Delhi NCR : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को युनिटेक मामले में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने युनिटेक लिमिटेड के केंद्र-नियुक्त निदेशक मंडल को कंपनी की संपत्तियों पर तृतीय पक्षों द्वारा खड़ी की जा रही बाधाओं से निपटने के लिए पुलिस सहायता लेने की अनुमति प्रदान की है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने सरकार-नियुक्त बोर्ड की अंतरिम याचिका पर आदेश दिया। यह फैसला घर खरीदारों के हितों की रक्षा और परियोजनाओं के समयबद्ध पूरा होने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
क्या है पूरा मामला
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 20 जनवरी 2020 को युनिटेक लिमिटेड के 12 हजार से अधिक परेशान घर खरीदारों की मदद के लिए केंद्रीय कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय को रियल एस्टेट फर्म का संपूर्ण प्रबंधन नियंत्रण लेने की अनुमति दी थी। इस दौरान हरियाणा कैडर के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी युद्धवीर सिंह मलिक को चेयरमैन और प्रबंध निदेशक (CMD) नियुक्त किया गया था।
बोर्ड की सहायता करने का निर्देश
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि किसी भी तृतीय पक्ष द्वारा बाधा उत्पन्न करने की स्थिति में बोर्ड पुलिस सहायता मांग सकता है। साथ ही, बोर्ड को अन्य शिकायतों के निवारण के लिए सरकारी अधिकारियों से संपर्क करने की भी अनुमति दी गई है। पीठ ने अधिकारियों को बोर्ड की सहायता करने का भी निर्देश दिया है।
कानूनी कार्यवाही में छूट
इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि पेशेवर बोर्ड का विचार उन्हें कंपनी का नियंत्रण लेने और घर खरीदारों के हित में लंबित परियोजनाओं को पूरा करने की अनुमति देना है। न्यायालय ने नए बोर्ड को कुछ समय के लिए किसी भी कानूनी कार्यवाही से छूट भी प्रदान की थी। बोर्ड को घर खरीदारों से बकाया राशि जुटाने और बिना बिके स्टॉक और अदावी इन्वेंट्री को बेचने की अनुमति दी गई है। साथ ही आवासीय इकाइयों के पूरा होने के लिए कंपनी की अप्रतिबंधित संपत्तियों को मौद्रिक बनाने की भी अनुमति दी गई है।
घर खरीदारों से जुटाए 14,270 करोड़
फोरेंसिक ऑडिट में खुलासा हुआ कि युनिटेक लिमिटेड ने 74 परियोजनाओं के निर्माण के लिए मुख्य रूप से 2006 से 2014 के बीच 29,800 घर खरीदारों से लगभग 14,270 करोड़ रुपये और छह वित्तीय संस्थानों से लगभग 1,805 करोड़ रुपये प्राप्त किए। ऑडिट से यह भी पता चला कि घर खरीदारों के लगभग 5,063 करोड़ रुपये और वित्तीय संस्थानों से प्राप्त लगभग 763 करोड़ रुपये का उपयोग कंपनी द्वारा नहीं किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने युनिटेक लिमिटेड के प्रमोटरों के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत जांच का भी आदेश दिया है।