Google Image | मां शैलपुत्री
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम् ।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
Navratri 2020 : प्रतिपदा को कलश स्थापना के बाद देवी पूजन होता है और जौ बोए जाते हैं। नवरात्र के पहले दिन भगवती के शैलपुत्री रूप की पूजा की जाती है। शैलपुत्री, हिमालय राज की पुत्री पार्वती हैं जिनका विवाह महादेव से हुआ।
इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। उनकी एक मार्मिक कहानी है।
एक बार जब दक्ष प्रजापति ने यज्ञ किया और इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। यज्ञ की जानकारी होने पर सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है क्योंकि बिना बुलाए जा कर अपमान का भय रहता है
सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को बहुत क्रोध हुआ।
वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान के क्रोध से भैरव पैदा हुए और हरिद्वार के कनखल में आयोजित यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं।
पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। कठिन तपस्या के पश्चात शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है। उत्तराखंड में इनको नंदा देवी के नाम से जाना जाता है और मां नंदा उत्तराखंड के निवासियों की अधिष्ठात्री देवी भी है और वहां के सांस्कृतिक और समाजिक जीवन की पहचान हैं।
नवरात्र में दुर्गासप्तशती का पारायण करें और मां दुर्गा आपकी सभी मनोकामना को पूर्ण करेंगी। माता शैलपुत्री को सफेद चीजें बहुत पसंद हैं और अपनी रोग मुक्ति के लिए माता की आराधना करें।
पंडित पुरूषोतम सती ( Astro Badri)
ग्रेटर नोएडा वेस्ट
8860321113