सुपरटेक बिल्डर का क्या होगा? क्या कंपनी डूब जाएगी, 27 हजार फ्लैट खरीदारों का क्या होगा? पढ़िए पूरी जानकारी

नोएडा | 1 साल पहले | Pankaj Parashar

Tricity Today | RK Arora



Noida News : सुपरटेक ग्रुप पर दिवालिया होने का खतरा मंडरा रहा है। अगर ऐसा हुआ तो 27 हजार फ्लैट बायर्स को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। इससे पहले शहर के कई बड़े बिल्डरों आम्रपाली, जेपी इंफ्राटेक और यूनिटेक के दिवालिया होने से परेशानी बढ़ी हैं। हालांकि, आम्रपाली के प्रॉजेक्ट सीधे सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में पूरे किए जा रहे हैं। लिहाजा, आम्रपाली के बायर्स को राहत मिल रही है। जेपी इंफ्राटेक के फाल्ट खरीदारों को ज्यादा कष्ट उठाना पड़ा है। इसमें छह साल का समय सिर्फ यह तय करने लग गया कि इस कंपनी के अधूरे प्रॉजेक्ट कौन पूरा करेगा? आपत्तियों और सुनवाई का सिलसिला अभी जारी है। एक समय देश की नंबर दो रियल एस्टेट कंपनी यूनिटेक की बात करें तो चार साल पहले कोर्ट ने कंपनी का बोर्ड भंग कर दिया था। नए बोर्ड को जिम्मेदारी दी। चार साल की प्रोग्रेस जीरो है। अभी तक संशोधित नक्शा पास नहीं हो पाया है।

अब सुपरटेक बिल्डर का क्या होगा?
अब एक और बड़ी रियल एस्टेट कंपनी सुपरटेक डूबने के कगार पर पहुंच गयी है। सवाल है कि वेंटिलेटर पर पहुंचे सुपरटेक ग्रुप के बायर्स को घर कैसे मिलेंगे? गौतमबुद्ध नगर में प्रॉपर्टी मामलों के जानकार एडवोकेट मुकेश शर्मा का कहना है, "यदि कंपनी दिवालिया हुई तो हालात बद से बदतर हो जाएंगे। पिछले सप्ताह सुपरटेक के चेयरमैन आरके अरोड़ा को मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में ईडी ने गिरफ्तार किया है। अब सवाल उठ रहे हैं कि इसमें फंसे 27 हजार बायर्स का भविष्य क्या होगा? क्या यह कंपनी अन्य कंपनियों की तरह दिवालिया हो सकती है। सुपरटेक की हालत बिल्कुल वैसी होती जा रही है, जैसी चार साल पहले यूनिटेक की हुई थी।" रियल एस्टेट मामलों के जानकार और थ्री-सी ग्रुप की कंपनी में आईआरपी रह चुके मनीष अग्रवाल का कहना है, "यदि एक-दो झटके और लगे तो दिवालिया होने से सुपरटेक समूह को बचा पाना मुश्किल होगा। ऐसे में बायर्स के लिए ही संघर्ष बढ़ेगा। उसके बाद फंड का नए सिरे से इंतजाम करना और प्रोजेक्ट्स को पूरा करने की जिम्मेदारी किसकी होगी? यह तय होने में लंबा वक्त निकल जाएगा।"

यूनिटेक में 15 हजार बायर्स फंसे
चार साल पहले वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने यूनिटेक का बोर्ड भंग कर दिया था। तब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नए बोर्ड का गठन हुआ था। इस कंपनी की परियोजनाओं में नोएडा और ग्रेटर नोएडा में करीब 15 हजार बायर्स फंसे हैं। एनसीआर के गुड़गांव और फरीदाबाद के आवला देश के कर दूसरे शहरों में यूनिटेक के प्रोजेक्ट हैं। उनमें प्रॉपर्टी खरीदने वाले लोग फंसे हुए हैं। चार साल से गठित नए बोर्ड की प्रोग्रेस दिखाई नहीं दे रही है। फंसा हुआ एक भी फ्लैट पिछले चार साल में पूरा नहीं हो पाया है। कागजी प्रक्रिया में थोड़े बहुत काम हुए हैं। संशोधित नक्शा तैयार किया गया है, लेकिन नक्शा अभी अथॉरिटी से पास नहीं हुआ है। फंड का इंतजाम और अतिरिक्त एफएआर मांगा जा रहा है। यह दोनों काम जब तक पूरे नहीं होंगे, तब तक इसकी प्रोग्रेस आगे नहीं बढ़ पाएगी।

जेपी समूह के खिलाफ 2016 से चल रही लड़ाई
नोएडा की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी जेपी इंफ्राटेक के बायर्स ने 2016 में लड़ाई शुरू की थी। आम्रपाली के बाद जेपी इंफ्राटेक का मामला एनसीएलटी (नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्युनल) और सुप्रीम कोर्ट चला गया। कई साल से यह मामला चल रहा है। करीब 6 साल बाद कुछ समय पहले यह तय हो पाया है कि सुरक्षा समूह, जेपी इंफ्राटेक के अधूरे प्रोजेक्ट्स को पूरा करेगी। हालांकि, सुरक्षा के लिए अभी रास्ता साफ नहीं है। जेपी असोसिएट्स और यमुना अथॉरिटी ने अपनी-अपनी मांगों के मद्देनजर आपत्तियां लगा रखी हैं। जिसके चलते जेपी इंफ्राटेक, सुरक्षा को हैंडओवर होने और काम शुरू होने में वक्त लगेगा।

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