुरी के किस्से अब भी नोएडा के गलियारों में गूजते है। 'अ बॉर्न सोल्जर' कहे जाने वाले नोएडा के कैप्टन विजयंत थापर ने 22 साल की उम्र में ही देश की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। 26 दिसंबर, 1976 को जन्मे विजयंत थापर के परिजन पीढ़ी दर पीढ़ी भारतीय सेना में रहे हैं। उनके पिता कर्नल वीएन थापर, दादा जेएस थापर और परदादा डॉ. कैप्टन राम थापर भारतीय सेना में रहकर देश सेवा कर चुके हैं।

22 साल की उम्र में लड़ी लड़ाई 
कैप्टन विजयंत थापर को जॉइनिंग करने के कुछ ही महीने बाद करगिल युद्ध में हिस्सा लेने का मौका मिला। उन्होंने ये मौका नहीं गंवाया और पाकिस्तान से युद्ध की तैयारी शुरू कर दी। मेजर पदमपाणि आचार्य, कै नेइकेझाकुओ केंगरूस और लेफ्टिनेंट विजयंत थापर के नेतृत्व में उनकी यूनिट ने 16 हजार फुट ऊंचाई तोलोलिंग (करगिल) की चोटी पर 28 जून 199 को हमला बोला। यहां भारतीय सेना के जवानों ने तिरंगा फहराया।

कई साथियों समेत शहीद हो गए थे विजयंत
हालांकि, पाकिस्तान सेना से लोहा लेते हुए 28 जून 1999 को भारतीय सेना के तीन सैन्य अधिकारी समेत कई जवानों ने अपने प्राण न्योछावर किए। शहीद हुए अधिकारियों में वियजंत थापर भी शामिल थे। उनकी शहादत के बाद 26 जुलाई, 1999 को पाकिस्तान सेना को करगिल से भारतीय सेना ने खदेड़कर जीत हासिल की थी। कम उम्र में उनके अदम्य साहस और बहादूरी को देश के लोग आज भी नमन करते हैं। यही वजह है कि नोएडा अथॉरिटी की तरफ से नोएडा में उनके नाम से वियजंत थापर मार्ग भी बनाया गया है।

आखिरी खत में लिखा -'अगले जनम मोहे फौजी ही कीजो'
प्रिय पापा, मामा, बर्डी और ग्रेनी,
1. जिस समय आपको यह पत्त्र मिलेगा, उस समय तक मैं स्वर्ग में अप्सराओं के बीच से आप सब को देख रहा होऊंगा। 
2. मुझे ज़िंदगी में कोई खेद नहीं है, अगर फिर से इनसान के रूप में मेरा जन्म हुआ, तो मैं फौज में भर्ती होकर अपने देश की सेवा करूंगा। 
3. अगर आप लोग आ सकते हैं, तो कृपया आकर उस जगह को ज़रूर देखिए, जहां भारतीय सेना ने आपके आने वाले कल के लिए लड़ाई लड़ी थी। 
4. जहां तक हमारी यूनिट का सवाल है, तो नए जवानों को इस बलिदान के बारे में ज़रूर बताया जाना चाहिए। मुझे आशा है कि मेरी तस्वीर ‘ए’ कॉय मंदिर में करणी माता के साथ रखी जाएगी। 
5. हमारे शरीर से अंगदान के तौर पर जो भी अंग लिया जा सकता है, उसे ज़रूर लिया जाए। 
6. कृपया कुछ पैसे अनाथ आश्रम को दे देजिएगा और हर महीना पचास रुपया रुखसाना को देते रहिएगा और योगी बाबा से भी ज़रूर मिलिएगा। 
7. बर्डी को मेरी शुभकामनाएं, कृपया इन लोगों के बलिदान को कभी मत भूलिएगा. पापा, आपको गर्व होना चाहिए और मम्मा आपको भी. कृपया…से (निजता की वजह से नाम हटा दिया गया है) मिलते रहिएगा (मैं उससे प्यार करता हूं) मामाजी मेरी भूल-चूक को माफ कर देना। 
ठीक है फिर, अब मेरा डर्टी डजन की टुकड़ी के साथ जाने का वक्त हो गया है. मेरे हमलावर दस्ते में बारह जवान हैं। आप सभी को मेरी शुभकामनाएं। लिव लाइफ, किंग साइज़ आपका रॉबिन

कौन थी रुकसाना
कैप्टन विजयंत थापर ने अपनी आखिरी चिट्ठी में रुकसाना की जिक्र किया है. रुकसाना 6 साल की बच्ची थी और जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में रहती थी। रुकसाना के पिता की आतंकवादियों ने उसी के सामने हत्या कर दी थी। इस हादसे से रुकसाना की बोलने की क्षमता चली गई थी। जिस समय रुकसाना के पिता की हत्या हुई थी कैप्टन विजयंत थापर उसी जिले में तैनात थे। जब उन्होंने रुकसाना के साथ हुए हादसे के बारे में सुना तो वे उससे मिलने उसके स्कूल जाने लगे। विजयंत रुकसाना के लिए मिठाई और चॉकलेट ले जाते और उससे बातें करने की कोशिश करते थे। वे उसे समय-समय पर डॉक्टर के पास भी ले जाते थे। दोनों के बीच पनपे इस आत्मीय रिश्ते के चलते रुकसाना धीरे-धीरे उस सदमे से उबरने लगी थी और थोड़ा-थोड़ा बोलने भी लगी थी। दुर्भाग्य से उसी साल जून में कारगिल युद्ध में कैप्टन विजयंत शहीद हो गए। लेकिन शहादत से पहले उन्होंने अपने माता-पिता को जो पत्र लिखा था उसमें उन्होंने रुकसाना की देखभाल करने की बात कही थी। अब भी विजयंत के पिता रुखसाना से मिलने जाते है।

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