वेस्ट यूपी में लोकसभा चुनाव : रालोद और बीजेपी का गठबंधन कितना मददगार रहा? पढ़िए खास जानकारी

Google Photo | नरेंद्र मोदी और जयंत चौधरी



Noida Desk : केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देकर उनके पोते जयंत चौधरी को अपने पाले में खींचा था। भाजपा ने रालोद से लोकसभा चुनाव से पहले गठबंधन किया और उसे बिजनौर और बागपत की दो सीटें दीं। रालोद ने दोनों सीटें जीतीं लेकिन इससे भाजपा को भी फायदा हुआ। अगर दोनों के बीच गठबंधन नहीं होता तो भाजपा को वेस्ट यूपी में और अधिक सीटें गंवानी पड़तीं।

जीत का अंतर 
विश्लेषण से पता चलता है कि भाजपा को वेस्ट यूपी में अमरोहा, मेरठ, अलीगढ़ और फतेहपुर सीकरी जैसी महत्वपूर्ण सीटों पर कांटे की टक्कर मिली। इन सीटों पर जाट मतदाताओं की अहम भूमिका रही। अमरोहा में 12.5%, मेरठ में 15%, अलीगढ़ में 14% और फतेहपुर सीकरी में 5% जाट मतदाता हैं। यदि जाट मतदाता भाजपा प्रत्याशियों का साथ नहीं देते तो भाजपा इन सीटों पर हार जाती। वहीं, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, हाथरस, मथुरा और आगरा जैसी सीटों पर भाजपा को भारी जीत मिली। इन सीटों पर जाट मतदाताओं की संख्या क्रमश 11%, 7%, 12%, 15%, 22% और 7% है। स्पष्ट है कि रालोद के साथ आने से भाजपा को इन सीटों पर बड़े अंतर से जीत हासिल हुई। दूसरी तरफ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, कैराना, रामपुर, नगीना और मुरादाबाद जैसी सीटों पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा। इन सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की बड़ी संख्या है जिन्होंने समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का साथ दिया। 

विश्लेषक की राय 
शिक्षक और राजनीतिक विश्लेषक पुष्पेन्द्र कुमार कहते हैं, "इसमें कोई दो राय नहीं है कि अगर राष्ट्रीय लोक दल और भारतीय जनता पार्टी का लोकसभा चुनाव से ठीक पहले गठबंधन नहीं होता तो भाजपा का पश्चिम उत्तर प्रदेश में और बुरा हाल हो जाता। जिन सीटों पर बमुश्किल भारतीय जनता पार्टी को जीत मिली है, वहां हारना तय था। मतलब साफ है कि अगर राष्ट्रीय लोक दल इंडिया गठबंधन में रहता तो कम से कम भारतीय जनता पार्टी 10 और सीटों पर हार का सामना करना पड़ता। भाजपा कमोबेश पश्चिमी उत्तर प्रदेश से साफ हो जाती।" वरिष्ठ पत्रकार अरविन्द भारद्वाज का कहना है, "मुस्लिमों की समाजवादी पार्टी के पक्ष में लामबंदी और राजपूत समाज की भाजपा के खिलाफ बगावत का असर है कि मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, कैराना, नगीना और मुरादाबाद में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा है। जाट होने के बावजूद संजीव बालियान को रालोद हारने से नहीं बचा पाया है। प्रदीप चौधरी भी इसी वजह से हार गए। अगर भाजपा की बगल में रालोद ना होता तो आगरा और फतेहपुर सीकरी तक असर देखने के लिए मिलता।"

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